उषा देवी मित्रा, हिंदी और बांग्ला साहित्य की प्रख्यात लेखिका, जिन्होंने नारी मुक्ति, सामाजिक सुधार, और भारतीय संस्कृति को अपनी रचनाओं में संवेदनशीलता से चित्रित किया। उनकी कहानियाँ और उपन्यास जैसे ‘प्यासी हूँ’ और ‘सम्मोहिता’ नारी जीवन की जटिलताओं को दर्शाते हैं।
उषा देवी मित्रा का जीवन परिचय
1897 में जबलपुर में जन्मी उषा देवी मित्रा हिंदी और बांग्ला साहित्य की एक ऐसी लेखिका थीं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से नारी जीवन की पीड़ा, संघर्ष, और आकांक्षाओं को यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत किया। उनकी लेखनी यूरोपीय नारी मुक्ति आंदोलन की फूहड़ता से अप्रभावित रही, और उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को सम्मान देते हुए नारी सशक्तीकरण का स्वर बुलंद किया।
उनकी प्रमुख रचनाएँ जैसे ‘प्यासी हूँ..!’, ‘सम्मोहिता’, और ‘सांध्य पूर्वी’ में नारी जीवन की जटिलताओं को संवेदनशीलता के साथ चित्रित करती हैं। उनकी कहानियों और उपन्यासों ने द्विवेदी युग की साहित्यिक धारा को समृद्ध किया और सामाजिक सुधार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाया गया है।
साहित्यिक और सामाजिक योगदान
उषा देवी मित्रा ने न केवल साहित्य के क्षेत्र में योगदान दिया, बल्कि सामाजिक सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने नारी मंडल समिति की स्थापना की, जिसके माध्यम से महिलाओं के उत्थान और सशक्तीकरण के लिए प्रयास किए। उनकी रचनाएँ सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार करती हैं और नारी मुक्ति के स्वदेशी स्वर को उजागर करती हैं।
उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल हैं:
उपन्यास: वचन का मोल, प्रिया, नष्ट नीड़, जीवन की मुस्कान, सोहनी, सम्मोहिता।
कहानी संग्रह: आँधी के छंद, महावर, नीम चमेली, मेघ मल्लार, रागिनी, सांध्य पूर्वी, रात की रानी।
प्रकाशन: उनकी रचनाएँ प्रवासी, भारतवर्ष, वसुमती, और पंचपुष्प जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं।
उनकी कहानी ‘सांध्य पूर्वी’ को सेकसरिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया, और मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के जबलपुर अधिवेशन में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिकाप्रसाद मिश्र ने उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए अभिनंदन किया।
पारिवारिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि
उषा देवी मित्रा का जन्म 1897 में एक बौद्धिक और साहित्यिक परिवार में हुआ। उनके पिता हरिश्चंद्र दत्त एक प्रख्यात वकील और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू के विद्वान थे, जो शिकार साहित्य के रचनाकार भी थे।
उनके मामा सत्येंद्र नाथ दत्त बांग्ला के प्रसिद्ध लेखक थे, और उनके दादा रवींद्रनाथ ठाकुर विश्वविख्यात साहित्यकार थे। इस साहित्यिक माहौल ने उनकी रचनात्मकता को गहराई प्रदान की।
उषा जी की प्रारंभिक शिक्षा जबलपुर में हुई। 12-14 वर्ष की आयु में उनका विवाह क्षितिश्चंद्र मित्र से हुआ, जो एक विद्युत अभियंता थे। पति, पुत्र, बहन, और भाई के असामयिक निधन जैसी व्यक्तिगत त्रासदियों ने उनकी लेखनी को संवेदनशीलता और गहराई दी। पति के निधन के बाद वे शांतिनिकेतन गईं, जहाँ उन्होंने संस्कृत में विशेषज्ञता प्राप्त की और रवींद्रनाथ ठाकुर के मार्गदर्शन में अपनी साहित्यिक दृष्टि को समृद्ध किया।
उषा देवी मित्र का निधन 19 सितंबर 1967 को हुआ।
नारीवादी लेखन में मौलिकता
उषा देवी मित्रा का लेखन यूरोपीय नारी मुक्ति आंदोलन से प्रभावित होने के बजाय भारतीय सांस्कृतिक निरंतरता और सामाजिक यथार्थवाद पर आधारित था। उनकी कहानी ‘प्यासी हूँ..!’ नारी की आंतरिक पीड़ा और आकांक्षाओं को दर्शाती है, जबकि ‘सम्मोहिता’ और ‘दीक्षिता’ जैसी रचनाएँ रवींद्रनाथ ठाकुर और सत्येंद्र नाथ दत्त द्वारा सराही गईं। उनकी रचनाएँ नारी जीवन की शारीरिक और मानसिक पीड़ा को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती हैं।
पुरस्कार और सम्मान
उषा देवी मित्रा की साहित्यिक उपलब्धियों को कई सम्मानों से नवाजा गया:
सेकसरिया पुरस्कार: उनकी कहानी ‘सांध्य पूर्वी’ के लिए।
मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन: जबलपुर अधिवेशन में अभिनंदन।
जबलपुर उन्हें याद रखना है
उनकी स्मृतियों को सतत अविस्मरणीय बनाने श्रीमती साधना उपाध्याय संस्थापक त्रिवेणी परिषद जबलपुर द्वारा प्रतिवर्ष अहिंदी भाषी साहित्यकारों कलाकारों संस्कृति कर्मियों को सम्मानित करती हैं।
यह सम्मान अब तक डॉ रोमा चटर्जी चंद्रशेखर सैन गुप्ता पद्मा बनर्जी गीता गीत डॉ इला घोष, मानिक तामस्कर आशा जड़े शरद महाजन सुधा पंडित अविनाश कस्तूरे रत्ना मुंजे पंजाबी काजल मानेक गुजराती , सरदार रतन सिंह गुरुनाम सिंह रील , कमलेश सूद हरवंश सिंह चकरेल , छाया मोदीराज डी वी राव नरेंद्र भूपेंद्र कुमार दवे अमृत लाल वेगड़ रजनी कांत यादव चंद्रभान अनाड़ी ज्योति मंगलनी ।
हास्य कलाकार के के नायकर कुलकर्णी बंधु स्व हेमंत जी एवं श्री दत्तात्रेय को मराठी रजनी कांत त्रिवेदी गुजराती आदि को सम्मानित किया गया है।
उषा देवी मित्रा हिंदी और बांग्ला साहित्य की एक ऐसी साहित्यकार थीं, जिन्होंने अपनी लेखनी और सामाजिक कार्यों से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास किया। उनकी रचनाएँ नारी जीवन की जटिलताओं और सामाजिक मुद्दों को उजागर करती हैं।
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