तुम तक मुझे बिना पैरों
के ले आई..!
तुमने भी था स्वीकारा मेरा न्योता
वही मदालस एहसास
होता है साथ
होता है साथ
तुम जो कभी कह न सकी
हम जो कभी सुन न सके !
उसी प्रेमिल संवाद की तलाश में
प्रेम जो देह से ऊपर
प्रेम जो ह्रदय की धरोहर
उसे संजोना मेरी तुम्हारी जवाबदारी
क्योंकि
क्योंकि
नहीं हैं हम
पल भर के अभिसारी
हम हैं
पल भर के अभिसारी
हम हैं
उन दो तटों से जो साथ साथ रहतें हैं
जानती हो
हमारे बीच जाने
जाने कितने धारे बहते हैं
हमारे बीच जाने
जाने कितने धारे बहते हैं
अनंत तक साथ साथ
है मिलने का विश्वास
तुम जो निश्छल कल कल सरिता
तुम्हारा एहसास कभी नहीं रखता मुझे रीता
आज भी मेरे
गिर्द
भगौना भर कामना लेकर आतीं हो
मुस्कुराती और फिर अचानक
खुद को खुद की परिमिति में बाँध
बाँध देती हो मुझे
मेरी परिधि में
जहां से शुरू होती है
शाश्वत प्रीत यात्रा ....
सच तुम निर्दयी नहीं हो .
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
जवाब देंहटाएंआभार संजय भाई
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