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शनिवार, 20 जुलाई 2024

गुरु पूर्णिमा विशेष : प्रपंच अध्यात्म योग साधना सूत्र

     गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर आज परम पूज्य स्वामी शुद्धानंद नाथ जी को स्मरण करते हुए उनके द्वारा प्रशांत साधना सूत्रों का प्रकाशन इस आशय से किया जा रहा है ताकि हम जीवन को एक साधना के रूप में स्वीकारते हुए अंततः उत्कृष्ट श्रेणी का जीवन जी सकें। 

  स्वामी जी ने जीवन को एक सहज साधना की स्वरूप में बदलने के प्रयासों की व्याख्या अपने संक्षिप्त सूत्रों में अपने सब शिष्यों के बीच विस्तारित की है। 

   आइए आज से हम इस श्रृंखला को आगे बढ़ते हैं प्रतिदिन आपके समक्ष रखने का प्रयास करूंगा। ब्रह्मावर्त में समाहित पूज्य सद्गुरु ने जीवन के लिए जिन साधना सूत्रों को चुना है वह हमारे जीवन की सफलता का कारण बनेंगे।

जीवन-साधना सूत्र 01

प्रेम ही संसार की नींव है। वह प्रेम आसक्तिमय होवे या साहजिक होवे। प्रेम व्‍यवहार में सुख और शां‍ति उत्‍पन्‍न करता है। त्‍याग सेवा और दिव्‍यता की शिक्षा देता है।

प्रापंचिक सम्‍बन्‍ध प्रेम की रस्‍सी में बंधे जाय तो वह प्रपंच देवताओं को भी मत्‍सर उत्‍पन्‍न करने वाला होता है। आज के प्रपंच और व्‍यवहार जीवन में इसका सर्वथा अभाव है। आज के सम्‍बन्‍ध परस्‍पर हक का अधिकार मांगने वाले ठेके है। यह ठेका समाज के क्षीण रूढि़यों द्वारा कसा हुआ है। इसलिए यह संबंध तोड़ना आसान हो गया है। आज प्रेम के स्‍थान में भिन्‍न रूप से अहंकार विराजमान है।

जीवन-साधना सूत्र 02

   दु‍र्बल व्‍यक्ति प्रेम नही कर सकता और प्रेमी दुर्बल नहीं रह सकता। धैर्यवान बलवान और श्रेष्‍ठ व्‍यक्तियों को प्रेम का वरदान मिलता है प्रेम शरणागति नहीं चाहता।

      प्रेम स्‍वयं त्‍याग करता है। प्रेम के अधिराज्‍य में शोक दु:ख और शिकायत नहीं होती। प्रेम रसायन विपरीत और प्रतिकूलता और प्रतिकूलता को दिव्‍य समन्‍वय में परिवर्तित करता है। प्रेम व्‍यापार (वाणिज्‍य) नहीं है। न प्रेम मृत्‍यु है जो सब कुछ छुड़ा लेता है। प्रेम है अनन्‍त का अमृत । जब बरसता है तब अनन्‍त का आदेश देता है और उस चिर-चैतन्‍य के प्राप्ति का मार्ग दर्शक होता है

जीवन-साधना सूत्र 03

वासना ही नरक है। प्रेम दिव्‍य भाव है। अपनी पत्‍नी पर प्रेम करना है तो वासना ही नहीं भगवती का एक अलौकिक आविर्भाव इस नाते से अंतर को उत्‍कृष्‍ट प्रेम भाव से भरकर देखो फिर आप उसके साथ जो भी लीला करोगे वह वासना से निवृत होगी। उसमें आपका अप्रतिम सुख होगा। आपके स्‍पर्श मात्र से उसके हृदय भावना वृत्ति इसमें परिवर्तन होगा। वह आपकी अनुगामिन बन जाएगी। आपकी साधना में शक्ति बनेगी। उस पर जो मोह का पटल है वह निकल जाएगा आपका गृह आश्रम बनेगा। आपके शिशु बटुक और कन्‍याएं भैरवी बनेगी। आपके मित्र उपासक बनेंगे और आपकी साधना इस ब्रहृांड के निश्‍वासों का अंग बनकर सुगंधित पुष्‍प के भांति अपने सौरभ को मुखरित करती रहेगी।

मन आकरण प्रसन्‍न हैं प्रसन्‍नता ही नित्‍य भाव हो। वही प्रसन्‍नता प्रति मुहू‍र्त बढ़ती जोवा । प्रत्‍येक आचार विचार और विक्षोभ उसी प्रसन्‍नता को शतगुणित करें जैसे अग्नि में आहुत द्रव्‍य क्षण में अग्नि को प्रज्‍वलित कर स्‍वयं अग्नि बन जाता है। प्रसन्‍नता देवता सानिध्‍य हैं सच्चिदानन्‍द धन परमात्‍माका एक अविछिन्‍न भाग हैं प्रसन्‍नता से अपने सामर्थ्‍य का प्रवाह वेग बढ़ता है। प्रसन्‍नता साधनाका एक मात्र आधार है। इसलिए प्रसन्‍न रहो। प्रसन्‍नता ही प्रेम का सिंहासन है प्रसन्‍नताही प्रेमका आदिम प्रकाश है। प्रेम का एक मात्र प्राण है। शुद्ध आनन्‍द

जीवन-साधना सूत्र 04

विश्‍वास, श्रद्धा और भक्ति यह उत्‍तरोत्‍तर क्रम है। इस क्रम से जो साधक बढ़ता है उसे अध्‍यात्‍मक साधना मे यश प्राप्‍त होता है। कर्म ही विश्‍वास का परिचायक है। श्रद्धा से त्‍याग होता है त्‍याग ही श्रद्धा का मापक है । भक्ति से समर्पण सर्वस्‍व काया वाचा और मन से अपना ममत्‍व त्‍यागना होता है। भक्ति का अर्थ समझ में आना ही कठिन है। समझ आने के उपरांत उसका अध्‍यास और कठिन है। सबसे पहले खोजकर देखो कि हमें भक्ति चाहिए या उसके द्वारा वस्‍तु के खोज में हो तो भक्ति कदापि प्राप्‍त नहीं होगी। भक्ति ही मौलिक वस्‍तु है अपनी वस्‍तु अपनी न समझ कर देना ही अर्पण है। प्रेम और भक्ति का योग इसी अर्पण से होता है।


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