भारत एक विशाल देश है विविधताओं भारत देश है। विविधताओं भारी इस देश में सामंजस्य स्थापित करना बहुत कठिन है। कठिन कार्य ही करने योग्य होते हैं। सामान्य कार्य तो कोई भी कर लेता है। दिव्यांगों के लिए दिव्यांगता उनकी दुर्बलता न होकर उपलब्धियां का शिलालेख बन जाती है।
ऐसे हजारों उदाहरण विश्व में मौजूद हैं।
भारत में अष्टावक्र की कथा लोकव्यापी है। अद्भुत विद्वान थे अष्टावक्र पर लोग उनकी आकृति को देखकर उन पर हंसते थे। कालांतर में उन्हीं अष्टावक्र के ज्ञान को श्रेष्ठ माना गया।
गुरु रामभद्राचार्य जी अद्भुत मेधावान हैं। महाकवि सूरदास की फिलासफी उनकी पदवालियों से उजागर होती है।
किसी की भी शारीरिक असमानताओं के कारण अंडर एस्टीमेट करना, बॉडी शेमिंग करना , उन पर हंसना, मेंटल डिसेबिलिटी का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
जब वैज्ञानिक हॉकिंस के बारे में सोचिए सोचिए जो बोल नहीं सकता वह व्यक्ति यूनिवर्स के बारे में विस्तार से जानकारी देता है। वह व्यक्ति अपने मानसिक और विशेष ज्ञान के सहारे अंतरिक्ष के रहस्य बताता है। और हम हैं कि हर असफलता के पीछे अपने तरीके से बेहूदे कारण प्रस्तुत करने लगते हैं
इस क्रम में आप समझ ही गए होंगे कि आगे हम Paris में आयोजित ओलंपिक 2024 की चर्चा करने जा रहे हैं।
पदक तालिका अनुसार भारत के सामान्य खिलाड़ियों की अपेक्षा भारत के दिव्यांग खिलाड़ियों ने देश का सम्मान बढ़ाया है ।
भारत ने पैरा ओलंपिक के लिए 84 प्रतिभागियों को भेजा गया था।
इनमें से 29 खिलाड़ियों ने मेडल हासिल किए। जो खिलाड़ियों का 34.52 प्रतिशत है। विस्तार से देखें तो पेरिस 2024 पैरालंपिक में अपना दिव्यांगो ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 29 पदक जीते, जिसमें 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य पदक शामिल हैं . पदक सूची में भारत का नाम 18वें स्थान पर है।
जबकि भारत से भेजे गए 117 खिलाड़ियों की ओलंपिक में केबल 6 पदक जीते, अर्थात भेजे गए खिलाड़ियों के सापेक्ष कुल .53 प्रतिशत उपलब्धि रही है।
भारत के सामान्य ओलंपिक खिलाड़ियों ने प्रतियोगिताओं में केवल 6 पदक जीते। पदकों में 1 रजत और 5 कांस्य पदक शामिल हैं ।स्वर्ण पदकों का तो अता-पता ही नहीं है ।
भारत भी पदक तालिका में 71 में स्थान पर नजर आ रहा है।
इससे इस बात की पुष्टि होती है कि भारत के अधिकांश खिलाड़ी खेल अभ्यास पर कम और आंतरिक कलह- सियासी उठा पटक पर पर ज्यादा ध्यान देते रहे हैं।
सामान्य ओलंपिक में जब देश की इज्जत बचाने में सर्वांग संपूर्ण खिलाड़ी पीछे रह गए तो दिव्य अंग वालों ने लाज बचाई। अब आप तय कर सकते हैं कि कि अधूरा कौन है ?
भारत की जनता बेहद प्रभावित है। वहीं भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि - एक गर्व का पल है और दिव्यांग खिलाड़ियों ने अपनी दृढ़ता और संघर्ष के साथ खेल के मैदान में एक नए स्तर की प्रतिस्पर्धा को प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि न केवल दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है .
अब जरूरत यह है कि हम भारत के लोग सर्वांगीण विकास के लिए अपने कर्तव्य और दायित्व को सर्वोपरि मानें
अब वह समय आ गया है जब खिलाड़ियों को ओलंपिक के लिए पंजीकृत करने के पहले उनकी योग्यता और दक्षता के अतिरिक्त उनका साइको टेस्ट लेना चाहिए।
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शुक्रवार, 13 सितंबर 2024
अब अष्टावक्रों पर हँसने का समय नहीं है! संदर्भ #पेरिसओलंपिक2024
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में।
शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी
छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन
सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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