अक्सर
प्रीत की मदालस गंध के बीच
आ जाती है बेपरावह सी
रिश्तों की कतरनें
जो बिखेरदीं गईं हैं जान बूझकर
शायद इस लिये भी की बना रहे अनुशासन
तुम मुझे प्रीत थी है और रहेगी
बस तुम्हारा इंतज़ार करता रहूँगा हाँ, मैं तुमसे प्यार करता रहूँगा
मुझे आदत है
सहने की चुप रहने की
मुझे देह से नहीं तुमसे प्यार है
मुझे बस तुम्हारी प्यार भरी बातों से सरोकार है
तुम पास नहीं साथ नहीं
फिर भी तुम्हारा प्यार तो है
हां मेरी जागीर यही है
मन में मेरे धीरज है
तुम पिघलोगी मुझे यकीन है
पिघला देता हूँ मैं पत्थर को मोम सा
सच मेरे प्यार की /मेरे इश्क की तासीर यही है
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मंगलवार, 23 मार्च 2010
मेरे इश्क की तासीर यही है

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तुम पिघलोगी मुझे यकीन है
जवाब देंहटाएंपिघला देता हूँ मैं पत्थर को मोम सा
सच मेरे प्यार की /मेरे इश्क की तासीर यही है
काश यह तासीर उम्र भर बरकरार रहे!!
पिघलना ही होगा
सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएं-
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
वाह.. सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग की साज-सज्जा बह्त अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंउम्दा कविता
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