Wikipedia

खोज नतीजे

शुक्रवार, 14 जून 2024

दाम्पत्य जीवन में यौन संबंधों का महत्व

 


मनुष्य के जीवन में बुद्धि एक ऐसा तत्व है जो  मनुष्य को विश्लेषण करने की क्षमता प्रदान करती है।
  बुद्धि का अधिकांश कार्य मनुष्य प्रजाति और व्यवस्था के विश्लेषण के लिए सर्वाधिक सक्रिय होती है।
बुद्धि भावात्मकता को भी विश्लेषित कर देती है। बुद्धि उसे शरीर के प्रति कंफर्ट जोन तैयार करने की जुगत में रहती है जिस शरीर में वह स्थित है।
       बुद्धि निष्काम और सकाम प्रेम , के साथ-साथ अन्य भावों पर साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश करती है । बुद्धि अपने साम्राज्य में तर्क  के सहारे लाभ का कैलकुलेशन करती है। फिर मन और शरीर को यह सलाह देती है कि उसे क्या करना चाहिए।  
   परंतु मन और शरीर की अपनी-आप की परिस्थितियों है। शरीर की जरूरतों  की पूर्ति के लिए मन बुद्धि पर निर्भर करता है।
   बुद्धि संसाधन की उपलब्धता के अनुसार अधिकतम लाभ की अपेक्षा के साथ शरीर को जरूरतों की पूर्ति के लिए उपक्रम करता है।
     मां के साथ-साथ बुद्धि पर अंकुश  आवश्यक है,  जिसकी व्याख्या भारतीय जीवन दर्शन में भली प्रकार की गई है।   आचार्य रजनीश ने पश्चिम और पूर्व के बीच सांस्कृतिक सामाजिक संबंधों को वर्गीकृत किया है। मेरे हिसाब से उन्होंने पश्चिम को कुछ ऐसा बताया जो पूर्व के लिए वर्जनों के विरुद्ध था। वे उन्मुक्तता का प्रबोधन करते थे। विचार मौलिक थे तथापि भारतीय संदर्भ में न केवल अनुचित थे बल्कि कुछ मायने में अश्लील भी।
आचार्य से हटकर मेरा मानना अलग है। यह जरूरी नहीं कि हम आचार्य को पूरी तरह से स्वीकार लें। हम एक सीमा तक और अपनी अनुकूलता तक उनके मंतव्य को स्वीकार सकते हैं। भारत में विवाह एक संस्था है। जो पवित्रता पर केंद्रित है। जबकि पश्चिम तथा अन्य संस्कृतियों हमारे चिंतन से अलग हैं।
रजनीश ने अपने आश्रमों में कम्युन व्यवस्था को स्थापित किया जो शारीरिक एवं मन की स्वतंत्रता के लिए नए-नए अवसर प्रदान करते थे।
इससे उलट उनके समकालीन एक युवा संन्यासी ने प्रपंच अध्यात्म योग की अवधारणा को स्थापित करने का प्रयास किया। वे अपने विचारों के प्रसार के लिए किसी भी प्रकार के भौतिक संसाधनों से स्वयं को दूर रखते थे। यह थे स्वामी शुद्धानंद नाथ , जिन्होंने मध्यवर्गी परिवारों के नैतिक नैष्ठिक एवं पूर्व से निर्धारित आध्यात्मिक मूल्य पर आधारित पारिवारिक विकास पर कार्य किया था। आपको स्वीकार करना होगा कि भारत में किसी के भी जीवन में आध्यात्मिकता का समावेशन तय किया है, परंतु बदलते परिवेश में व्यवहारिक तौर पर ऐसा नहीं है.  
जो लोग अपने जीवन के लिए आध्यात्मिक तौर पर निश्चित मापदंडों अपना  रहें हैं , उनका जीवन अद्भुत एवं मणिकांचन योग का आभास देता है।
  प्रपंच अध्यात्म के प्रबोधक स्वामी जी ने दैहिक आकांक्षाओं को नकारा नहीं बल्कि उसके निर्धारित मापदंडों को अपनाने की सलाहदी है। वे कहते हैं की प्रेम ही संसार की नींव है !
  इसका आशय है कि स्वामी शुद्धानंद नाथ प्राकृतिक स्थिति के विरुद्ध किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ से सहमत नहीं थे। वे चाहते थे कि प्रत्येक परिवार अपने जीवन को इतना अच्छा तैयार करें ताकि संपूर्ण समाज बेहतर हो सके।
  भारत में आध्यात्मिक दर्शन के तात्विक विश्लेषण से   सर्वे जना सुखिनो भवंतु बीज मंत्र उभरा है  यही बीज मंत्र संपूर्ण समष्टि के लिए महत्वपूर्ण एवं आवश्यक  है।   
  अब जबकि  मनुष्य प्रजाति आध्यात्मिकता  की तुलना में अपनी  वासना अर्थात lust को सर्वोच्च स्थान पर रखती है तो लगता है कि अब स्थिति नियंत्रण से बाहर जा सकती है ।
    आप रजनीश के कम्युन सिस्टम को लांछित करें, यह अलग बात है परंतु वर्तमान में ऐसे सिस्टम की जरूरत ही नहीं है। शारीरिक जरूरतें 25 वर्ष की उम्र से पूर्व ही तीव्रता से उभर आती हैं।

परंतु भटके हुए दंपत्ति अपने कर्म को अहंकार की विषय वस्तु बना देते हैं। वास्तविकता यह है कि व्यक्ति भावात्मक रूप से ऐसा नहीं करता बल्कि व्यक्ति अक्सर बुद्धि का प्रयोग करके वातावरण को दूषित कर देते हैं।
    हमारी शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा की शिक्षण सामग्री हटा दी गई  है।
    कई घटनाओं को देखकर लगता है कि वर्तमान में दांपत्य केवल किसी नाटक है । जिस्मानी जरूरत  को प्राथमिकता के क्रम में रखने वाले लोग अपनी वर्जनों को भूल जाते हैं।
जिसे देखे वह यह कहता है कि हम अपने बच्चों के विचारों को दबा नहीं सकते।
पति  पत्नी हम आपस में एक दूसरे की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगा सकते।
  ये बिंदु परिवारिक विखंडन एवं स्वछंदता का का मार्ग हैं।
   अधिकार अधिकारों की व्याख्या अधिकार जताना यह बुद्धि ही सिखाती है।
  जो कि मन ऐसा नहीं करता मन सदैव प्रेम और विश्वास के पतले पतले धागों से बना हुआ होता है।
परंतु जब आप नित्य अनावश्यक आरोप मानसिक हिंसा के शिकार होते हैं और दैनिक दैहिक एवं सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वयं को असफल पाते हैं तब मानस विद्रोही हो जाता है।
    ऐसी घटनाएं अक्सर घटा करती हैं। अब तो पति पत्नी का एक साथ रहना भी केवल दिखावे जैसा एक सोशल इवेंट बन चुका है।
  यह सब बुद्धि के अत्यधिक प्रयोग से होता है।
   बुद्धि अक्सर तुलना करती है और बुद्धि साबित कर देती है कि आपने जो आज तक किया है वह त्याग की पराकाष्ठा है।
    यही भ्रम जीवन को दुर्भाग्य की ओर ले जाता है।
  हम अक्सर सुनते रहते हैं... "मैंने आपके लिए यह किया मैंने आपके लिए वो किया !"
  ऐसा कहने वाला कोई भी हो सकता है पत्नी पति भाई-बहन मित्र सहयोगी कोई भी यह वास्तव में वह नहीं कह रहा होता है बल्कि उसकी बुद्धि के विश्लेषण का परिणाम है।
  इस विश्लेषण के फलस्वरुप परिवार और संबंधों में धीरे-धीरे दूरियां पनपने लगती है।
    भारत के मध्य एवं उच्च वर्गीय परिवारों में नारी स्वातंत्र्य एक महत्वपूर्ण घटक बन चुका है। मेरे एक मित्र कहते हैं वास्तव में अब विवाह संस्था 6 माह तक भी चल जाए तो बड़ी बात है। बेशक ऐसा दौर बहुत नजदीक नजर आता है। कारण जो भी हो.... नारी स्वातंत्र्य की उत्कंठा समाज को अब एकल परिवारों से भी वंचित करने में  पीछे नहीं रहेगी। नारी की मुक्ति गाथा और मुक्ति गीत अब सर्वोपरि है। नारी स्वातंत्र्य और नारी सशक्तिकरण में जमीन आसमान का फर्क है।
     मेरे मित्र ने बताया कि वह बेहद परेशान है। क्योंकि उसकी पत्नी जब मन चाहता है तभी यौन संबंध स्थापित करती है, अन्यथा कोई न कोई बहाना बनाकर उसे उपेक्षित करती है। यदि पति  या पत्नि ने दबाव डाल कर संबंध स्थापित कर लिया तो वादी इसे बलात्कार तक मान लेते हैं।
  विवाह संस्था में यौन संबंध अत्यावश्यक घटक होते हैं। पर अति सर्वत्र वर्जित के सिद्धांत को भी समझना चाहिए।
   दाम्पत्य जीवन में यौन संबंधों का महत्व भी अनदेखा नहीं किया जा सकता ।
अब यौन सुख के लिए नित नए प्रयोग सामने आ रहे हैं विवाह की आयु का निर्धारण तो कानूनी रूप से सुनिश्चित  है, पर यौनिकता से संबंधित कंटेंट की अधिकता होने से आयु सीमा नीचे आ गई है। अर्थात अब उम्र की न्यूनतम अवस्था 25 वर्ष से कम की सीमाएं टूटती नजर आती है। क्रश, बॉय  फ्रैंड गर्ल फ्रेंड, लिव इन, पैच अप, ब्रेक अप, स्वैपिंग, एक्स, और जाने कितने नए-नए शब्द जन्म ले चुके हैं।       
       बजट के परिवेश में और क्या देखना होगा यह तो भविष्य ही बताया परंतु वर्तमान यह अवश्य बता रहा है कि स्थिति विचित्र एवं नियंत्रण से बाहर होती नजर आ रही है।
  
   हाल ही में एक प्रतिष्ठित गायक के साथ यही घटनाक्रम हुआ। एक क्रिकेट प्लेयर भी इस समस्या से जूझ रहा है।
   आलेख का आशय यह नहीं कि केवल महिला ही दोषी है बल्कि यह बताना है कि बुद्धि के अतिशय प्रयोग एवं वासना  भारतीय पारिवारिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर रही है चाहे विक्टिम पति हो अथवा पत्नी ।
अधिकांश मामलों में दोष प्रमुखता से महिलाओं का ही सामने आया है जो दांपत्य जीवन के महत्वपूर्ण बिंदु यौन संबंध के प्रति विरक्त होती है । वास्तव में यह स्थिति पर निर्भर है इसमें किसी पुरुष या महिला को दोषी करार देना गलत होगा। सुखद दांपत्य जीवन के लिए जीवन में आध्यात्मिकता के समावेशन और सिंक्रोनाइजेशन की जरूरत है।

   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ कीजिए शायद सटीक लिख सकूं

ad

कुल पेज दृश्य