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सोमवार, 14 जून 2010

मन बैठा विजयी सा रथ में !!

तुम संग नेह की जोत जगा के
हमने जीते जीवन के तम  ..!
********************
धीरज अरु  व्याकुलता  पल के
द्वन्द मचाते जीवन पथ में ,
तुमसे मिल के  शांत सहज सब
मन बैठा विजयी सा रथ में !!
कितने  पावन हो तुम प्रियतम 
********************
नेह-परोसा,  लेकर जो  तुम
आते  मेरे सन्मुख   जब भी ,
तृप्ति मुझे मिल जाया  करती
रन-झुन पायल ध्वनि से तब ही !
कितने  पावन हो तुम प्रियतम !!
________________________________________
इधर सुन भी लीजिये जी

11 टिप्‍पणियां:

  1. नेह-परोसा' वाह क्या शब्द चयन किया है
    सुन्दर भाव
    अच्छा लगा पढकर

    जवाब देंहटाएं
  2. नेह-परोसा, लेकर जो तुम
    आते मेरे सन्मुख जब भी ,
    तृप्ति मुझे मिल जाया करती
    रन-झुन पायल ध्वनि से तब ही !
    कितने पावन हो तुम प्रियतम !!
    --
    अच्छे शब्द-संयोजन के साथ बढ़िया रचना!

    जवाब देंहटाएं
  3. waah adbhut...sundar shringaar rachna...shabd aur bhaav sanyojan lajawaab...

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रियतम शब्द में ही ऊर्जा है ।
    सुंदर शब्द चयन ,अच्छी अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर कविता...बहुत ही एहसास भरी..धन्यवाद गिरीश जी

    जवाब देंहटाएं
  6. तृप्ति मुझे मिल जाया करती
    रन-झुन पायल ध्वनि से तब ही !

    Beautiful Creation !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूबसूरत कविता......

    मंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना ( हां..! ये शाम उस शाम से जारी)... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है


    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

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