ईरान-अमेरिका के बीच परमाणु वार्ता: सकारात्मक शुरुआत, लेकिन जटिल इतिहास और वैश्विक चुनौतियाँ
आई इस विषय पर हम चर्चा करते हैं।
यह विमर्श grok के सहयोग से तैयार किया गया है ।
14 अप्रैल 2025 को मस्कट से प्राप्त समाचार अनुसार ईरान और अमेरिका के बीच हाल ही में ओमान की मध्यस्थता से शुरू हुई परमाणु कार्यक्रम को लेकर बातचीत को दोनों पक्षों ने सकारात्मक और रचनात्मक बताया है।
यह वार्ता 12 अप्रैल को मस्कट में हुई, जिसमें अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने हिस्सा लिया।
दोनों देशों ने अगले दौर की बातचीत 19 अप्रैल को करने पर सहमति जताई है। यह घटनाक्रम ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम को लेकर दशकों से चले आ रहे तनाव के बीच एक उम्मीद की किरण लेकर आया है। आइए, इस मुद्दे के इतिहास, वैश्विक स्वीकार्यता और अमेरिकी हस्तक्षेप पर तथ्यात्मक नजर डालते हैं
ईरान के परमाणु कार्यक्रम का इतिहास पर गौर किया जाए तो ज्ञात होता है कि
ईरान का परमाणु कार्यक्रम 1950 के दशक में शुरू हुआ, जब अमेरिका ने "एटम्स फॉर पीस" पहल के तहत तेहरान को परमाणु तकनीक प्रदान की। उस समय इसका उद्देश्य शांतिपूर्ण ऊर्जा उत्पादन था। 1970 में ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत वह शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु तकनीक का उपयोग कर सकता था, लेकिन हथियार विकसित करने पर रोक थी।
1979 की ईरानी क्रांति के बाद, अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ संबंध बिगड़ गए, और ईरान का परमाणु कार्यक्रम गुप्त रूप से आगे बढ़ा।
2002 में, नेशनल काउंसिल ऑफ रेसिस्टेंस ऑफ ईरान ने नटांज और अराक में गुप्त परमाणु सुविधाओं का खुलासा किया, जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, ने जांच शुरू की।
2006 में, ईरान के एनपीटी दायित्वों का पालन न करने के कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने यूरेनियम संवर्धन पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन ईरान ने इसे खारिज कर दिया।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर वैश्विक स्वीकार्यता और चिंताएँ क्या रहीं हैं?
Grok के मीडिया अन्वेषण से पता चलता है कि
ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम ऊर्जा और चिकित्सा जैसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है।
हालांकि, पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका और इज़राइल, इसे परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश मानते हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता का मुख्य कारण ईरान का उच्च-स्तरीय यूरेनियम संवर्धन (60% तक) और आईएईए निरीक्षणों में पारदर्शिता की कमी है। आईएईए के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि ईरान का यूरेनियम भंडार तेजी से बढ़ रहा है, जो हथियार-स्तर के संवर्धन के करीब है।
2015 में, ईरान और P5+1 देशों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, और जर्मनी) के बीच संयुक्त व्यापक कार्य योजना पर हस्ताक्षर हुए। इसके तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और आईएईए निगरानी स्वीकार करने के बदले आर्थिक प्रतिबंधों में छूट हासिल की। इस समझौते को वैश्विक कूटनीति की जीत माना गया, लेकिन इसकी स्वीकार्यता सीमित रही। इज़राइल और सऊदी अरब जैसे देशों ने इसे अपर्याप्त बताया, जबकि ईरान ने प्रतिबंधों से पूरी राहत न मिलने की शिकायत की।
अमेरिकी हस्तक्षेप और तनाव
अमेरिका का ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर रुख हमेशा सख्त रहा है। 2018 में, तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जेसीपीओए से अमेरिका को बाहर कर लिया, इसे "सबसे खराब सौदा" करार देते हुए। इसके बाद, अमेरिका ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध फिर से लागू किए, जिससे ईरानी अर्थव्यवस्था चरमरा गई। जवाब में, ईरान ने जेसीपीओए की शर्तों का उल्लंघन शुरू किया और यूरेनियम संवर्धन बढ़ा दिया।
2021 में जो बाइडन प्रशासन ने जेसीपीओए को पुनर्जनन की कोशिश की, लेकिन बातचीत विफल रही। 2025 में ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद, उन्होंने सैन्य कार्रवाई की धमकी दी, लेकिन साथ ही कूटनीति को प्राथमिकता देने की बात कही। हाल की वार्ता इसी दिशा में एक कदम है, जिसमें ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई को पत्र लिखकर बातचीत का प्रस्ताव दिया था।
वर्तमान वार्ता और और इसके परिणाम से भविष्य में क्या स्थिति बनती है इस संदर्भ में विमर्श करना आवश्यक है
12 अप्रैल की वार्ता में कोई ठोस समझौता नहीं हुआ, लेकिन दोनों पक्षों ने इसे "सम्मानजनक और रचनात्मक" बताया। व्हाइट हाउस ने कहा कि ट्रंप ने कूटनीति के जरिए मतभेद सुलझाने के निर्देश दिए हैं, जबकि ईरान ने जल्दबाजी से बचने की बात कही। ओमान के विदेश मंत्री बदर अल-बुसैदी ने इसे क्षेत्रीय शांति की दिशा में सकारात्मक कदम बताया।
हालांकि, चुनौतियाँ बरकरार हैं।
इज़राइल, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने लिए खतरा मानता है, इस वार्ता पर कड़ी नजर रख रहा है। सऊदी अरब भी चाहता है कि कोई नया समझौता ईरान पर सख्त पाबंदियाँ लगाए। विशेषज्ञों का मानना है कि एक टिकाऊ समझौते के लिए पारदर्शिता, पारस्परिक विश्वास, और क्षेत्रीय हितों का संतुलन जरूरी है
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मंगलवार, 15 अप्रैल 2025
क्या अब ईरान परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा सकेगा ?

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