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मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

नेपाल में कुमारी देवी की परम्परा





नेपाल में कुमारी देवी की परंपरा एक अनूठी और प्राचीन सांस्कृतिक प्रथा है, जो हिंदू और बौद्ध धर्म के संन्यासी तत्वों का मिश्रण है। यह परंपरा विशेष रूप से काठमांडू घाटी के नेवार समुदाय से जुड़ी हुई है, जहां एक युवा कन्या को जीवित देवी के रूप में पूजा जाता है। कुमारी को तलेजु भवानी या दुर्गा का अवतार माना जाता है, जो शक्ति और पवित्रता का प्रतीक है। यह परंपरा न केवल धार्मिक विश्वासों को दर्शाती है, बल्कि नेपाल की सामाजिक संरचना और ऐतिहासिक विकास को भी प्रतिबिंबित करती है। नीचे इस परंपरा से जुड़े सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें मूल लेख के तथ्य संरक्षित हैं और छूटे हुए पहलुओं को शामिल किया गया है।

कुमारी की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कुमारी परंपरा की शुरुआत मल्ल राजवंश (12वीं से 18वीं सदी) के दौरान मानी जाती है। एक किंवदंती के अनुसार, मल्ल राजा जय प्रकाश मल्ल और देवी तलेजु के बीच एक घटना घटी थी। कहा जाता है कि देवी तलेजु राजा के साथ पासे खेलने आती थीं, लेकिन एक दिन राजा के मन में गलत विचार आया, जिससे नाराज होकर देवी ने कहा कि अब वह केवल एक कन्या के रूप में दर्शन देंगी। तब से यह परंपरा शुरू हुई कि एक युवा कन्या को कुमारी के रूप में चुना जाता है। यह भी माना जाता है कि यह प्रथा शक्ति पूजा और तांत्रिक परंपराओं से प्रभावित है। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि यह परंपरा प्राचीन शाक्त परंपराओं से प्रेरित हो सकती है, जो नारी शक्ति को सर्वोच्च मानती हैं।

 कुमारी का चयन
कुमारी का चयन एक जटिल और कठोर प्रक्रिया से होता है। इसके लिए निम्नलिखित मानदंडों का पालन किया जाता है:
1. आयु और शारीरिक विशेषताएं
 कुमारी आमतौर पर 3 से 7 साल की उम्र की एक कन्या होती है, जिसके शरीर पर कोई निशान या दोष नहीं होना चाहिए। उसे 32 शारीरिक गुणों (लक्षणों) की जांच से गुजरना पड़ता है, जैसे "हंस की तरह सुंदर गर्दन", "शेर की तरह छाती", "कोमल और साफ त्वचा", और "गहरी काली आंखें"।
2. जाति: कुमारी हमेशा नेवार समुदाय के बौद्ध शाक्य या बज्राचार्य परिवार से चुनी जाती है, जो सुनार या पुजारी वर्ग से संबंधित होते हैं। यह नेवार समुदाय की बौद्ध-हिंदू संकर संस्कृति का प्रमाण है।
3. ज्योतिषीय संगतता: कन्या की जन्मकुंडली की जांच की जाती है ताकि यह सुनिश्चित हो कि वह शाही परिवार और देश के लिए शुभ होगी। उसकी कुंडली में मंगल और शनि जैसे ग्रहों का प्रभाव न्यूनतम होना चाहिए।
4. नन्हा परीक्षण: चयन की अंतिम परीक्षा में कन्या को भयानक परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। उसे एक अंधेरे कमरे में नकाबपोश नर्तकों, बलि के जानवरों के सिरों और तेज आवाजों के बीच नन्हा (कालरात्रि) में बिना डरे रहना होता है। यह साहस, शांति और अलौकिक शक्ति का प्रमाण माना जाता है।

कुमारी का जीवन
एक बार चुने जाने के बाद, कुमारी को काठमांडू के कुमारी घर (कुमारी बहाल) में स्थापित किया जाता है। उसका जीवन सामान्य बच्चों से बहुत अलग होता है:
देवी के रूप में जीवन: उसे लाल वस्त्र, सोने के आभूषण और माथे पर विशेष तिलक (अग्नि चक्र या तेस्रो आँख) से सजाया जाता है। उसका हर कदम पवित्र माना जाता है, और उसकी उपस्थिति को शक्ति का स्रोत माना जाता है।
सीमित स्वतंत्रता : कुमारी को घर से बाहर कम ही निकलने दिया जाता है, सिवाय विशेष त्योहारों के जैसे इंद्रजात्रा। उसके पैर जमीन को नहीं छूते, और उसे पालकी में ले जाया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि उसका जमीन से संपर्क उसकी पवित्रता को कम कर सकता है।
शिक्षा और परिवार : उसे औपचारिक शिक्षा नहीं दी जाती, हालांकि कुछ आधुनिक मामलों में पूर्व कुमारियों ने बताया कि उन्हें घर पर बेसिक पढ़ाई दी गई थी। परिवार से उसका संपर्क सीमित हो जाता है, लेकिन परिवार के सदस्य उससे मिल सकते हैं।
सेवा अवधि: कुमारी तब तक इस भूमिका में रहती है, जब तक उसे पहला मासिक धर्म नहीं होता या कोई रक्तस्राव नहीं होता (जैसे चोट लगने से), क्योंकि यह माना जाता है कि इससे उसकी पवित्रता समाप्त हो जाती है। इसके बाद नई कुमारी का चयन होता है, और पूर्व कुमारी सामान्य जीवन में लौटती है।

 कुमारी की पूजा और महत्व
कुमारी को शक्ति और रक्षा की देवी माना जाता है। लोग उससे आशीर्वाद लेने आते हैं, विशेष रूप से इंद्रजात्रा त्योहार के दौरान, जब वह जनता को दर्शन देती है और माथे पर टीका लगाती है। नेपाल के राजा भी परंपरागत रूप से उससे आशीर्वाद लेते थे, क्योंकि माना जाता था कि कुमारी की स्वीकृति से ही उनका शासन वैध होता है। 2008 में राजशाही समाप्त होने के बाद, अब राष्ट्रपति इस परंपरा को निभाते हैं। कुमारी का आशीर्वाद समृद्धि और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। कुछ मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि उसकी हरकतों—जैसे रोना या बेचैनी—को भविष्य के संकेत के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन यह औपचारिक भविष्यवाणी नहीं है।
 आपदाओं से संबंध का दावा
कुछ यूट्यूब चैनलों और आधुनिक व्याख्याओं में कुमारी को नेपाल में होने वाली आपदाओं (जैसे 2015 का भूकंप) के संदेश देने वाली देवी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के लिए, यह दावा किया जाता है कि कुमारी घर का भूकंप में सुरक्षित रहना उनकी दिव्य शक्ति का प्रमाण है। हालांकि, परंपरागत ग्रंथों या ऐतिहासिक साक्ष्यों में कुमारी को आपदा की सूचक के रूप में वर्णित नहीं किया गया है। यह संभव है कि यह व्याख्या सनसनीखेजीकरण का परिणाम हो। कुछ घटनाओं, जैसे 2001 में चनिरा बज्राचार्य का रोना और उसके बाद शाही नरसंहार, को बाद में संकेत के रूप में जोड़ा गया, लेकिन यह पूर्व घोषणा नहीं थी। कुमारी घर की मजबूत संरचना (लकड़ी और ईंटों से बना चौकोर ढांचा) भी इसके भूकंप में सुरक्षित रहने का कारण हो सकती है, न कि केवल अलौकिक शक्ति। विद्वानों और पुजारियों का कहना है कि कुमारी का उद्देश्य आशीर्वाद और शांति प्रदान करना है, न कि आपदा की चेतावनी देना।
आधुनिक संदर्भ में विवाद और चुनौतियां
हाल के वर्षों में कुमारी परंपरा पर कई सवाल उठे हैं:
बाल अधिकार : मानवाधिकार संगठनों, जैसे यूएन कमेटी ऑन द राइट्स ऑफ द चाइल्ड, का कहना है कि यह प्रथा बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन करती है, क्योंकि कुमारी को सामान्य बचपन, शिक्षा और स्वतंत्रता से वंचित कर दिया जाता है।
सामाजिक समायोजन : कुमारी के पद से हटने के बाद कई पूर्व कुमारियों (जैसे रश्मिला शाक्य) को सामान्य जीवन में ढलने में कठिनाई होती है। कुछ का कहना है कि लोग उनसे शादी करने से हिचकते हैं, क्योंकि उन्हें "पूर्व देवी" माना जाता है, हालांकि सरकार अब उन्हें पेंशन प्रदान करती है।
परंपरा बनाम आधुनिकता : कुछ लोग इसे सांस्कृतिक धरोहर मानते हैं, जबकि अन्य इसे पुरातन और अप्रासंगिक मानते हैं। 2007 में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने इस परंपरा की जांच की और इसे जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन बेहतर देखभाल और शिक्षा की सिफारिश की।

 निष्कर्ष
कुमारी देवी की परंपरा नेपाल की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का एक अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल नेवार समुदाय की आस्था को दर्शाती है, बल्कि इतिहास, परंपरा और विश्वास के बीच संतुलन की एक मिसाल भी पेश करती है। आपदाओं से संबंध जैसे दावे आधुनिक व्याख्याएं हो सकते हैं, जो मूल परंपरा से मेल नहीं खाते। हालांकि, आधुनिक युग में इसके मानवीय पहलुओं पर विचार करना जरूरी हो गया है। यह परंपरा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को कैसे संरक्षित करें, साथ ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों का सम्मान भी करें। यह एक जीवंत परंपरा है, जो आज भी नेपाल की आत्मा में बसी हुई है।
Disclaimer: This article is created in collaboration with Grok XAI for Mann Ki Baat blog in Hindi and Nepali language
डिस्क्लेमर: यह लेख "मन की बात" ब्लॉग के लिए हिन्दी और नेपाली भाषा में ग्रोक एक्सएआई (Grok XAI) के सहयोग से बनाया गया है।

नेपालमा कुमारी देवी को परम्परा

नेपालमा कुमारी देवी को परम्परा एक अद्वितीय र प्राचीन सांस्कृतिक प्रथा हो, जसमा हिन्दू र बौद्ध धर्मका तत्वहरूको संयोजन पाइन्छ। यो परम्परा विशेष गरी काठमाडौं उपत्यकाको नेवार समुदायसँग जोडिएको छ, जहाँ एउटी सानी बालिकालाई जीवित देवीको रूपमा पूजा गरिन्छ। कुमारीलाई तलेजु भवानी वा दुर्गाको अवतार मानिन्छ, जो शक्ति र पवित्रताको प्रतीक हो। यो परम्पराले धार्मिक विश्वास मात्र होइन, नेपालको सामाजिक संरचना र ऐतिहासिक विकासलाई पनि झल्काउँछ। तल यो परम्परासँग सम्बन्धित सबै महत्त्वपूर्ण बुँदाहरूको विस्तृत विवरण दिइएको छ, जसमा मूल लेखका तथ्यहरू संरक्षित छन् र छुटेका पक्षहरू पनि समावेश गरिएका छन्।

कुमारीको उत्पत्ति र ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कुमारी परम्पराको सुरुवात मल्ल वंश (१२औँ देखि १८औँ शताब्दी) को समयमा भएको मानिन्छ। एउटा किंवदन्तीअनुसार, मल्ल राजा जय प्रकाश मल्ल र देवी तलेजुबीच एउटा घटना भएको थियो। भनिन्छ, देवी तलेजु राजासँग पासा खेल्न आउँथिन्, तर एक दिन राजाको मनमा गलत विचार आयो, जसले रिसाएर देवीले अब आफू केवल कन्या को रूपमा दर्शन दिने बताइन्। त्यसपछि यो परम्परा शुरू भयो कि एउटी सानी कन्यालाई कुमारीको रूपमा छानिन्छ। यो परम्परा शक्ति पूजा र तान्त्रिक परम्पराबाट प्रभावित भएको पनि मानिन्छ। केही विद्वानहरूको मत छ कि यो प्रथा प्राचीन शाक्त परम्पराबाट प्रेरित छ, जसले नारी शक्तिलाई सर्वोच्च ठान्छ।

कुमारीको छनोट
कुमारीको छनोट एउटा जटिल र कठोर प्रक्रियाबाट हुन्छ। यसका लागि निम्न मापदण्डहरू पालना गरिन्छ:
1. उमेर र शारीरिक विशेषताहरू
 कुमारी सामान्यतया ३ देखि ७ वर्षको उमेरकी कन्या हुन्छिन्, जसको शरीरमा कुनै चोटपटक वा दोष हुनुहुँदैन। उनलाई ३२ शारीरिक गुणहरू (लक्षणहरू) को जाँचबाट गुज्रनुपर्छ, जस्तै "हाँसको जस्तो सुन्दर घाँटी", "सिंहको जस्तो छाती", "कोमल र सफा छाला", र "गहिरो कालो आँखा"।
2. जात : कुमारी सधैँ नेवार समुदायको बौद्ध शाक्य वा वज्राचार्य परिवारबाट छानिन्छिन्, जो सुनार वा पुजारी वर्गसँग सम्बन्धित हुन्छन्। यो नेवार समुदायको बौद्ध-हिन्दू संकर संस्कृतिको प्रमाण हो।
3.ज्योतिषीय अनुकूलता : कन्याको जन्मकुण्डली जाँच गरिन्छ ताकि उनी राजपरिवार र देशका लागि शुभ होउन्। उनको कुण्डलीमा मंगल र शनि जस्ता ग्रहहरूको प्रभाव कम हुनुपर्छ।
4. नन्हा परीक्षा : छनोट को अन्तिम परीक्षामा कन्यालाई डरलाग्दो परिस्थितिबाट गुज्रनुपर्छ। उनले अँध्यारो कोठामा नकाब लगाएका नर्तकहरू, बलिका जनावरका टाउकाहरू र ठूलो आवाजबीच नन्हा (कालरात्रि) मा नडराई बस्नुपर्छ। यो साहस, शान्ति र अलौकिक शक्तिको प्रमाण मानिन्छ।

 कुमारी को जीवन
एकपटक छानिएपछि, कुमारीलाई काठमाडौंको कुमारी घर (कुमारी बहाल) मा स्थापित गरिन्छ। उनको जीवन सामान्य बालबालिकाभन्दा धेरै फरक हुन्छ:
-देवीको रूपमा जीवन : उनलाई रातो वस्त्र, सुनका गहनाहरू र निधारमा विशेष तिलक (अग्नि चक्र वा तेस्रो आँखा) ले सजाइन्छ। उनको हरेक कदम पवित्र मानिन्छ, र उनको उपस्थितिलाई शक्तिको स्रोत ठानिन्छ।
- सीमित स्वतन्त्रता : कुमारी लाई घरबाहिर कमै निस्कन दिइन्छ, विशेष पर्वहरू जस्तै इन्द्रजात्रा बाहेक। उनको खुट्टाले जमिन छुनुहुँदैन, र उनलाई डोलीमा बोकेर लैजान्छन्, किनभने उनको जमिनसँग सम्पर्कले पवित्रता कम हुन्छ भन्ने मान्यता छ।
शिक्षा र परिवार : उनलाई औपचारिक शिक्षा दिइँदैन, यद्यपि केही आधुनिक अवस्थामा पूर्व कुमारहरूले घरमा आधारभूत पढाइ भएको बताएका छन्। परिवारसँग उनको सम्पर्क सीमित हुन्छ, तर परिवारका सदस्यहरू उनलाई भेट्न सक्छन्।
सेवा अवधि : कुमारी त्यतिबेलासम्म यो भूमिकामा रहन्छिन्, जबसम्म उनलाई पहिलो महिनावारी हुँदैन वा कुनै रक्तस्राव (जस्तै चोट लागेर) हुँदैन, किनभने यो मानिन्छ कि यसले उनको पवित्रता समाप्त गर्छ। त्यसपछि नयाँ कुमारी छानिन्छ, र पूर्व कुमारी सामान्य जीवनमा फर्किन्छिन्।

 कुमारी को पूजा र महत्त्व
कुमारी लाई शक्ति र सुरक्षाकी देवी मानिन्छ। मानिसहरू उनबाट आशीर्वाद लिन आउँछन्, विशेष गरी इन्द्रजात्रा पर्वमा, जब उनी जनतालाई दर्शन दिन्छिन् र निधारमा टीका लगाउँछिन्। नेपालका राजाले पनि परम्परागत रूपमा उनबाट आशीर्वाद लिन्थे, किनभने यो मानिन्थ्यो कि कुमारीको स्वीकृतिबाटै उनको शासन वैध हुन्छ। सन् २००८ मा राजतन्त्र समाप्त भएपछि, अहिले राष्ट्रपतिले यो परम्परा निभाउँछन्। कुमारीको आशीर्वाद समृद्धि र सुरक्षाको प्रतीक मानिन्छ। केही मान्यतामा भनिन्छ कि उनको व्यवहार—जस्तै रुनु वा बेचैनी—लाई भविष्यको संकेतको रूपमा हेरिन्छ, तर यो औपचारिक भविष्यवाणी होइन।

विपदहरूसँग सम्बन्धको दाबी
केही यूट्यूब च्यानलहरू र आधुनिक व्याख्याहरूमा कुमारीलाई नेपालमा हुने विपदहरू (जस्तै सन् २०१५ को भूकम्प) को सन्देश दिने देवीको रूपमा प्रस्तुत गरिएको छ। उदाहरणका लागि, दाबी गरिन्छ कि कुमारी घर भूकम्पमा सुरक्षित रहनु उनको दैवी शक्तिको प्रमाण हो। तर, परम्परागत ग्रन्थहरू वा ऐतिहासिक प्रमाणहरूमा कुमारीलाई विपदको सूचकको रूपमा वर्णन गरिएको छैन। यो सम्भव छ कि यो व्याख्या सनसनी फैलाउने उद्देश्यले हो। केही घटनाहरू, जस्तै सन् २००१ मा चनिरा वज्राचार्यको रुनु र त्यसपछिको शाही हत्याकाण्ड, पछि संकेतको रूपमा जोडिएको थियो, तर यो पहिलेदेखिको घोषणा थिएन। कुमारी घरको बलियो संरचना (काठ र इँटाको चौकोणीय ढाँचा) पनि भूकम्पमा सुरक्षित रहनुको कारण हुन सक्छ, न कि केवल अलौकिक शक्ति। विद्वानहरू र पुजारीहरू भन्छन् कि कुमारीको उद्देश्य आशीर्वाद र शान्ति दिनु हो, विपदको चेतावनी दिनु होइन।

 आधुनिक सन्दर्भमा विवाद र चुनौतीहरू
हालका वर्षहरूमा कुमारी परम्परामाथि धेरै प्रश्न उठेका छन्:
-
बाल अधिकार : मानवअधिकार संगठनहरू, जस्तै यूएन कमिटी अन द राइट्स अफ द चाइल्ड, भन्छन् कि यो प्रथाले बाल अधिकारको उल्लंघन गर्छ, किनभने कुमारीलाई सामान्य बाल्यकाल, शिक्षा र स्वतन्त्रताबाट वञ्चित गरिन्छ।
सामाजिक समायोजन : कुमारी को पदबाट हटेपछि धेरै पूर्व कुमारीहरू (जस्तै रश्मिला शाक्य) लाई सामान्य जीवनमा समायोजन गर्न कठिन हुन्छ। केही भन्छन् कि मानिसहरू उनीहरूसँग विवाह गर्न हिच्किचाउँछन्, किनभने उनीहरूलाई "पूर्व देवी" मानिन्छ, यद्यपि सरकारले अहिले उनीहरूलाई पेन्सन दिन्छ।
परम्परा बनाम आधुनिकता: केहीले यसलाई सांस्कृतिक सम्पदा ठान्छन्, भने केहीले पुरातन र अप्रासंगिक मान्छन्। सन् २००७ मा नेपालको सर्वोच्च अदालतले यो परम्पराको जाँच गर्‍यो र यसलाई जारी राख्न अनुमति दियो, तर राम्रो हेरचाह र शिक्षाको सिफारिस गर्‍यो।
 निष्कर्ष
कुमारी देवीको परम्परा नेपालको समृद्ध सांस्कृतिक र धार्मिक पहिचानको अभिन्न अंग हो। यो नेवार समुदायको आस्थालाई मात्र झल्काउँदैन, इतिहास, परम्परा र विश्वासबीच सन्तुलनको उदाहरण पनि प्रस्तुत गर्छ। विपदहरूसँग सम्बन्ध जस्ता दाबीहरू आधुनिक व्याख्या हुन सक्छन्, जुन मूल परम्परासँग मेल खाँदैनन्। तथापि, आधुनिक युगमा यसका मानवीय पक्षहरूमा विचार गर्न आवश्यक भएको छ। यो परम्पराले हामीलाई हाम्रो सांस्कृतिक सम्पदालाई कसरी संरक्षण गर्ने र व्यक्तिगत स्वतन्त्रता तथा अधिकारको सम्मान कसरी गर्ने भन्ने सोच्न बाध्य बनाउँछ। यो एक जीवन्त परम्परा हो, जो आज पनि नेपालको आत्मामा बसेको छ।

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

विनम्र श्रद्धांजलि मनोज कुमार जितने अमृता प्रीतम को दी थी नसीहत

  आज हम बात करेंगे भारतीय सिनेमा के एक ऐसे दिग्गज की, जिन्होंने अपनी अदाकारी और फिल्मों से देशभक्ति की ऐसी मिसाल कायम की, जो आज भी हमारे दिलों में बसी है। 
जी हां, हम बात कर रहे हैं "भारत कुमार" यानी मनोज कुमार की। 
 उनके जीवन का संघर्ष, राष्ट्र प्रेम, राष्ट्रीय मुद्दों पर फिल्में और उनके सुपरहिट गीतों की याद दिला रहे हैं 
  मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को हुआ था, ब्रिटिश भारत के एबटाबाद में, जो अब पाकिस्तान के ख़ैबरपख्तूनवा में है। 
    उनका असली नाम था हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी। 10 साल की उम्र में बंटवारे की त्रासदी ने उनके परिवार को दिल्ली के रिफ्यूजी कैंप तक पहुंचा दिया। दो महीने तक वहां रहने के बाद उन्होंने दिल्ली में अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर मुंबई का रुख किया। 
फिल्मी दुनिया में शुरुआत छोटे-मोटे कामों से हुई, लेकिन 1957 में फिल्म "फैशन" में एक मौका मिला और फिर "हरियाली और रास्ता", "शहीद" जैसी फिल्मों ने उन्हें स्टार बना दिया। लेकिन असली पहचान मिली उनकी देशभक्ति फिल्मों और उनके गीतों से।
  मनोज कुमार का राष्ट्र प्रेम उनकी फिल्मों में साफ दिखता है। 1965 में "शहीद" में भगत सिंह का किरदार निभाकर उन्होंने सबको प्रभावित किया। फिर 1967 में आई "उपकार", जो लाल बहादुर शास्त्री के नारे "जय जवान, जय किसान" से प्रेरित थी। इस फिल्म का गाना "मेरे देश की धरती" आज भी देशभक्ति का पर्याय है। सुनिए इसके बोल हैं :
"मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती..."
इस गाने ने हर हिंदुस्तानी के दिल में देश के लिए प्यार जगा दिया।
फिर आई "पूरब और पश्चिम"। इस फिल्म में उन्होंने भारतीय संस्कृति की ताकत दिखाई। इसका गाना "है प्रीत जहां की रीत सदा" बेहद लोकप्रिय हुआ:
"है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं...
    "रोटी कपड़ा और मकान" में गरीबी और सामाजिक मुद्दों को उठाया गया। इसका गाना "मैं ना भूलूंगा" 
तथा 1981 की फिल्म "क्रांति" का गाना "जिंदगी की ना टूटे लड़ी" हमें हौसला देता है:

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

संशोधित वक्फ बिल पास होने के बाद का भारत: एक विश्लेषण


संशोधित वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को लोकसभा में 2 अप्रैल 2025 को पेश किया गया और 12 घंटे की तीखी बहस के बाद 288 मतों के पक्ष में और 232 मतों के विरोध में पारित हो गया। इसके बाद यह विधेयक राज्यसभा में भी मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। यह बिल वक्फ अधिनियम, 1995 में व्यापक बदलाव लाने का प्रयास करता है, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही और समावेशिता लाना है। इस लेख में हम इस बिल के पारित होने के बाद भारत में संभावित सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक प्रभावों का विश्लेषण करेंगे
 संशोधित वक्फ बिल के प्रमुख प्रावधान
संशोधित वक्फ बिल में कई महत्वपूर्ण बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं, जो इसके प्रभाव को समझने के लिए आवश्यक हैं:
1. गैर-मुस्लिम और महिला सदस्यों की नियुक्ति : वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों और दो महिलाओं की नियुक्ति अनिवार्य की गई है।
2. संपत्ति विवादों में जिला कलेक्टर की भूमिका: 
वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व विवादों को अब वक्फ ट्रिब्यूनल के बजाय जिला कलेक्टर द्वारा जांचा जाएगा, जिसके बाद हाई कोर्ट में अपील की जा सकती है।
3. पंजीकरण की अनिवार्यता: वक्फ संपत्तियों को जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में पंजीकृत करना अनिवार्य होगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी।
4. वक्फ गठन की शर्तें: 
केवल वही व्यक्ति वक्फ संपत्ति दान कर सकता है, जिसने कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन किया हो, और दानकर्ता को संपत्ति का मालिक होना चाहिए।
5. सरकारी संपत्तियों पर दावे का अंत: 
सरकारी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति के रूप में दावा करने की प्रथा समाप्त की गई है।
बदलाव से होंगे ये प्रभाव 
 सामाजिक प्रभाव
संशोधित वक्फ बिल के पारित होने से भारतीय समाज में कई स्तरों पर बदलाव देखने को मिल सकते हैं:


महिलाओं और गैर-मुस्लिमों का समावेश
 वक्फ बोर्ड में महिलाओं और गैर-मुस्लिमों की भागीदारी से प्रबंधन में विविधता आएगी, जो लैंगिक समानता और समावेशिता को बढ़ावा दे सकती है। हालांकि, कुछ धार्मिक नेताओं का मानना है कि यह वक्फ की मूल भावना को कमजोर करेगा।
आदिवासी और अन्य वंचित समूह
 यह बिल आदिवासियों या अन्य वंचित समूहों के भूमि अधिकारों को सीधे प्रभावित नहीं करता, लेकिन वक्फ संपत्तियों पर दावों के कम होने से इन समुदायों के लिए भूमि विवादों में राहत मिल सकती है।
कानूनी प्रभाव
पारदर्शिता और जवाबदेही
 वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और जिला कलेक्टर की भूमिका से अवैध कब्जे और दुरुपयोग पर अंकुश लगेगा। पहले वक्फ बोर्ड की धारा 40 के तहत असीमित शक्तियां थीं, जो अब सीमित हो जाएंगी।
न्यायिक प्रक्रिया में बदलाव
हाई कोर्ट तक अपील का प्रावधान होने से वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों में निष्पक्षता बढ़ेगी। हालांकि, इससे कानूनी प्रक्रिया लंबी और जटिल भी हो सकती है।
-समानता का सवाल
संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता के सिद्धांत को मजबूत करने का दावा किया जा रहा है, क्योंकि यह बिल एक विशेष धार्मिक समुदाय को मिलने वाली विशेष सुविधाओं को संतुलित करता है। लेकिन विपक्ष इसे धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) पर हमला मानता है।



#### आर्थिक प्रभाव
वक्फ बोर्ड के पास 9.4 लाख एकड़ भूमि और 8.7 लाख संपत्तियां हैं, जिनकी कीमत लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है। इस बिल से:
- **संपत्ति का बेहतर उपयोग**: पारदर्शी प्रबंधन से इन संपत्तियों का आर्थिक उपयोग बढ़ सकता है, जिससे राजस्व में वृद्धि होगी।
- **विवादों में कमी**: अवैध दावों और कब्जे पर रोक लगने से संपत्ति बाजार में स्थिरता आएगी।

#### चुनौतियां और भविष्य
- **प्रतिरोध और आंदोलन**: AIMPLB और अन्य संगठनों ने बिल के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन की धमकी दी है। यदि यह तनाव बढ़ता है, तो सामाजिक अशांति का खतरा हो सकता है।
कानूनी चुनौतियां: बिल के कुछ प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, खासकर धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के मुद्दों पर।
राज्य सरकारों का रुख
पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों ने इसे लागू न करने की बात कही है, जिससे संघीय ढांचे पर असर पड़ सकता है।
 निष्कर्ष
संशोधित वक्फ बिल के पारित होने के बाद भारत एक नए दौर में प्रवेश करेगा, जहां वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन अधिक पारदर्शी और समावेशी हो सकता है। हालांकि, यह सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण को भी बढ़ा सकता है। सरकार के लिए चुनौती होगी कि वह इस कानून को लागू करते समय सामुदायिक भावनाओं का सम्मान करे और संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखे। यह बिल भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक चरित्र की एक बड़ी परीक्षा साबित हो सकता है।
Disclaimer 
यह विश्लेषण वर्तमान जानकारी और संभावित परिदृश्यों पर आधारित है। वास्तविक प्रभाव समय के साथ ही स्पष्ट होंगे।


भूमि संबंधी कानूनों की मौजूदगी में वक्फ कानून का औचित्य: एक विश्लेषण


भारत में भूमि संबंधी कानूनों का एक व्यापक ढांचा मौजूद है, जिसमें भू राजस्व संहिता, भू अभिलेखन, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम जैसे कानून शामिल हैं। ये कानून न केवल संवैधानिक रूप से वैध हैं, बल्कि देश की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस संदर्भ में, वक्फ कानून और वक्फ बोर्ड के गठन की प्रासंगिकता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। यह लेख इस बात का विश्लेषण करता है कि क्या वक्फ कानून वास्तव में औचित्यपूर्ण है या यह संवैधानिक व्यवस्था के प्रतिकूल है। साथ ही, यह भी जांच करता है कि क्या यह कानून समाज के कमजोर वर्गों, जैसे आदिवासियों, के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक है या नहीं।

#### भारत में भूमि संबंधी कानूनों का ढांचा
भारत में भूमि संबंधी कानूनों का विकास औपनिवेशिक काल से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक एक लंबी प्रक्रिया रही है। **भू राजस्व संहिता** विभिन्न राज्यों में लागू होती है और यह भूमि के स्वामित्व, कराधान और उपयोग को नियंत्रित करती है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता, 2006 भूमि के रिकॉर्ड, उत्परिवर्तन और विवाद निपटारे को व्यवस्थित करती है। **संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882** संपत्ति के स्वामित्व हस्तांतरण को वैधानिक रूप प्रदान करता है, जबकि **पंजीकरण अधिनियम, 1908** संपत्ति के दस्तावेजीकरण को सुनिश्चित करता है। ये कानून संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत राज्य और केंद्र सरकार के विधायी अधिकार क्षेत्र में आते हैं, जो संपत्ति और भूमि को राज्य सूची का विषय बनाते हैं।

ये कानून संवैधानिक रूप से आवश्यक हैं क्योंकि ये अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 300A (संपत्ति का अधिकार) जैसे मौलिक सिद्धांतों को लागू करते हैं। इसके अलावा, **भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013** जैसे कानून यह सुनिश्चित करते हैं कि भूमि अधिग्रहण पारदर्शी और न्यायसंगत हो। इस व्यापक ढांचे के बावजूद, वक्फ कानून एक अलग व्यवस्था के रूप में मौजूद है, जो इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाता है।

#### वक्फ कानून और वक्फ बोर्ड: एक अवलोकन
वक्फ इस्लामी कानून के तहत एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को धार्मिक, परोपकारी या सामुदायिक उद्देश्यों के लिए समर्पित करता है। भारत में वक्फ को **वक्फ अधिनियम, 1995** (जिसमें 2013 में संशोधन किया गया) के तहत नियंत्रित किया जाता है। इस कानून के तहत वक्फ बोर्ड का गठन किया गया, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, संरक्षण और सर्वेक्षण का कार्य करता है। वक्फ बोर्ड को धारा 40 के तहत यह अधिकार है कि वह किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, यदि उसे ऐसा प्रतीत होता है कि वह वक्फ के अंतर्गत आती है।

आंकड़ों के अनुसार, भारत में वक्फ बोर्ड के पास 8.7 लाख से अधिक संपत्तियां हैं, जो लगभग 9.4 लाख एकड़ भूमि पर फैली हैं। यह रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद देश में तीसरा सबसे बड़ा भूमि धारक माना जाता है। हालांकि, इसकी शक्तियों और कार्यप्रणाली पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं।

#### वक्फ कानून का औचित्य: एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण
1. **संवैधानिक व्यवस्था के प्रतिकूलता का प्रश्न**  
   भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है। अनुच्छेद 14 के तहत सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार है, जबकि अनुच्छेद 15 धर्म के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करता है। वक्फ कानून, जो केवल एक विशेष धार्मिक समुदाय के लिए बनाया गया है, इन सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप झेलता है। उदाहरण के लिए, हिंदू, सिख या अन्य धार्मिक समुदायों के लिए समानांतर व्यवस्था मौजूद नहीं है। यह तर्क दिया जा सकता है कि वक्फ कानून एक विशेष समुदाय को अनुचित लाभ प्रदान करता है, जो संवैधानिक समानता के खिलाफ है।

   इसके अलावा, वक्फ संपत्तियों को **लिमिटेशन एक्ट, 1963** की धारा 107 से छूट प्राप्त है, जिसका अर्थ है कि इन संपत्तियों को पुनर्प्राप्त करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। यह सुविधा अन्य धार्मिक ट्रस्टों को उपलब्ध नहीं है, जो इसे असमान बनाता है।

2. **मौजूदा कानूनों की पर्याप्तता**  
   संपत्ति के प्रबंधन और हस्तांतरण के लिए पहले से ही व्यापक कानून मौजूद हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को परोपकारी उद्देश्यों के लिए दान करना चाहता है, तो वह **ट्रस्ट अधिनियम, 1882** या **सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860** के तहत ऐसा कर सकता है। इन कानूनों के तहत बनाए गए ट्रस्ट सभी समुदायों के लिए उपलब्ध हैं और किसी विशेष धर्म से संबद्ध नहीं हैं। ऐसे में, वक्फ कानून की आवश्यकता पर सवाल उठता है।

3. **वक्फ बोर्ड की शक्तियों का दुरुपयोग**  
   वक्फ बोर्ड पर अक्सर यह आरोप लगता है कि वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करता है। धारा 40 के तहत बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता है, जिसके बाद मालिक को यह साबित करना पड़ता है कि वह उसका नहीं है। यह प्रक्रिया पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी को दर्शाती है। कई मामलों में, सरकारी और निजी संपत्तियों पर भी वक्फ बोर्ड ने दावा किया है, जिससे विवाद उत्पन्न हुए हैं। **वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024** में इन शक्तियों को सीमित करने और पारदर्शिता बढ़ाने का प्रयास किया गया है, लेकिन यह अभी भी विवादास्पद बना हुआ है।

#### आदिवासियों के भूमि अधिकार और वक्फ कानून
आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों की रक्षा करना सरकार की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है। **वन अधिकार अधिनियम, 2006** और **पेसा अधिनियम, 1996** जैसे कानून इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। ये कानून आदिवासियों को उनकी पारंपरिक भूमि पर अधिकार प्रदान करते हैं और उनकी संस्कृति को संरक्षित करते हैं। इसके विपरीत, वक्फ कानून का उद्देश्य धार्मिक और परोपकारी संपत्तियों का प्रबंधन करना है, न कि सामाजिक रूप से वंचित समूहों के अधिकारों की रक्षा करना। इसलिए, आदिवासियों के संदर्भ में वक्फ कानून को आवश्यक मानना तर्कसंगत नहीं है।

#### निष्कर्ष
भारत में मौजूदा भूमि संबंधी कानूनों की व्यापकता और संवैधानिक ढांचे को देखते हुए, वक्फ कानून और वक्फ बोर्ड का गठन प्रथम दृष्टया औचित्यहीन प्रतीत होता है। यह न केवल संवैधानिक समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि मौजूदा कानूनों के साथ अनावश्यक दोहराव भी पैदा करता है। समाज के कमजोर वर्गों, जैसे आदिवासियों, के हितों की रक्षा के लिए पहले से ही प्रभावी कानून मौजूद हैं, जिसके चलते वक्फ कानून की आवश्यकता संदिग्ध है। इस संदर्भ में, एक समान नागरिक संहिता और एकीकृत संपत्ति कानून की दिशा में बढ़ना अधिक तर्कसंगत और संवैधानिक रूप से उचित होगा।

#### संदर्भ
1. **वक्फ अधिनियम, 1995** - भारत सरकार, विधि और न्याय मंत्रालय।
2. **संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882** - भारत सरकार, विधि और न्याय मंत्रालय।
3. **पंजीकरण अधिनियम, 1908** - भारत सरकार, विधि और न्याय मंत्रालय।
4. **उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता, 2006** - उत्तर प्रदेश सरकार।
5. **भारत का संविधान** - अनुच्छेद 14, 15, 246, 300A।
6. **वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024** - लोकसभा में पेश दस्तावेज।
7. **वन अधिकार अधिनियम, 2006** - भारत सरकार, जनजातीय कार्य मंत्रालय।

यह लेख तथ्यों और कानूनी ढांचे के आधार पर वक्फ कानून की प्रासंगिकता पर एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

शुक्रवार, 21 मार्च 2025

किशोर उम्र की मुश्किलें !

किशोर अवस्था जीवन का एक संवेदनशील और परिवर्तनशील चरण है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलाव तेजी से होते हैं। यह वह समय है जब व्यक्ति बचपन से वयस्कता की ओर बढ़ता है और अपनी पहचान, स्वतंत्रता और सामाजिक भूमिकाओं को समझने की कोशिश करता है। हार्मोनल बदलाव, सामाजिक दबाव और व्यक्तिगत इच्छाएं इस चरण को जटिल बनाती हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि यह समाज के भविष्य को भी प्रभावित करता है। इस लेख में हम किशोरों में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण, उनके दुष्परिणाम, भारत और यूरोपीय देशों के तुलनात्मक आंकड़े, और निदान पर चर्चा करेंगे, जिसमें ड्रग्स, सेक्स की लत, विद्रोही व्यवहार, असंयमित क्रोध और अपराध की प्रवृत्ति जैसे मुद्दों के साथ-साथ भारतीय योग, खेलकूद और बौद्धिक अभ्यासों को स्वास्थ्य प्रबंधन के अभिन्न अंग के रूप में शामिल किया जाएगा।

#### शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण 
किशोरावस्था में हार्मोनल बदलाव, जैसे टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन का बढ़ना, यौनिक उत्तेजना को जन्म देता है, जिसे समझने और नियंत्रित करने में किशोर अक्सर असमर्थ होते हैं। यह उत्तेजना कई बार सेक्स की लत या असुरक्षित यौन व्यवहार का कारण बनती है। ड्रग्स और मादक पदार्थों का सेवन जिज्ञासा, पीयर प्रेशर या तनाव से बचने की चाह से शुरू होता है। भारत में संयुक्त परिवारों का दबाव, पढ़ाई की प्रतिस्पर्धा और यूरोप में व्यक्तिवादिता व सोशल मीडिया का प्रभाव इन समस्याओं को बढ़ाता है। 

घर के प्रति विद्रोही व्यवहार और असंयमित क्रोध हार्मोनल असंतुलन, पारिवारिक तनाव और संवाद की कमी से उत्पन्न होते हैं। अनियमित दिनचर्या, जंक फूड, नींद की कमी और शारीरिक गतिविधियों में कमी शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। मानसिक स्वास्थ्य पर पढ़ाई, दोस्तों और सोशल मीडिया का दबाव तनाव, चिंता और अवसाद को बढ़ाता है। इन सबके बीच, किशोरों का आवेगपूर्ण व्यवहार और निर्णय लेने में असमर्थता उन्हें अपराध की ओर भी ले जा सकती है।

#### भारत और यूरोपीय देशों के किशोरों का तुलनात्मक अध्ययन (आंकड़ों सहित) 
- **ड्रग्स की लत**: भारत में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (2019) के अनुसार, मादक पदार्थों का सेवन करने वालों में 13% की उम्र 20 साल से कम है। NCRB 2022 के अनुसार, नशे से जुड़े अपराधों में किशोरों की संलिप्तता बढ़ी है। यूरोप में, EMCDDA 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 15-19 आयु वर्ग के 17% किशोरों ने नशीले पदार्थों का सेवन किया। 
- **सेक्स की लत और यौन व्यवहार**: भारत में UNFPA 2020 के अनुसार, 15-19 आयु की 6% किशोर लड़कियां गर्भवती होती हैं। यूरोप में, यूरोस्टेट 2022 के अनुसार, 15-19 आयु वर्ग में 10% किशोरों ने यौन संचारित रोगों का सामना किया। 
- **विद्रोही व्यवहार और क्रोध**:
भारत में NCRB 2022 के अनुसार, किशोर अपराधों में 40% मामले पारिवारिक विवाद से शुरू होते हैं। यूरोप में, FRA 2021 के अनुसार, 12% किशोरों ने माता-पिता के खिलाफ हिंसक व्यवहार दिखाया। 
- **अपराध**: भारत में NCRB 2022 के अनुसार, किशोर अपराधों में 5% की वृद्धि हुई। यूरोप में, यूरोस्टेट 2022 के अनुसार, किशोर अपराध दर 8% है। 

#### दुष्परिणाम 
शारीरिक स्वास्थ्य की उपेक्षा से मोटापा, मधुमेह और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित होती है। ड्रग्स की लत से शारीरिक और मानसिक क्षति होती है, जबकि सेक्स की लत असुरक्षित यौन संबंधों से गंभीर परिणाम लाती है। विद्रोही व्यवहार और असंयमित क्रोध किशोरों को परिवार और समाज से दूर करता है, जिससे अपराध और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है। भारत में NCRB 2022 के अनुसार, किशोरों में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं, और पलायन भी ग्रामीण क्षेत्रों में एक समस्या है। यूरोप में आत्महत्या और अपराध व्यक्तिगत अलगाव से अधिक जुड़े हैं।

#### निदान 
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रबंधन के लिए भारतीय योग अभ्यास, खेलकूद और बौद्धिक अभ्यास प्रभावी समाधान हैं। 
- **शारीरिक स्वास्थ्य**: संतुलित आहार (प्रोटीन, विटामिन, खनिज) और रोजाना 30-40 मिनट की शारीरिक गतिविधि जरूरी है। **खेलकूद** जैसे क्रिकेट, फुटबॉल या बैडमिंटन न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं, बल्कि हार्मोनल संतुलन और तनाव को भी कम करते हैं। **भारतीय योग अभ्यास** जैसे सूर्य नमस्कार, प्राणायाम और भस्त्रिका शारीरिक लचीलापन, ऊर्जा और मानसिक शांति प्रदान करते हैं। नींद के 7-8 घंटे सुनिश्चित करना भी जरूरी है। 
- **मानसिक स्वास्थ्य**: **योग और ध्यान** (जैसे अनुलोम-विलोम और माइंडफुलनेस) तनाव, क्रोध और आवेग को नियंत्रित करते हैं। **बौद्धिक अभ्यास** जैसे **चित्रकारी** भावनाओं को व्यक्त करने का रचनात्मक माध्यम है, **भाषण कला** आत्मविश्वास बढ़ाती है, **कविता लेखन** मन को शांत और केंद्रित करती है, और **संगीत साधना** (गायन या वादन) मानसिक तनाव को कम करती है। ये गतिविधियां ड्रग्स और सेक्स की लत से ध्यान हटाकर सकारात्मक दिशा प्रदान करती हैं। 
- **विशिष्ट समस्याओं के लिए**: ड्रग्स की लत से बचाव के लिए जागरूकता अभियान और पुनर्वास केंद्रों की पहुंच बढ़ानी चाहिए। सेक्स की लत और यौनिक उत्तेजना को नियंत्रित करने के लिए उम्र के अनुकूल यौन शिक्षा और माता-पिता से खुली बातचीत जरूरी है। विद्रोही व्यवहार और क्रोध को नियंत्रित करने के लिए परिवार में संवाद, स्कूलों में काउंसलिंग और मेंटरशिप प्रोग्राम शुरू करने चाहिए। अपराध और आत्महत्या से बचाव के लिए हेल्पलाइन (जैसे चाइल्डलाइन 1098) और सामुदायिक सहायता को मजबूत करना होगा। गंभीर मामलों में मनोवैज्ञानिक की सलाह लेना उचित है। 
#निष्कर्ष 
किशोर अवस्था में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन एक जटिल लेकिन आवश्यक कार्य है। ड्रग्स, सेक्स की लत, विद्रोही व्यवहार, क्रोध और अपराध जैसी समस्याएं किशोरों को गलत रास्ते पर ले जा सकती हैं। भारत और यूरोप में इन समस्याओं के कारण और प्रभाव भिन्न हैं, लेकिन दोनों जगह भारतीय योग, खेलकूद और बौद्धिक अभ्यास जैसे चित्रकारी, भाषण कला, कविता लेखन और संगीत साधना स्वास्थ्य प्रबंधन के अभिन्न अंग बन सकते हैं। ये न केवल शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि किशोरों को सकारात्मक दिशा में प्रेरित करते हैं। परिवार, समाज और सरकार के संयुक्त प्रयास से यह पीढ़ी स्वस्थ, सशक्त और जिम्मेदार बन सकती है।
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बुधवार, 19 मार्च 2025

सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की कहानी,

#youtube 🔗 
https://youtu.be/5JdrRGb8csQ
 नमस्ते और स्वागत है  मन की बात ब्लॉग पर जहाँ आज हम अंतरिक्ष अन्वेषण और तकनीक की नवीनतम कहानियों को आपके सामने लाते हैं। 
मैं हूँ गिरीश बिल्लौरे मुकुल , और आज हम बात करने जा रहे हैं दो नासा अंतरिक्ष यात्रियों, सुनीता विलियम्स और विल्मोर की अविश्वसनीय यात्रा के बारे में। ये दोनों अनुभवी अंतरिक्ष यात्री हाल ही में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर एक लंबी अवधि की यात्रा से लौटे हैं, उनकी यात्रा मूल रूप से सिर्फ एक सप्ताह के लिए थी,
 लेकिन तकनीकी वज़ह से यह यात्रा नौ महीने तक खिंच गई। 
 तो, चलिए शुरू करते हैं
सुनीता और बुच विल्मोर का परिचय
 सबसे पहले, आइए इन दोनों अंतरिक्ष यात्रियों के बारे में थोड़ा जान लें। सुनीता विलियम्स एक ऐसी शख्सियत हैं जिनका नाम आपने सपना सुना ही है ।
वे भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री हैं, जिनका जन्म 1965 में ओहियो में हुआ था।
  सुनीता ने अमेरिकी सेना में टेस्ट पायलट के रूप में काम किया और 30 से अधिक विभिन्न विमानों में 3,000 से ज्यादा उड़ान घंटे पूरे किए। 
वे आईएसएस पर लंबी अवधि तक रह चुकी हैं और पहले 322 दिन अंतरिक्ष में बिता चुकी हैं। एक समय वह सबसे लंबी अंतरिक्ष उड़ान करने वाली महिला थीं।
  बुच विल्मोर , का पूरा नाम बैरी बुच विल्मोर है। 1962 में टेनेसी में जन्मे ब विल्मोर सेना के रिटायर्ड कैप्टन हैं और एक अनुभवी टेस्ट पायलट भी।
  वह स्पेस शटल और रूसी सोयुज अंतरिक्ष यान दोनों से उड़ान भर चुके हैं। इस मिशन से पहले वह 178 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके थे। सुनीता और विल्मोर दोनों ही अपने अनुभव और कौशल के दम पर अंतरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में बड़े नाम हैं।
  5 जून, 2024 को सुनीता और विल्मोर ने फ्लोरिडा के केप कैनवरल से बोइंग के स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान में सवार होकर उड़ान भरी। यह स्टारलाइनर का पहला मानव मिशन था, जो नासा के कमर्शियल क्रू प्रोग्राम का हिस्सा था।
 योजना तो यह थी कि यह एक आठ दिन का टेस्ट मिशन होगा—आईएसएस तक जाना, वहाँ कुछ दिन बिताना, और फिर धरती पर वापस आना।
 लेकिन दुर्भाग्य बस सब कुछ योजना के मुताबिक नहीं हुआ। 
लॉन्च से पहले ही स्टारलाइनर में एक हीलियम लीक की समस्या सामने आई थी, लेकिन नासा और बोइंग ने इसे स्थिर मानकर मिशन को आगे बढ़ाया। 
स्टार लाइनर आईएसएस के पास पहुँचा जरूर लेकिन इसमें चार बार हीलियम लिख के मामले सामने आए और पाँच थ्रस्टर फेल होने की शिकायत पाई गई। 
  ये थ्रस्टर अंतरिक्ष यान को नियंत्रित करने के लिए बहुत जरूरी होते हैं, खासकर डॉकिंग और वापसी के दौरान।
 फिर भी, सुनीता और विल्मोर ने 6 जून, 2024 को आईएसएस के साथ सफलतापूर्वक डॉकिंग की। 
 लेकिन स्टारलाइनर की समस्याओं के चलते उनकी वापसी जानलेवा साबित हो सकती थी। उनकी वापसी के लिए स्टार लाइनर को दुरुस्त करने की सारी कोशिशों की नाकामयाबी के बावजूद दोनों ने आईएसएस के क्रू के साथ मिलकर कई वैज्ञानिक प्रयोग किए, जैसे कि माइक्रोग्रैविटी का मानव शरीर पर प्रभाव और भविष्य के मिशनों के लिए नई तकनीकों का परीक्षण।
  सुनीता ने अपनी स्पेसवॉक की कला को भी जारी रखा। इस मिशन के दौरान उन्होंने अपनी नौवीं स्पेसवॉक पूरी की और महिला अंतरिक्ष यात्री के रूप में सबसे ज्यादा समय 62 घंटे और 6 मिनट स्पेसवॉक करने का रिकॉर्ड बनाया।
 विल्मोर ने भी स्टेशन के रखरखाव में मदद की और कुछ समय के लिए कमांडर की भूमिका भी निभाई।
 दोनों ने मिलकर यह सुनिश्चित किया कि आईएसएस सुचारू रूप से चलता रहे।
  स्टारलाइनर की तकनीकी समस्याओं की की चर्चा करें तो हम पाते हैं कि हीलियम लीक और थ्रस्टर फेल होने की वजह से यान की वापसी जोखिम का सौदा हो गया था । 
  नासा और बोइंग ने इन समस्याओं को समझने और ठीक करने की बहुत कोशिश की।
  सितंबर 2024 में स्टारलाइनर को बिना क्रू के धरती पर वापस लाया गया ताकि और डेटा इकट्ठा किया जा सके।लेकिन सुनीता और विल्मोर को अगस्त 2024 में यह फैसला सुनाया गया कि वे स्टारलाइनर से नहीं, बल्कि स्पेसएक्स के क्रू ड्रैगन यान से वापस आएँगे। 
 इसके लिए उन्हें फरवरी 2025 तक इंतजार करना था, जो बाद में मार्च 2025 तक बढ़ गया।
 इस बीच, इस स्थिति ने कुछ राजनीतिक ध्यान भी खींचा स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क ने उस राष्ट्रपति चुनाव के दौरान एक राजनैतिक टिप्पणी की थी । जिसमें कहा गया था कि अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में "छोड़ दिया गया" था।
  लेकिन सुनीता और विल्मोर ने एक साक्षात्कार में इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि वे "फँसे" नहीं थे और टेस्ट मिशन में ऐसी देरी संभव थी।
  उन्होंने नासा पर भरोसा जताया और अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
 इस दौरान आम जनता में उनकी सेहत को लेकर बेहद चिंता व्यक्त की जा रही थी। सुनीता के पतले दिखने की खबरों से लोग चिंतित हुए। 
 लेकिन नासा ने स्पष्ट किया कि उनके पास पर्याप्त भोजन था और उनकी सेहत की निगरानी की जा रही थी। आईएसएस पर फ्रीज-ड्राय और थर्मोस्टैबिलाइज़्ड भोजन के साथ-साथ ताजे फल और सब्जियाँ भी उपलब्ध होती हैं। डॉक्टर नियमित रूप से उनकी जाँच करते थे ताकि उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत बनी रहे।
आखिरकार, 18 मार्च, 2025 को सुनीता और बुच विल्मोर स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन में सवार होकर धरती पर लौटे। 17 घंटे की यात्रा के बाद उनका यान फ्लोरिडा के तट पर मैक्सिको की खाड़ी में उतरा।
  उनकी वापसी की तस्वीरों में वे मुस्कुराते और हाथ हिलाते नजर आए, जो उनकी राहत को दर्शाता था।
  पहली बात, यह नासा के लिए बोइंग और स्पेसएक्स के यह से लौटने वाले दोनों अंतरिक्ष यात्रियों की सहनशक्ति और अनुकूलन शीलता को उजागर करता है।
 तो दोस्तों, सुनीता विलियम्स और विल्मोर की यह यात्रा हमें मानव दृढ़ता और अंतरिक्ष अन्वेषण की जटिलताओं की याद दिलाती है। आठ दिन के मिशन से नौ महीने की यात्रा तक, उनकी कहानी प्रेरणादायक है।
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भारत में विवाह विच्छेद कारण और निदान

   अनुसंधान से पता चलता है कि भारत में विवाह-विच्छेद की दर बढ़ रही है, हालांकि यह वैश्विक स्तर पर अभी भी कम है, लगभग 1% 2022 में।यह संभावना है कि कारणों में सामाजिक मानदंडों में बदलाव, महिलाओं का सशक्तिकरण, शहरीकरण और असंगति शामिल हैं।सबूत संचार में सुधार, विवाह पूर्व परामर्श और विवाह विच्छेद रोकने के लिए पेशेवर चिकित्सा की ओर झुकते हैं।परिचयभारत में विवाह को हमेशा से एक पवित्र और अटूट बंधन के रूप में देखा गया है, जो न केवल दो व्यक्तियों को बल्कि उनके परिवारों को भी जोड़ता है। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, विवाह-विच्छेद की दर में वृद्धि देखी गई है। इस पॉडकास्ट में, हम इस बढ़ती हुई प्रवृत्ति के कारणों पर चर्चा करेंगे और इसे रोकने के लिए व्यावहारिक समाधान प्रदान करेंगे। हम कुछ काल्पनिक कहानियों को भी शामिल करेंगे ताकि चर्चा अधिक संबंधित और रोचक बने।
आंकड़े और प्रवृत्तियांहालिया डेटा के अनुसार, भारत में विवाह-विच्छेद की दर 2022 में लगभग 1% (1,000 लोगों पर 0.01) है, जो 2020 के 0.022 और 2021 के 0.077 से बढ़ी है (divorce.com)। यह दर वैश्विक स्तर पर कम है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में आधुनिक जीवनशैली के प्रभाव से यह बढ़ रही है।कारण और समाधानविवाह-विच्छेद की बढ़ती दर के पीछे कई कारक हैं, जैसे:
सामाजिक मानदंडों में बदलाव, जिससे विवाह-विच्छेद का टैबू कम हो रहा है।महिलाओं का सशक्तिकरण, जिससे वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं और असंतोषजनक विवाहों को समाप्त करने के लिए तैयार हैं।
शहरीकरण, जो लंबे कार्यकाल और तनाव से परिवार के समय को कम कर रहा है।
असंगति, जहां अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पातीं।समाधान में शामिल हैं:बेहतर संचार, जो मुद्दों को जल्दी संबोधित करता है।विवाह पूर्व परामर्श, जो वास्तविक अपेक्षाएं स्थापित करता है।पेशेवर चिकित्सा, जो जोड़ों को चुनौतियों से निपटने के लिए उपकरण प्रदान करती है।
 मिश्रित विश्लेषण से हम  तह चलते हैं
    भारत में विवाह सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक परंपराओं में गहराई से निहित है, अक्सर इसे दो व्यक्तियों और उनके परिवारों को जोड़ने वाले पवित्र बंधन के रूप में देखा जाता है। ऐतिहासिक रूप से, विवाह-विच्छेद की दर कम रही है, जिसमें सामाजिक दबाव और व्यवस्थित विवाह स्थिरता में योगदान देते हैं। हाल के वर्षों में, हालांकि, 2022 में विवाह-विच्छेद की दर 0.01 प्रति 1,000 लोगों की थी, जो 2020 के 0.022 और 2021 के 0.077 से बढ़ी है (divorce.com)। यह वृद्धि, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, ध्यान देने योग्य है।बढ़ती विवाह-विच्छेद दर के कारणशोध से कई कारकों का पता चलता है जो इस प्रवृत्ति को चला रहे हैं, जैसा कि हाल ही में द टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख में विस्तार से बताया गया है (The Times of India)। इनमें शामिल हैं:
कारण विवरण 
बदलते सामाजिक मानदंड
विवाह-विच्छेद का टैबू कम हो रहा है, और लोग असंतोषजनक विवाहों को समाप्त करने के लिए अधिक तैयार हो रहे हैं।महिलाओं का सशक्तिकरण शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि से महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं, जिससे वे असंतोषजनक या दुर्व्यवहारपूर्ण विवाहों में रहने से इनकार कर रही हैं।
शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली शहरों में लंबे कार्यकाल और तनावपूर्ण जीवनशैली परिवार के समय को कम कर रहे हैं, जिससे रिश्तों पर दबाव पड़ रहा है।असंगतिविवाह से अत्यधिक अपेक्षाएं, जैसे भावनात्मक पूर्ति, अक्सर पूरी नहीं हो पाती, जिससे असंतोष बढ़ता है।
कानूनी जागरूकता 
आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया को आसान बनाया गया है, और लोगों में कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है।
संयुक्त परिवार प्रणाली का पतन
एकल परिवारों में संक्रमण के कारण विस्तारित परिवार का समर्थन कम हो गया है, जिससे जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ता है।

सांख्यिकीय आंकड़ों का विश्लेषण 

राज्यों के आधार पर सटीक डेटा सीमित था, लेकिन 2023 की एक रिपोर्ट ने भिन्नताओं को उजागर किया, जिसमें महाराष्ट्र में सबसे अधिक विवाह-विच्छेद दर 18.7% और केरल में सबसे कम 6.3% थी (Times of India)। 
आयु के आधार पर, 
20-35 वर्ष के लोग विवाह-विच्छेद से संबंधित जानकारी खोजने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं, और पुरुषों में इसकी खोज अधिक है, 2022 के एक विश्लेषण के अनुसार (ADJUVA LEGAL)।
समाधान और रोकथाम के उपाय
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, कई रणनीतियां विवाह-विच्छेद को रोकने में मदद कर सकती हैं, जैसा कि उसी टाइम्स ऑफ इंडिया लेख में वर्णित है (The Times of India)।
 इनमें शामिल हैं:
समाधान विवरण प्रभावी संचार 
खुले, ईमानदार और सम्मानजनक संवाद से भावनाओं और अपेक्षाओं पर नियमित रूप से चर्चा की जा सकती है।
विवाह पूर्व परामर्श से वास्तविक अपेक्षाएं स्थापित करना, इस तरह की परामर्श सेवा में वित्त, बच्चे, करियर के लक्ष्यों पर विवाह से पहले चर्चा करना आवश्यक होगा.
निरंतर सीखना और अनुकूलन
 एक साथ की इच्छा, बदलती जरूरतों के अनुसार अनुकूलन, और समझौता करना।गुणवत्तापूर्ण समयसाझा गतिविधियां, शौक, और नियमित डेट नाइट्स से भावनात्मक संबंध मजबूत करना।अपेक्षाओं का प्रबंधनसमझना कि कोई संबंध पूर्ण नहीं होता, स्वीकृति और समझौते पर ध्यान केंद्रित करना।पारस्परिक सम्मान और समर्थनव्यक्तिगत विकास का सम्मान करना, व्यक्तिगत वृद्धि का समर्थन करना, और साझेदारी को बढ़ावा देना।संघर्ष निवारण कौशलदोषारोपण से बचना, सक्रिय सुनना, और मुद्दों को तत्काल संबोधित करना।साझा जिम्मेदारियांघरेलू और वित्तीय कर्तव्यों का समान विभाजन तनाव और रोष को कम करता है।भावनात्मक बुद्धिमत्ता और सहानुभूतिभावनाओं को समझना और प्रबंधित करना, साथी के प्रति सहानुभूति रखना।पेशेवर परामर्श और चिकित्साजल्दी मदद लेना, चिकित्सा को गहरी समस्याओं को संबोधित करने के लिए एक सुरक्षित स्थान के रूप में उपयोग करना।ये उपाय विशेष रूप से आधुनिक दबावों के सामने विवाहों में लचीलापन बनाने के लिए हैं।
चर्चा को संबंधित बनाने के लिए, पॉडकास्ट में इन बिंदुओं को दर्शाने वाली काल्पनिक कहानियां शामिल हैं। उदाहरण के लिए:रिया और आयन की कहानी: मुंबई जाने वाले एक जोड़े को शहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे लंबे कार्यकाल। परामर्श के माध्यम से, वे बेहतर संवाद सीखते हैं और अपना विवाह बचाते हैं, जिससे पेशेवर मदद का महत्व उभरकर सामने आता है।मीरा और विक्रम की कहानी: सोशल मीडिया से प्रभावित होकर, उनकी अपेक्षाएं अवास्तविक हो जाती हैं, जिससे झगड़े होते हैं। विवाह पूर्व परामर्श (उनके मामले में विवाह के बाद) उन्हें वास्तविक लक्ष्य निर्धारित करने में मदद करता है, जिससे अपेक्षाओं के प्रबंधन का महत्व स्पष्ट होता है।सोनिया और राहुल की कहानी: संयुक्त परिवार से परमाणु परिवार में संक्रमण उन्हें जिम्मेदारियों से जूझने पर मजबूर करता है। कार्यों को समान रूप से बांटने और परिवार की बैठकें करने से वे अनुकूलित होते हैं, जिससे साझा जिम्मेदारियों की आवश्यकता उभरकर सामने आती है।ये कहानियां, हालांकि काल्पनिक हैं, कई जोड़ों द्वारा सामना की गई वास्तविक चुनौतियों पर आधारित हैं, जिससे पॉडकास्ट आकर्षक और व्यावहारिक बनता है।निष्कर्ष और प्रभावभारत में विवाह-विच्छेद की बढ़ती दर, भले ही अभी भी कम हो, व्यापक सामाजिक बदलावों का प्रतिबिंब है। जबकि शहरीकरण और महिलाओं का सशक्तिकरण लाभकारी हैं, वे वैवाहिक स्थिरता के लिए नई चुनौतियां लाते हैं। प्रस्तावित समाधान, संचार से चिकित्सा तक, जोड़ों के लिए कार्रवाई योग्य चरण प्रदान करते हैं। काल्पनिक कहानियां यह रेखांकित करती हैं कि प्रयास और समर्थन के साथ, कई विवाह बचाए जा सकते हैं, श्रोताओं को अपने जीवन में इन अंतर्दृष्टि को लागू करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।यह विश्लेषण, हाल के शोध और सांख्यिकीय डेटा पर आधारित, एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो सुनिश्चित करता है कि आलेख सूचनात्मक और तथ्यों पर केंद्रित है।
आशा है आपको अच्छा लगा होगा।
मुख्य संदर्भ:Why do most divorces in India happen and basic things that can prevent themDivorce Rates in the World Updated 2024States with highest and lowest divorce rates in IndiaDivorce Rate in India ADJUVA LEGAL December 2024
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शनिवार, 11 जनवरी 2025

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गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024

Mysteries of the soul | आत्मा होती ही नहीं ?


आमतौर पर अपने आप को इंटेलेक्चुअल साबित करने वाले लोग आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करते हैं !   जो लोग परंपरागत विचारों को मानते हैं वह आत्मा के अस्तित्व से इंकार नहीं करते। आत्मा के इस होने न होने के प्रश्न उत्तर एवं तर्क वितर्क के  बीच बहुत कम लोग ही हैं जिन्होंने आत्मा के अस्तित्व को लेकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। और तो और कुछ लोग तो  इस मुद्दे पर  बात करने से लोग बचते भी हैं।   कुछ वैज्ञानिकों का विचार  है कि आत्मा को किसी आत्मा अभौतिक तत्व है।  जो विश्वासों पर निर्भर करता है। यह एक डिप्लोमेटिक रिप्लाई है। इससे आत्मा परिभाषित करने में कठिनाई होती है। क्योंकि  यह प्रश्न हमारे अस्तित्व  और जीवन के अर्थ से जुड़ा है।  अत: इसका परीक्षण करना आवश्यक है। ताकि आत्मा शब्द की परिभाषा का न्यायसंगत  प्रबोधन हो सके। भारतीय दर्शन में आत्मा की अवधारणा सदियों से विद्यमान रही है, दूसरी ओर पश्चिम भी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकृति देता है।   परंतु अधिकांश  वैज्ञानिक सोच रखने वाले  आत्मा शब्द के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं।       तर्कवादी तो अक्सर इस मुद्दे पर आत्मा की अस्तित्व को मानने वालों का ही मजाक बनाते हैं ।   आत्मा  भले ही भौतिक रूप से देखी न जा सके, परंतु ऊर्जा को उत्पादित करने वाला ऐसा तत्व अवश्य है, जो सदा शरीर या  ब्रह्मांड में बना रहता है। इसे और स्पष्ट रूप से समझिए 1. आत्मा या तो शरीर में रहती है 2. अथवा ब्रह्मांड में स्वतंत्र विचरण करती है।     आत्मा की मौजूदगी में शरीर में क्या होता है ? आत्मा की मौजूदगी में शरीर में भावात्मकता, जैसे कार्य करने की प्रेरणा, कार्य न करने का संदेश, दुःख, आंतरिक पीढ़ा, क्रोध, प्रेम, यानी समस्त मानवीय भावनाएं सक्रिय रहती हैं।    आपने कभी भी जड़ पदार्थ में ऐसी भावात्मक उत्तेजना महसूस नहीं की होगी।   आत्मा शरीर द्वारा किए गए कार्यों का डेटाबेस भी तैयार करती है। उसे संचित करती है । अच्छे और बुरे कार्य आत्मकोश में केंद्रित होते हैं।   आत्मा उपयोग में लाए गए भौतिक पदार्थों से  भौतिक रूप से अर्जित की जाने वाली ऊर्जा को प्राप्त करने, उसके आवश्यकता अनुसार शरीर में वितरण करने, के  अनुदेश अर्थात इंस्ट्रक्शंस शरीर की संरचना में उत्तरदाई अंगों को देती है।    आत्मा मस्तिष्क को संचालित करती है।    आत्मा के बारे में एक आस्तिक  लेखक के रूप में मेरा स्पष्ट मत है कि - "आत्मा , एक ऐसा अभौतिक सुप्त ऊर्जा मंजूषा है जिसमें भौतिक पदार्थों से ऊर्जा जनरेट करने की क्षमता भी होती है।   हम जानते हैं कि शरीर के संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है ? इस ऊर्जा के आवश्यकता अनुसार वितरण के लिए जिम्मेदार तत्व आत्मा ही तो है।  वर्ष 2024 में एक ऐसे योगी  नर्मदा परिक्रमा पर हैं, जिन्होंने कई वर्षों से भोजन नहीं किया, कुछ मिलीलीटर पानी पीकर तथा धूप एवं हवा से शरीर के लिए ऊर्जा प्राप्त कर यात्रा कर रहे हैं। जबलपुर मेडिकल कॉलेज में जिनकी मेडिकल जांच की कराई गई। मेडिकल जांच में उनके सारे वाईटल मैट्रिक्स सामान्य या सामान्य से बेहतर पाए गए। उन के शरीर को यह ऊर्जा कैसे प्राप्त हो रही होगी ?    शरीर के लिए प्रोटीन कैलोरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, टेंपरेचर, धूप छांह, सब की जरूरत होती है। इसे प्राप्त कर  शरीर में  आवश्यकता अनुसार संप्रेषित कौन करता है ?   कौन सा तत्व है जो अभौतिक घटकों  जैसे विचारों, भावों, गुणों, आदि को रेग्यूलेट करता है ?    बेशक वह तत्व आत्मा ही है। आत्मा के अस्तित्व की पुष्टि पुनर्जन्म की अवधारणा से भी होती है।   भारतीय ग्रंथों, जैसे श्रीमद् भगवत गीता, में आत्मा के होने के साथ साथ उसकी अमर होने का प्रमाण दिया है।   भगवान श्री कृष्ण के कथन के अनुसार, आत्मा न जलाई जाती है, न काटी जा सकती है, न उसे कभी भी समाप्त किया जा सकता है। बौद्ध साहित्य में ललित विस्तार, त्रिपिटक, अश्वघोष द्वारा रचित बुद्धचरित्र एवं अन्य बहुत सी प्रमाणित पुस्तकों में लिखा है की मायादेवी ने स्वप्न में एक श्वेत हाथी को उनके गर्भ में घुसते हुए देखा था।  महामाया जिस दृश्य को स्वप्न में देख रहीं थी।  बुद्ध का अवतरण तुषितलोक से हाथी के रुप में हुआ था।  धार्मिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ में, महात्मा बुद्ध के जन्म की यह कथा यदि सत्य है तो आत्मा की अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए ।   बुद्ध के जन्म से संबंधित कहानियों को काल्पनिक मानने का साहस कैसे किया जा सकता है ? यदि हम इन घटनाओं को अस्वीकार करते हैं, तो स्वयं हमारी ही सोच के मानदंड भी ध्वस्त हो जाते हैं। विज्ञान के इस युग में मनो चिकित्सक इयान स्टीवंसन के अनुसंधान में 2000 से अधिक पुनर्जन्म  प्रकरणों का अध्ययन किया , जिन्हें सही भी पाया। जबकि भारत में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस के डॉक्टर सतवंत पसारिया की पुनर्जन्म पर 500 घटनाओं रिसर्च से 77 प्रतिशत रिजल्ट सकारात्मक पाए गए , यद्यपि यह एक जटिल विषय है फिर भी, इससे बचने के लिए नकार देना कहां तक उचित है। यह सवाल जटिल है, फिर भी हमारे योगियों तथा महान दार्शनिकों, भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, पतंजलि, योगी महा अवतार आदि  ने बड़ी सरलता से हल किया है।     

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