तुम संग नेह की जोत जगा के
हमने जीते जीवन के तम ..!
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धीरज अरु व्याकुलता पल के
द्वन्द मचाते जीवन पथ में ,
तुमसे मिल के शांत सहज सब
मन बैठा विजयी सा रथ में !!
कितने पावन हो तुम प्रियतम
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नेह-परोसा, लेकर जो तुम
आते मेरे सन्मुख जब भी ,
तृप्ति मुझे मिल जाया करती
रन-झुन पायल ध्वनि से तब ही !
कितने पावन हो तुम प्रियतम !!
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सोमवार, 14 जून 2010
मन बैठा विजयी सा रथ में !!

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नेह-परोसा' वाह क्या शब्द चयन किया है
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव
अच्छा लगा पढकर
नेह-परोसा, लेकर जो तुम
जवाब देंहटाएंआते मेरे सन्मुख जब भी ,
तृप्ति मुझे मिल जाया करती
रन-झुन पायल ध्वनि से तब ही !
कितने पावन हो तुम प्रियतम !!
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अच्छे शब्द-संयोजन के साथ बढ़िया रचना!
waah adbhut...sundar shringaar rachna...shabd aur bhaav sanyojan lajawaab...
जवाब देंहटाएंप्रियतम शब्द में ही ऊर्जा है ।
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द चयन ,अच्छी अभिव्यक्ति ।
सुंदर कविता...बहुत ही एहसास भरी..धन्यवाद गिरीश जी
जवाब देंहटाएंबढ़िया...
जवाब देंहटाएंतृप्ति मुझे मिल जाया करती
जवाब देंहटाएंरन-झुन पायल ध्वनि से तब ही !
Beautiful Creation !
बहुत खूबसूरत कविता......
जवाब देंहटाएंमंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना ( हां..! ये शाम उस शाम से जारी)... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंनत मस्तक हूं सुधि जन
जवाब देंहटाएंExcellent....
जवाब देंहटाएंNeh ki jyot... har lafz pyaar se bharpur ...!