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शनिवार, 5 अप्रैल 2025

विनम्र श्रद्धांजलि मनोज कुमार जितने अमृता प्रीतम को दी थी नसीहत

  आज हम बात करेंगे भारतीय सिनेमा के एक ऐसे दिग्गज की, जिन्होंने अपनी अदाकारी और फिल्मों से देशभक्ति की ऐसी मिसाल कायम की, जो आज भी हमारे दिलों में बसी है। 
जी हां, हम बात कर रहे हैं "भारत कुमार" यानी मनोज कुमार की। 
 उनके जीवन का संघर्ष, राष्ट्र प्रेम, राष्ट्रीय मुद्दों पर फिल्में और उनके सुपरहिट गीतों की याद दिला रहे हैं 
  मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को हुआ था, ब्रिटिश भारत के एबटाबाद में, जो अब पाकिस्तान के ख़ैबरपख्तूनवा में है। 
    उनका असली नाम था हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी। 10 साल की उम्र में बंटवारे की त्रासदी ने उनके परिवार को दिल्ली के रिफ्यूजी कैंप तक पहुंचा दिया। दो महीने तक वहां रहने के बाद उन्होंने दिल्ली में अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर मुंबई का रुख किया। 
फिल्मी दुनिया में शुरुआत छोटे-मोटे कामों से हुई, लेकिन 1957 में फिल्म "फैशन" में एक मौका मिला और फिर "हरियाली और रास्ता", "शहीद" जैसी फिल्मों ने उन्हें स्टार बना दिया। लेकिन असली पहचान मिली उनकी देशभक्ति फिल्मों और उनके गीतों से।
  मनोज कुमार का राष्ट्र प्रेम उनकी फिल्मों में साफ दिखता है। 1965 में "शहीद" में भगत सिंह का किरदार निभाकर उन्होंने सबको प्रभावित किया। फिर 1967 में आई "उपकार", जो लाल बहादुर शास्त्री के नारे "जय जवान, जय किसान" से प्रेरित थी। इस फिल्म का गाना "मेरे देश की धरती" आज भी देशभक्ति का पर्याय है। सुनिए इसके बोल हैं :
"मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती..."
इस गाने ने हर हिंदुस्तानी के दिल में देश के लिए प्यार जगा दिया।
फिर आई "पूरब और पश्चिम"। इस फिल्म में उन्होंने भारतीय संस्कृति की ताकत दिखाई। इसका गाना "है प्रीत जहां की रीत सदा" बेहद लोकप्रिय हुआ:
"है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं...
    "रोटी कपड़ा और मकान" में गरीबी और सामाजिक मुद्दों को उठाया गया। इसका गाना "मैं ना भूलूंगा" 
तथा 1981 की फिल्म "क्रांति" का गाना "जिंदगी की ना टूटे लड़ी" हमें हौसला देता है:

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