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सोमवार, 7 अक्तूबर 2024

मेरे भगवान भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव

विविधताओं भरे इस देश को एकात्मता के रंग में रंग देना कठिन कार्य  है, ।
   यही  कारण है कि यह कार्य करने योग्य है। क्योंकि आसान कार्य तो कोई भी कर सकता है, पर कठिन कार्य बिरले ही कर पाते हैं।
It is difficult to establish unity in diversity. Still, this is the need of the present era.
    Girish believes that Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev are no less than God for him. Let us know in his own words…
   मैं सरदार भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को अपना भगवान मानता हूं,  वे न सिर्फ मेरे भगवान हैं बल्कि आप सबके भी भगवान हैं।
  आप सोच रहे होंगे कि - "एक नास्तिक को जो भगवान नाम के तत्व पर विश्वास नहीं रखता था कोई उसे भगवान कैसे कह सकता है ?"
  सच्चा नास्तिक ही भगवान है ।
यह सिद्धांत मैं पूरे दावे के साथ स्थापित करना चाहता हूं। क्योंकि जो स्वयं ईश्वर होता है, वह अपने आप को ईश्वर घोषित करने का कोई दावा नहीं करता।
  जो पूर्ण है वह ही ईश्वर है, जो आश्रित हैं वही तो हम हैं।
हम विनय करते हैं आग्रह करते हैं निवेदन करते हैं? ईश्वर अर्थात मुक्तिदाता आग्रह या निवेदन नहीं करता।

    जो भगवान होता है वह अपने भगवान होने पर भी विश्वास नहीं करता था ।
लोग मुझसे पूछेंगे ही - "भाई , इतना करीब से कैसे जानते हो भगवान को ?
कभी मिले हो क्या ?
जी हां बहुत करीब से जानता हूं, जो संरक्षक है, जो दाता है, जो प्रबंधक है जो मुक्ति दाता है वही तो भगवान है। और वह भगवान किसी को अपने भगवान होने का विश्वास नहीं दिलाता और न ही खुद विश्वास करता है।
   ईश्वर का अंतर्संबंध हर व्यक्ति से होता है।
  वो  सभी को लेकर चलता है सबके लिए सोचता है वही तो है सच्चा भगवान है मेरी नजर में। आपकी नज़र में कैसा दिखता है मुझे इस बात से सरोकार नहीं।
उसका अस्तित्व भौतिक न होने के कारण   विज्ञान की परिधि से बाहर है, विज्ञान केवल उन बातों की पड़ताल करता है... जो उसकी सीमारेखा में हैं।
ये मेरी स्वरंत्रता के अधिकार में है कि मुझे किसे ईश्वर मानना है किसे नहीं ।  
   बुद्ध ने  कह दिया था कि अपना दीपक खुद बन जाओ।
यह कह कर  बुद्ध सामाजिक जड़त्व को हटाना चाहते थे। कालांतर में कुछ लोगों ने नए किस्म की जड़ता से अनुराग स्थापित कर लिया।
  बुद्ध ने जात-पात के वर्गीकरण का विरोध किया। बुद्ध ने व्यक्तिश: आज़ादी का आग्रह किया था। बुद्ध वर्गीकरण एवम वर्ग - संघर्ष का विरोध करते थे।
   वे जात-पात के शिकंजे से मुक्ति दिलाने आए थे। आप उनको भगवान कह सकते हो तो हम भी भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव को भगवान क्यों नहीं मान सकते ?
   बुद्ध के बाद , जातिवाद का ध्रुवीकरण हो गया। आयातित विचारधारा के लोग वर्गीकरण करते हैं,
वर्गों में  वैमनष्यता पर नैरेटिव स्थापित करते हुए वर्ग संघर्ष पैदा करते हैं।
मुझे प्रतीत हो रहा है कि महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों के साथ भी ऐसा ही खिलवाड़ किया है।
   अंग्रेजों के आते-आते व्यवस्था और जटिल हो गई। सनातन का एकात्मक भाव तिरोहित हो गया।
  तब कई संकल्प पुत्रों ने जन्म लिया ,
वे न केवल भारत माता को दरिंदे अंग्रेजों से मुक्त करने आए थे  वरन सामाजिक एकात्मता स्थापित करने आए थे। 
  मां ने न जाने कितनी बार, भगत सिंह के दिए अरदास की होगी।
  भगत सिंह जानते थे कि - उनका लक्ष्य या क्या है, उन्हें क्या करना है, वे अपनी जिंदगी का मुस्तकबिल सुनिश्चित कर चुके थे।
  फांसी पर अपने मित्रों के साथ चढ़ने के पहले लाहौर जेल में की घटना ने मन को करुणा भाव से भर दिया। घटना कुछ इस प्रकार  है
लाहौर जेल में भगत सिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले भंगी का नाम बोघा था। भगत सिंह उसको बेबे (मां) कहकर बुलाते थे।
जब कोई पूछता कि "भगत सिंह ये भंगी बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ?"
तब भगत सिंह कहता, "मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस  पुरूष बोघे ने। बोघे में मैं अपनी बेबे (मां) देखता हूं। ये मेरी बेबे ही है।"
यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता।
भगत सिंह जी अक्सर बोघा से कहते, "बेबे मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ।"
     पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता, "भगत सिंह तू ऊँची जात का सरदार, और मैं एक अदना सा भंगी, भगतां तू रहने दे, ज़िद न कर।"
   सरदार भगत सिंह भी अपनी ज़िद के पक्के थे, फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने बोघे को कहा," बेबे अब तो हम चंद दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे!"
    बोघे की आँखों में आंसू बह चले। रोते-रोते उसने खुद अपने हाथों से उस वीर शहीद ए आज़म के लिए रोटियां बनाई, और अपने हाथों से ही खिलाई।
  भगत सिह के मुंह में रोटी का गराई डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी। "ओए भगतां, ओए मेरे शेरा, धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्म दिया।"
और फिर भगत सिंह ने उसे अपने अंकपाश में भर लिया।
  भगत सिंह की इच्छा थी कि भारत समता मूलक समाज के स्वरूप में  स्थाई रूप से विकसित हो।
   मेरे देशवासियों , ध्यान रहे अगर हम अपने  राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, स्वार्थ को ध्यान में रखते हुए, सामाजिक वर्गीकरण और भेदभाव को बढ़ावा देंगे, तो हम वीर शहीदों- भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु के विरुद्ध  गंभीर अपराधी साबित  होंगे।
   जो राजनीतिज्ञ, व्यवसाई अथवा भारत का कोई भी नागरिक इस चेतावनी को सुन रहा है उसे अब अलर्ट रहने की जरूरत है।


@Youtube
Way after dad end. | ईश्वर कठोर नहीं होता  |
  🔗
https://youtu.be/CkrVepCLsXc?si=lfd28JFLcitCLiHY

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