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सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

भारत में ड्रग माफिया पर लगाम: अमानक दवाओं और स्वास्थ्य जोखिमों का बढ़ता संकट

भारत में ड्रग माफिया पर लगाम: अमानक दवाओं और स्वास्थ्य जोखिमों का बढ़ता संकट

(आलेख एवं प्रस्तुति गिरीश बिल्लौरे मुकुल)

घटनाक्रम
  तमिलनाडु में बने दवा उत्पादक यूनिट में बने कोल्ड्रिफ कफ़ सिरप जिसमें  48.6% तक जहरीला रसायन डायएथिलीन ग्लाइकॉल (Diethylene Glycol) पाया गया। बच्चे सर्दी-खांसी के इलाज के लिए डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवा लेने के बाद किडनी फेल हो गई।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में कफ़ सिरप से  18 बच्चों की मौत हुई है।
मध्य प्रदेश (मुख्यतः छिंदवाड़ा): 14 मौतें (जिनमें से अधिकांश परासिया ब्लॉक में, उम्र 1-5 वर्ष)। राजस्थान: 4 मौतें (सीकर में 1, भरतपुर में 2, चुरू में 1)।
लचर एवं अपर्याप्त सरकारी कार्रवाई   
    भारत में ड्रग माफिया का विस्तार अमेरिका की तर्ज पर तेजी से हो रहा है, जो न केवल देश के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। अमेरिका में ड्रग माफिया अमेरिकी प्रशासन पर हावी अवश्य है परंतु प्रशासन भी उसकी गुणवत्ता को लेकर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करता है।
भारत में इससे उलट स्थित है!
    मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और गुजरात सरकारों ने सिरप की बिक्री पर बैन लगा दिया।
एक डॉक्टर  गिरफ्तार, कंपनी के खिलाफ FIR दर्ज।केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने 6 राज्यों में 19 दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स का निरीक्षण शुरू किया।
SIT (विशेष जांच दल) गठित।
जबलपुर में दवा वितरण करने वाली इकाई पर कार्रवाई  की गई है।
दूसरी ओर  केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार की ओर से केवल कागजी घोड़े संबंधित कंपनी को रवाना कर दिए गए हैं । क्या यह पर्याप्त है ?
    भारत में उत्पादित दवाएं पहले भी हो चुकी है बदनाम
  बिना किसी पूर्वाग्रह के यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि - भारतीय फार्मा उद्योग पहले भी कई देशों में कुछ मामलों  में बदनाम हो चुका है। और भारत सरकार, तथा राज्य सरकारों  ने कोई प्रभावी अथवा कारगर कार्रवाई नहीं की है ।  यूरोपीय संघ ने कुछ मामलों में भारतीय दवाओं पर रासायनिक अशुद्धियों (जैसे NDMA कैंसरजन्य पदार्थ) के कारण रिकॉल या बिक्री निलंबन, की गई थी । यह अलग बात है कि  पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया गया । 2018-2020 में वैल्सार्टन जैसी दवाओं में समस्या पाई गई।
2022 के कफ सीरप  भारत में निर्मित सिरप से विदेशों में 70 से 85 बच्चों की मृत्यु हुई थी जिसमें गाम्बिया 66-70 मौतें,  उज्बेकिस्तान 18-19 मौतें,  हुईं थीं। डायएथिलीन ग्लाइकॉल ही कारण था।भारत में भी कुछ मौतें (मुंबई, जम्मू-कश्मीर) हुईं, लेकिन सटीक संख्या कम थी।
विश्व में  नकली दवाओं का कारोबार
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, नकली दवाओं का वैश्विक बाजार $200 बिलियन का है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी उल्लेखनीय है। हालांकि, ये प्रतिबंध विशिष्ट हैं, न कि सभी भारतीय दवाओं पर।
अमानक दवाओं का उत्पादन,
कफ सिरप जैसे उत्पादों से बच्चों की मौत, और आयुर्वेदिक व एलोपैथिक दवाओं के बीच बढ़ता संघर्ष इस समस्या को और जटिल बना रहा है। सरकार और प्रशासनिक इकाइयों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इस लेख में हम ड्रग माफिया के बढ़ते प्रभाव, अमानक दवाओं के खतरे, और इनसे निपटने के उपायों पर चर्चा करेंगे।
अमानक दवाओं के खतरों से कैसे निपटें
भारत में ड्रग माफिया का नेटवर्क तेजी से फैल रहा है। नशीली दवाओं और अमानक दवाइयों का उत्पादन और वितरण न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरा है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संरचना को भी कमजोर कर रहा है। हाल के वर्षों में, कफ सिरप जैसे सामान्य उत्पादों के कारण बच्चों की मृत्यु की घटनाएं सामने आई हैं, जो स्वास्थ्य सेवाओं और नियामक तंत्र की विफलता को दर्शाती हैं।
भारत में अमानक और नकली दवाओं का बाजार फल-फूल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर नकली दवाओं का बाजार 200 अरब डॉलर से अधिक का है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी भी काफी है। अमानक दवाएं न केवल उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को जोखिम में डालती हैं, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में विश्वास को भी कम करती हैं। कफ सिरप से जुड़ी हालिया घटनाएं इसका जीवंत उदाहरण हैं, जहां बच्चों की जान जोखिम में पड़ रही है।
प्रशासनिक लापरवाही और नियामक कमियां
अमानक दवाओं के उत्पादन को रोकने के लिए प्रशासनिक और नियामक व्यवस्था में सुधार की जरूरत है। कई मामलों में, दवा उत्पादन इकाइयों की निगरानी में ढिलाई और भ्रष्टाचार की वजह से नकली और अमानक दवाएं बाजार में पहुंच रही हैं। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन  और राज्य स्तरीय दवा नियामक निकायों को और सख्ती से काम करने की आवश्यकता है।
एलोपैथी बनाम आयुर्वेद के मध्य अनावश्यक संघर्ष
भारत में आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दवाओं के बीच एक कृत्रिम संघर्ष बनाया जा रहा है। आयुर्वेदिक दवाओं के प्रति नकारात्मक माहौल बनाकर कुछ कंपनियां और संगठन अपने हित साध रहे हैं। मौसमी बीमारियों जैसे खांसी, जुकाम, और बुखार के इलाज में आयुर्वेदिक उपचार प्रभावी हो सकते हैं, लेकिन एलोपैथिक दवाओं की आक्रामक मार्केटिंग ने इनका महत्व कम कर दिया है। इससे सामान्य बीमारियों का इलाज भी महंगा और जोखिम भरा हो गया है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) को इस मामले में जिम्मेदारी लेते हुए दवा कंपनियों की आक्रामक मार्केटिंग और अमानक दवाओं के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। IMA को उपभोक्ता हितों की रक्षा और आयुर्वेदिक व एलोपैथिक चिकित्सा के बीच संतुलन स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यश भारत के कुछ सुझाव केंद्र एवं राज्य सरकारों  के लिए सकारात्मक साबित हो सकते हैं -
सख्त नियामक नीति की बहुत आवश्यकता है। दवा उत्पादन और वितरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम लागू किए जाएं।
दवा उत्पादन इकाइयों की नियमित जांच और कठोर लाइसेंसिंग प्रक्रिया लागू की जाए।
उपभोक्ताओं को नकली और अमानक दवाओं के प्रति जागरूक करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाए जाएं।
दोनों चिकित्सा पद्धतियों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जाए ताकि मरीजों को किफायती और सुरक्षित इलाज मिल सके।
इलाज से बेहतर है ऐतियात के सिद्धांत पर काम करते हुए हमें गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए सतर्क रहना बहुत जरूरी है। बच्चों के इम्युनिटी पावर को मजबूत करने के लिए प्राकृतिक रूप से मिलने वाले माइक्रोन्यूट्रिएंट्स युक्त खाद्य पदार्थ का उपयोग करना बहुत जरूरी है। ताकि वे मौसमी बदलाव और वातावरण में व्याप्त विषाणुओं के प्रभाव से बच सकें।
  नशीली और अमानक दवाओं के कारोबार पर कठोर कार्रवाई के लिए विशेष टास्क फोर्स गठित की जाए।
      भारत में ड्रग माफिया और अमानक दवाओं का बढ़ता संकट एक गंभीर समस्या है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। सरकार, प्रशासन, और चिकित्सा संगठनों को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। उपभोक्ता हितों की रक्षा, दवा उत्पादन में पारदर्शिता, और आयुर्वेदिक व एलोपैथिक चिकित्सा के बीच सामंजस्य स्थापित करके ही हम इस समस्या से निपट सकते हैं।

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