अक्सर
प्रीत की मदालस गंध के बीच
आ जाती है बेपरावह सी
रिश्तों की कतरनें
जो बिखेरदीं गईं हैं जान बूझकर
शायद इस लिये भी की बना रहे अनुशासन
तुम मुझे प्रीत थी है और रहेगी
बस तुम्हारा इंतज़ार करता रहूँगा हाँ, मैं तुमसे प्यार करता रहूँगा
मुझे आदत है
सहने की चुप रहने की
मुझे देह से नहीं तुमसे प्यार है
मुझे बस तुम्हारी प्यार भरी बातों से सरोकार है
तुम पास नहीं साथ नहीं
फिर भी तुम्हारा प्यार तो है
हां मेरी जागीर यही है
मन में मेरे धीरज है
तुम पिघलोगी मुझे यकीन है
पिघला देता हूँ मैं पत्थर को मोम सा
सच मेरे प्यार की /मेरे इश्क की तासीर यही है
Wikipedia
खोज नतीजे
मंगलवार, 23 मार्च 2010
मेरे इश्क की तासीर यही है
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में।
शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी
छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन
सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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तुम पिघलोगी मुझे यकीन है
जवाब देंहटाएंपिघला देता हूँ मैं पत्थर को मोम सा
सच मेरे प्यार की /मेरे इश्क की तासीर यही है
काश यह तासीर उम्र भर बरकरार रहे!!
पिघलना ही होगा
सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएं-
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
वाह.. सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग की साज-सज्जा बह्त अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंउम्दा कविता
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