मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम
मन अनुरागी जोगी तेरा
हम-तुम में कैसी ये अनबन
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कितने रुच रुच नेह निवाले
सोच सोच कर रखतीं हो !
एकाकी होती हो जब तुम
याद मेरी कर हंसती हो !
मत रोको अब प्रेम धार को
कह दो कब होगा मन संगम
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम..!
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पीत-वसन -प्रीत भरा मन
पल-पल मुझसे मिलने आना
कोई और निहारे मुझको
बिना लपट के वो जल जाना
प्रेम पथिक हम दौनों ही हैं
प्रिय तुम ही अब तोड़ो मन संयम !
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम..!
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चित्र साभार:स्वप्न मंजूषा शैल व्हावा http://mishraarvind.blogspot.com
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बहुत सुन्दर!! कोमल रचना.
जवाब देंहटाएंकोई और निहारे मुझको
जवाब देंहटाएंबिना लपट के वो जल जाना.....
प्रेम का एक रूप यह भी है ....!!
बहुत सुन्दर!! कोमल रचना....
जवाब देंहटाएंपीत-वसन -प्रीत भरा मन
जवाब देंहटाएंपल-पल मुझसे मिलने आना
कोई और निहारे मुझको
बिना लपट के वो जल जाना
प्रेम पथिक हम दौनों ही हैं
प्रिय तुम ही अब तोड़ो मन संयम !
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम..! ितनी सुन्दर रचना पर निश्ब्द हो गयी हूँ। बहुत बहुत बधाई
आप सभी का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंपधारने का
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं....!
जवाब देंहटाएंप्रेम पथिक हम दौनों ही हैं
जवाब देंहटाएंप्रिय तुम ही अब तोड़ो मन संयम !
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम.....
निर्मल प्रवाह की तरह बहती हुई रचना .... सुंदर शब्द, कोमल भावनाएँ है .....