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सोमवार, 26 अगस्त 2024

श्री कृष्ण की सार्वकालिक प्रासंगिकता अध्याय 01

  श्री कृष्ण की सार्वकालिक प्रासंगिकता
  अध्याय एक
कृष्ण की सर्वकालिक प्रासंगिकता के संदर्भ में कुछ कहने से पहले आपको बता देना आवश्यक है कि - "वैचारिक दृष्टि से विश्व दो भागों में विभक्त है। एक वे लोग जो"
एक:- ईश्वर के सर्वव्यापी होने पर विश्वास रखते हैं
दो:-  दूसरे वे लोग हैं जो सब कुछ ईश्वर का है पर भरोसा रखते हैं।
    दुर्भाग्य से दूसरी श्रेणी के लोगों की संख्या पहली श्रेणी के लोगों की संख्या से अधिक है।
    इस तथ्य उपरोक्त दोनों श्रेणियां में प्रथम श्रेणी में सनातन चिंतन, दूसरी श्रेणी में अब्राह्मिक चिंतन को रखा जा सकता है।
    सनातन चिंतक अहम् ब्रह्मास्मि, के उद्घोष के साथ ब्रह्म के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं।
   जबकि अब्राह्मिक चिंतन ईश्वर के अधीन सब है , कहते हुए ईश्वर अस्तित्व को स्वीकृति है।
    यह एक ऐसा तथ्य है मानो हम अगर रंगीन का चश्मा पहन लेते हैं तो जिस रंग का लैंस हम इस्तेमाल करेंगे दुनिया हमें इस रंग से रंगी नजर आएगी।
    अब्राह्मिक चिंतन के परिणाम स्वरूप पश्चिम और मध्य एशिया में कई दार्शनिक धाराएं वह निकलीं यह धाराएं कभी एक न हो सकीं। यहां तक की हिंसक युद्ध भी हुए। यहूदी क्रिश्चियन और इस्लामिक सिद्धांतों  को मानने वालों की आपसी संघर्ष आपको याद होंगे। जो आज तक जारी है।

लेकिन सनातन चिंतन के कारण भारत में सभी दार्शनिक धाराएं एक बिंदु पर एकत्र हुईं। परिणाम स्वरूप सनातन के शैव, वैष्णव, शाक्त , स्मार्त, संप्रदायों में कभी युद्ध नहीं हुए। सैद्धांतिक मतभेद  भी भले हो परंतु नरसंहार की स्थिति कभी नहीं बनी।
  ऐसा नहीं है कि सनातन धर्म के इतिहास में युद्ध न हुए हों। देवासुर संग्राम , शक्ति एवं राक्षसों के बीच संग्राम,  राम रावण युद्ध तथा महाभारत युद्ध , प्रमुख युद्ध है परंतु इन युद्धों का उद्देश्य केवल सनातन मूल्य का संरक्षण ही था। सनातन में मत परिवर्तन जैसी कोई अवधारणा ही नहीं है।
   हम अद्वैत को स्वीकार करते हैं। हमारी इस स्वीकृति का आधार कृष्ण का विराट दर्शन वाला विवरण ही है।
थोड़ी सी शिकायत है हमें विश्व की मान्यताओं एवं विचारधाराओं से जो भारतीय दर्शन को सनातन Eternal नहीं मानतीं।
    सनातन जिसका आदि और अंत अज्ञात है। सनातन जो अब तक पूरी तरह एक्सप्लोर [ Explore]नहीं हो सका है। 
  यहां यह भी विचारणीय है कि पश्चिम ने पूर्व को हमेशा नकारात्मक पोर्ट्रेट करने का प्रयास किया है।  उन्होंने राम तथा कृष्ण को मेथेलॉजिकल कैरक्टर सिद्ध करते हुए भारत विस्तृत इतिहास एवं सभ्यता के विकास को शून्य करने का प्रयास किया है।
   यदि आपने मेरी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 वर्ष ईसा पूर्व पढ़ी होगी तो अपने पाया होगा कि - "यूनान की तरह कहानियों में किसी भी देवी देवता का चित्रण नहीं किया बल्कि कुछ कथानकों के सहारे  संकेतों में सामाजिक व्यवस्था को सहज बनाने, नीति शास्त्र समझाने के लिए पात्रों का सृजन कर कहानियां लिखीं हैं, जैसा की प्रवचन देते देते योगी अथवा संत उदाहरण स्वरूप कुछ कहानियां सुनते हैं।
  इसी क्रम में श्रीराम एवं श्रीकृष्ण को विदेशियों ने काल्पनिक चरित्र निरूपित कर दिया।
   करोड़ों कालखंड में किए गए अन्वेषण के आधार पर जब यह पता लगा कि - त्रेता और द्वापर युग वास्तव में थे और उनकी पुष्टि रामायण तथा महाभारत में वर्णित नक्षत्रीय स्थिति पर नासा के सॉफ्टवेयर के अनुसार किए गए रिवर्स कैलकुलेशन से स्पष्ट होती है तो यह समझ में आ गया कि भारत को पिछड़ा साबित करने के लिए न केवल उसकी सांस्कृतिक पहचान बल्कि वैचारिक और दार्शनिक पहचान को भी मिटाने की कोशिश की गई है।
   मैक्स मूलर भारत के इतिहास को ईशा के 1500 वर्ष पूर्व स्थापित करते हैं वहीं दूसरी ओर बाल गंगाधर तिलक उसे 10000 ईसा पूर्व स्थापित करते हैं जबकि भारत के साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर मैक्स मूलर का अनुसरण करते नजर आते हैं।
महर्षि दयानंद पद्मश्री बी बी लाल मानव सभ्यता का प्रारंभ मानव के जन्म से मानते है। यदि मानव का निर्माण डेढ़ लाख वर्ष पूर्व हो गया था तो उसी समय सभ्यता ( Civilization ) प्रारंभ मानी जाती है। हम भारतीय सभ्यता के विकास क्रम को निश्चित नहीं कर पाए यही हमारी सबसे बड़ी भूल हुई है।
नक्षत्र की स्थिति को देखकर ज्ञात होता है कि  त्रेता युग का प्रारंभ 6677 ईसा पूर्व अर्थात आज से 8701 वर्ष पूर्व हुआ था। जबकि कृष्ण की द्वापर काल खंड को 3762 ईसा पूर्व निर्धारित करते हुए गणना करें तो पता चलता है कि - द्वापर युग 5786 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था।
   उपरोक्त विवरण प्रस्तुत करने का आधार यह है कि हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि भगवान श्रीराम एवं योगीराज श्रीकृष्ण कोई मेथोलॉजिकल  कैरेक्टर नहीं है।
   श्रीकृष्ण के जीवन की यात्रा पर हमारी कथा वाचक की कई बार असंगत और अविश्वसनीय तथ्य प्रस्तुत करते हैं। जो सर्व था गलत है। हमें भी पाखंडियों से बचते हुए श्रीकृष्ण के चरित्र को मूल कृतियों से समझने की कोशिश करना चाहिए।
   श्रीकृष्ण का जीवन विलक्षण था, वे वास्तव में लीलाधर थे। श्रीकृष्ण समता मूलक समाज की स्थापना करना चाहते थे, और उन्होंने ऐसा किया भी किंतु हर युग में कोई ना कोई ऐसा विचार और व्यक्ति आवश्यक होता है जो कि भ्रम पैदा कर के समाज में पूर्व स्थापित मापदंडों को खंडित करता ही है।
श्री कृष्ण न्याय, धर्म, सामाजिक संरचना सृष्टि की उत्पत्ति , राजनीति,  महा ब्रह्मांड की स्थिति, तथा ब्रह्म के अस्तित्व का प्रबोधन कर सके थे।
   विज्ञान अभी तक केवल अपने सौरमंडल को देख पाया है जबकि कृष्ण ने स्वयं को ब्रह्म स्वरूप होने का उदाहरण सहित चित्र भी अपनी माता और अर्जुन को दिखाया।
  असंख्य आकाशगंगाए , असंख्य सूर्य असंख्य तारे, ग्रह, उपग्रह, निहारिकाओं (Nebula) का नियंता जब स्वयं धर्म की रक्षा के लिए अर्जुन को शस्त्र उठाने के लिए प्रेरित करता है तो लगता है कि - "ईश्वर, सर्वव्यापी है!" यही सनातन की अवधारणा है.
  ब्रह्म का सब होते हुए भी, ब्रह्म को पृथ्वी पर आना पड़ता है। हमारे सौरमंडल में केवल एक पृथ्वी है, लेकिन महाब्रह्मांड में 50 करोड़ से भी अधिक जीवन की प्रत्याशा वाले गृह मौजूद हैं।
यह कोई काल्पनिक विवरण नहीं है। इस पर बाकायदा वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे हैं। हमारी गैलेक्सी में ही हजारों सूर्य हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि क्षीर मार्ग आकाशगंगा ( Milky Way) में कितने ग्रह हो सकते हैं जहां श्री राम और श्रीकृष्ण जैसे भगवान का अवतरण न होता होगा?
   आज हम भगवान श्री कृष्ण का जन्म पर मना रहे हैं। नक्षत्र गणना के अनुसार उनका जन्म भाद्रपद अष्टमी को ही हुआ था। इस तथ्य का प्रमाण सभी ग्रंथ देते हैं।  बस एक कमी रह गई है जिससे हम उनके कल अनुक्रम को निश्चित नहीं कर पाए।
   कौरव और पांडव के बीच धर्म की रक्षा करने वाले भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र माखन चोर, रासलीला करने वाला व्यक्ति निरूपित करने वालों के प्रति मेरा मन इस कारण दया भाव से भर जाता है क्योंकि वे बेचारे अज्ञानता वश न तो कृष्ण को समझ पाए हैं न ही वे समझ पाएंगे । इसीलिए महात्मा तुलसी ने कहा था - "कलयुग केवल नाम आधारा"
अर्थात हम केवल ईश्वर के नमस्मरण मात्र से मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।
अध्याय दो
श्री कृष्ण के संदर्भ में मौलिक तथ्य हमें केवल महाभारत तथा गीता, एवं पौराणिक कथाओ से प्राप्त हुए हैं।
  पौराणिक कथाओं के संबंध में यह बताना आवश्यक है कि - श्रुति परंपरा से प्राप्त जानकारियां पुराण में लिपिबद्ध कब की गई जब लेखन कार्य प्रारंभ हुआ।
द्वापर युग त्रेता युग के सापेक्ष अधिक आधुनिक है। ऐसी स्थिति में श्रुति आधारित लेखन ज्यादा स्पष्ट और सही माना जाना चाहिए।
   पुरातात्विक अवशेष मिलने से  ऐसे तथ्य भी स्पष्ट हो रहे हैं , जिनसे पता चलता है कि - महाभारत युद्ध से जुड़ी घटनाएं काल्पनिक नहीं है.
    जब घटनाएं काल्पनिक नहीं है तो उसे युग के मुख्य केंद्र अर्थात भगवान श्री कृष्ण को मिथक कैसे माना जा सकता है।
  उपरोक्त पुष्टि के उपरांत कृष्ण के जीवन चरित्र पर हम दृष्टिपात करते हैं।
कृष्ण का जन्म विषम परिस्थितियों में हुआ था।
    बुद्ध महावीर स्वामी और ईसा मसीह का अवतरण जिस तरह से हुआ है ठीक उसी तरह कृष्ण का जन्म होना स्वाभाविक है।
    उपरोक्त सभी जन्म, जन्म न होकर एक विलक्षण घटना हैं। जिसमें मत भिन्नता हो सकती है। विज्ञान अब प्राकृतिक रूप से जन्म को स्वीकार नहीं करेगा। और जो ईश्वर तत्व को मानते हैं भी विज्ञान की अस्वीकृति को स्वीकार नहीं करेंगे।
   विज्ञान उतना ही जानता है जितना वह देख सकता है। विज्ञान उतना ही देख सकता है जितना उसके पास देखने के लिए संसाधन होते हैं। अभी ब्रह्मांड के घटनाक्रमों को विज्ञान पूरी तरह देखने में असफल रहा है। भविष्य में देख सकता है इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
    
(अगले अंक में जारी ) 

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