Wikipedia

खोज नतीजे

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

ईश्वर न तो धोखेबाज है न ही निष्ठुर

 

 
"नियति अगर आपके जीवन से कुछ छीनती है तो चार गुना वापस करती है !"
    एक बार  मां ने  कहा था -"खोटे सिक्के को भी संभाल के रखो, यह कभी भी काम आ सकता है. 
  किसी की भी जिंदगी पूरी तरह से अनुपयोगी हो ही नहीं  सकती।
 क्या कभी आपने सोचा है कि जीवन चुनौतियां पूर्ण होता है। जीवन की चुनौतियों का सामना हमें स्वयं करना होता है। 
 आज हम एक ऐसी महिला की कहानी सुनाने जा रहे हैं जो दुनिया के लिए एक मिसाल बन गई। उसके साथ उन लोगों का भी जिक्र करेंगे जो सीमित साधनों में असीमित प्रयास करके सफल हो गए। 
विश्वास कीजिए यदि हम हम घोर निराशा के अंधेरे में होते हैं तो चुनौतियों का सामना नहीं कर सकते ।
सबसे पहले हमें आशावादी बनना पड़ेगा। 
      जैसे हेलेन केलर के माता-पिता ने खुद को आशावादी बनाकर रखा। आप जानते ही होंगे हेलेन केलर के बारे में।  
    जिसकी कहानी सुनकर कई  लोगों  ने अपने आप में सकारात्मक बदलाव कर लिए । 
 लगभग पूरी तरह से क्षमताहीन था हेलेन केलर का शरीर।
   वे  देख नहीं सकती थीं, सुन नहीं सकती थीं , और तो और वे बोल भी नहीं सकत थीं। 
   पर क्या हुआ कि वे विश्व के लिए प्रेरक और अमेरिका के लिए बहुमूल्य सिद्ध हो गई। 
  27 जून 1880 से 1 जून 1968 तक उन्होंने दुनिया को इतना कुछ समझा दिया, जो हजारों लोग मिलकर समाज को नहीं समझा पाते।
यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका टसकंबिया अल्बामा में जन्म लेने वाली जन्म के 19 महीने के बाद सुनने बोलने, और देखने की की शक्ति ही को देती हैं ।
  हेलेन केलर , और लुई ब्रेल की कहानी भी समानांतर रूप से लगभग  ऐसी ही है।
 हेलेन केलर के अलावा लुईस ब्रेल देख नहीं सकते थे। 
  उन्होंने ब्रेल लिपि का विकास किया। और दुनिया भर के नेत्र दिव्यांगों को ब्रेल लिपि का अनुपम उपहार दे दिया।
नियति किसी से कुछ भी छीनती है तो उससे  कई गुना अधिक वापस भी करती है। 
  हेलेन केलर, Louis brail आदि से जितना भी छीना था नियति ने , उससे कई गुना अधिक वापस करना पड़ा था। 
    विश्व के लिए हेलेन केलर ने  जो प्रतिमान स्थापित कर दिए ,  उन्हें देखकर लगता है कि -"यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका यूं ही नहीं समृद्ध हुआ है..!"
   विश्वास कीजिए जब भी किसी हताश जिंदगी को  कोई रास्ता नहीं मिला , वहीं से हताश जिंदगी के लिए नए रास्ते खुलने लगते हैं। 
 उन्हीं अपरिचित  रास्तों पर चलकर लोग  वहां पहुंच जाते हैं   जहां  नियति ने बिखरी जिंदगीयों को  पुनर्निर्माण के ऐसे ऐसे संसाधन दिए जो बड़े कीर्तिमान स्थापित करने में महत्वपूर्ण बन गए। 

 मुझे याद आ रहा है   एक बार एक मां अपने बच्चे को लेकर मेरे संस्थान में आई थीं। बच्चा दिव्यांग था। बच्चा दुनिया को जानना चाह रहा था, परंतु मां के आंसू थे। मां आखिर मां होती है। 
करुणा से सराबोर मां ने कहा  - "ईश्वर ने किसी जन्म का दंड मुझे दिया है।"
 मां के इस वाक्य को सुनकर मुझे लगा कि वह ईश्वर पर आस्था रखने वाली मां हैं।
उसकी मनोदशा देखकर मैंने उसे हेलेन केलर के जीवन के बारे में बताया। और यह भी बताया कि -" आप जिस  ईश्वर पर आस्था रखती है, वही ईश्वर रास्ते बनाता है। वह किसी को दंड नहीं देता। 
  अगर ईश्वर कठोर होता तो - हेलेन केलर के माता-पिता को एनि सुलिव्हान जैसी टीचर नहीं मिलती। ईश्वर की कृपा ने सूरदास को स्थापित कर दिया,। उसी ईश्वर ने नेत्र दिव्यांग संत रामभद्राचार्य को संपूर्ण वेदों और शास्त्रों का अध्ययन कर दिया।
   इतना ही नहीं, निक बुजीचिच नाम के व्यक्ति के चर्च तक पहुंचने के लिए दोनों पैर ही  नहीं नहीं दिए हैं , 
   प्रार्थना करने के लिए उसके पास दो हाथ भी नहीं हैं।
   फिर भी वह  दुनिया को ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण दे रहा है।
   ईश्वर न तो धोखेबाज है न ही निष्ठुर 
अगर ऐसा होता तो  दुनिया महान वैज्ञानिक  स्टीफ़न विलियम हाकिंग्स को दुनिया में नहीं भेजता। 
  आपका दुख तो बहुत थोड़ा सा है, आपका बेटा तो बच्चा जरा सा ऊंचा सुनता है, उनका क्या जिनके बच्चों की स्थिति आपके बच्चे से भी ज्यादा दयनीय है।
    दिव्यांग बालक की मां  जब अंकित कहार से मिली तब उसे पक्का विश्वास हो गया कि ईश्वर धोखेबाज और निष्ठुर नहीं है न। अगर ईश्वर धोखेबाज होता तो  अंकित कहार जैसा बच्चा जिसके शरीर में निरंतर कंपन बना रहता है , वह मूर्तिकला और चित्रकला कैसे कर पाता , कैसी वह जे जे स्कूल ऑफ़ आर्ट के स्पेशल ट्रेनिंग प्रोग्राम का हिस्सा बनता ?
 अपने गीतों से मंत्र मुक्त कर देने वाली
 नेत्र दिव्यांग सखी जैन, अंजली, बाल श्री विजेता संत लाल पाठक पूरे उत्साह के साथ भारत के विकास में कैसे सहयोगी हो पाते।
   अंत़तः बच्चों की मां को यह विश्वास हो गया कि ईश्वर न तो निर्दयी है , और न ही धोखेबाज।
   जीवन कभी भी सीधी रेखा पर नहीं चलता। 
हर एक जीवन को अगर हम रेखा मान लें तो इसे सरल रेखा के रूप में आप कभी नहीं देखेंगे। 
  जीवन एक ग्राफ है। कभी ऊपर तो कभी नीचे। 
और यही मजेदार बात है जीवन की।
   बुद्ध ने जीवन के इस ग्राफ को देखकर महान व्रत ले लिया। 
   कर्ण सोचता था कि वह ही दुनिया का सबसे दुखी व्यक्ति है। यह विचार उसने कृष्ण के समक्ष व्यक्त भी किया। तभी कृष्ण फूट पड़े और बोले - "प्रिय कर्ण मेरा जन्म तो कारागार में हुआ है। 
जन्म लेते ही मुझे भी तुम्हारी तरह मां से जुदा होना पड़ा।
   मां के जीवित रहने के बावजूद मुझे दूसरी मां के साथ रहना पड़ा। 
   सच है दुख न तो छोटा होता है न ही बड़ा होता है। एक दूसरे के दुखों और सुखों के बीच प्रतियोगिता नहीं हो सकती। 
  इन इन दुखों पर विजय पाने के लिए या तो कृष्ण बनना पड़ता है या फिर बुद्ध..!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ कीजिए शायद सटीक लिख सकूं

ad

कुल पेज दृश्य