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गुरुवार, 5 सितंबर 2024

"हां, पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है"

   सुधिजनो,
     सनातन धर्म पर कई तरह के सवाल किए जाते हैं। सनातन मानने वाले अधिकांश हिंदू मान्यताओं के वैज्ञानिक महत्व को समझ नहीं पाते हैं। और अजीबो गरीब सवालों के कारण चुप भी रहना पड़ता है। उनमें Feelings of Backwardness  और चेहरे पर मायूसी नजर आती हैं। तर्कशास्त्री और सनातन को जड़ मूल से समाप्त करने वाले लोग ठीक है सवाल करते हैं। उत्तर न होने के कारण मायूसी के अलावा कुछ नहीं रहता। अधिकांश लोग मत परिवर्तन तक कर लेते हैं। हमें अपने बौद्धिक स्तर को आगे ले जाना है। केवल पढ़ना नहीं है बल्कि पढ़े हुए का विश्लेषण करते हुए अपने उत्तरों को सटीक और वैज्ञानिक आयाम देना होगा। इसी तरह का एक प्रश्न मेरे भी सामने आया था।
हां, पृथ्वी शेषनाग के फन पर  टिकी  है"
"क्या, हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर  टिकी  है
    तो तुरंत आप हां कह सकते हैं। क्योंकि यह सत्य है।
  आप अपनी बात की पुष्टि के लिए जो जवाब या विवरण प्रस्तुत करेंगे उसे समझने के लिए इस पॉडकास्ट पर अंत तक बने रहिए।
  इस बात को समझने के लिए हमें अपनी #गैलेक्सी यानी #मिल्कीवे #आकाशगंगा के बारे में विचार करना चाहिए।
   हमारी आकाशगंगा क्षीर मार्ग अर्थात #दूधिया_रास्ते जैसी दिखती है इसी कारण  इसे अंग्रेजी में "मिल्की - वे गैलेक्सी" कहते हैं।
हमारी आकाशगंगा का प्रबंधन विष्णु करते हैं वे  आकाशगंगा अर्थात गैलेक्सी के नियंता हैं।
हम जिस आकाशगंगा में रहते हैं, जिसे मिल्की वे आकाशगंगा कहा जाता है, वह कम से कम 100 बिलियन तारों से बनी एक सर्पिल आकाशगंगा है।
लास कुम्ब्रेस वेधशाला की रिपोर्ट के अनुसार
     हमारी आकाशगंगा लगभग 100,000 प्रकाश वर्ष चौड़ी और लगभग 1000 प्रकाश वर्ष मोटी है। इसमें एक केंद्रीय उभार है जो लगभग 10,000 प्रकाश वर्ष व्यास का है। हमारा सौर मंडल केंद्रीय उभार से आकाशगंगा के किनारे की ओर लगभग एक तिहाई दूरी पर है। यदि सौर मंडल उभार के अंदर होता, तो रात में हम #सिरियस तारे जैसी  तेज चमक वाले  दस लाख तारे देख पाते। रात का आकाश इतना चमकीला होता कि यह दिन से ज़्यादा अलग नहीं लगता।
   हमारा सूर्य और सौर मंडल 1,000 प्रकाश वर्ष मोटी डिस्क के भीतर हैं, तथा  हमारे सौर मंडल  की स्थिति केंद्रीय तल से केवल 95 प्रकाश वर्ष दूर हैं ।
प्रत्येक तारे  का अपना सौरमंडल है । यह जरूरी नहीं की किसी अन्य सौरमंडल में ग्रहों की संख्या हमारे सूर्य के समान हो। वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि हमारी गैलेक्सी में लगभग 50 अरब ग्रह के होने की संभावना है, इनमें से 50 करोड़ तारे ऐसे हैं, जिनके ग्रहों या उपग्रहों पर  जीवन होने के अनुकूल तापक्रम हवा पानी मौजूद हो सकता है।
   भारतीय सभ्यता के प्राचीन साहित्य में लिखे गए साहित्य में *क्षीर सागर* शब्द का प्रयोग किया है।
*क्षीर सागर अर्थात दूधिया सागर ?*
  हमारी आकाशगंगा भी दूधिया रंग की है। और इसकी आकृति *सर्पिल* ।
आप ठीक समझ रहे हैं हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर है। लास कुम्ब्रेस वेधशाला की रिपोर्ट के हवाले से हमने बताया है कि हम गैलेक्सी के केंद्र से मात्र 95 प्रकाश वर्ष दूर हैं। अर्थात कुंडली पर बैठे सांप के सिरोभाग से हमारी दूरी बहुत कम  है।
  ईश्वर तत्व के अस्तित्व के प्रमाण के लिए तथा शेषनाग की थ्योरी पर सवाल उठाने वाले विद्वान तर्कशास्त्रियों के लिए को सम्मान सहित बताना आवश्यक है कि पृथ्वी जिस आकाशगंगा में है । भारतीय प्राचीन साहित्य में आकाशगंगा को सर्पिल होने के कारण शेषनाग कहा है।
    कैसी लगी ये जानकारी कृपया अपनी टिप्पणियां देकर हमें कृतार्थ करें
#Science_and_Indian_Ancient_Literature
#Infinite_Expansion
Who is the Creator of the universe?
#गार्गी_याज्ञवल्क_संवाद
#वेदों_में_आकाश_अंतरिक्ष
#क्षीरसागर #निरंकार_ब्रह्म
Link https://youtu.be/WnMnuK6ju6k?si=Tmytzixyt5dQZHvF
https://youtu.be/NlFvKnBTWaM 
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