प्रथम प्रीत का प्रेमपत्र ही
सिहरन धड़कन का कारन अब
नयनगंग की इन धारों को
लौट के देखा तुमने है कब
प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा
कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम
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हुई हुलासी थी तुम जब तुमने
प्रेमपंथ की डोर सम्हाली
कैसे लुक-छिप के मिलना है
तुमने ही थी राह निकाली
जब-तब अंगुली उठी किसी की
थी तुमने ही बात सम्हाली !
याद करो झूठी बातों पर
हम-तुम बीच हुई थी अनबन...!
प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा
कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम
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आज विरह का एकतारा ले
स्मृतियों के गलियारों से
तुम्हें खोजने निकल पडा हूँ
अमराई में कचनारों में
जब तक नहीं मिलोगे प्रियतुम
सफ़र रहेगा अंगारों में
इस यायावर जीवन
कोई तो देगा मन-संयम
प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा
कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम
आज विरह का एकतारा ले
जवाब देंहटाएंस्मृतियों के गलियारों से
तुम्हें खोजने निकल पडा हूँ
अमराई में कचनारों में
जब तक नहीं मिलोगे प्रियतुम
सफ़र रहेगा अंगारों में
इस यायावर जीवन
कोई तो देगा मन-संयम
प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा
कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम
वाह गिरीश जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
आज विरह का एकतारा ले स्मृतियों के गलियारों से
जवाब देंहटाएंतुम्हें खोजने निकल पडा हूँ अमराई में कचनारों में
स्मृतियों के गलियारे में जो हर पल है साथ ...उसे यहाँ वहां कहाँ खोजेंगे ....
" कस्तूरी कुंडली बसे...मृग ढूंढे जग माहि .."
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रविवार, २२ नवम्बर २००९
प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम
प्रथम प्रीत का प्रेमपत्र ही
सिहरन धड़कन का कारन अब
नयनगंग की इन धारों को
लौट के देखा तुमने है कब
प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा
कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम
bahut hi sundar bhav bhar diye hain.