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शनिवार, 12 अप्रैल 2025

बांग्लादेश में सैन्य अधिकारियों की गिरफ्तारी के दुष्परिणाम

बांग्लादेश में सैन्य अधिकारियों की गिरफ्तारी के दुष्परिणाम
आलेख: गिरीश बिल्लौरे मुकुल
Disclaimer: This article has been prepared on the basis of facts present on the media.The article has been written in a completely unbiased manner and prepared with the support of XAI
बांग्लादेश, दक्षिण एशिया का एक विकासशील राष्ट्र, वर्तमान कुछ महीनो से सुर्खियों में है। यह देश सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। विशेष रूप से सैन्य अधिकारियों की गिरफ्तारी और इससे जुड़े घटनाक्रम ने न केवल बांग्लादेश की आंतरिक स्थिति को प्रभावित किया है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
"आ बैल मुझे मार : खतरों को आमंत्रित करता बांग्लादेश"
2024 में बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ छात्र आंदोलन एक शर्मनाक दोराहे पर  पहुंचा दिया गया, जहां से प्रजातंत्र धीरे-धीरे समाप्त होने की राह पर है। कितना ही नहीं बांग्लादेश की वर्तमान व्यवस्था ने अपनी ही सेना भी लपेट लिया है।
जबकि नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त डॉक्टर मोहम्मद यूनुस इस व्यवस्था के प्रधानाचार्य हैं।
आपको याद ही है कि इस कथित छात्र आंदोलन ने शेख हसीना की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथी अंतरिम सरकार की स्थापना कराई गई। 
छात्रों का आरोप था कि आरक्षण नीति मेधावी उम्मीदवारों के अवसरों को सीमित कर रही थी। हालांकि, यह आंदोलन जल्द ही हिंसक हो गया, जिसमें कई लोगों की जान गई और कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गई। इस आंदोलन ने बांग्लादेश की राजनीतिक संरचना को हिलाकर रख दिया, जिसके परिणामस्वरूप सैन्य और नागरिक प्रशासन के बीच तनाव बढ़ गया।
सैन्य अधिकारियों की कार्रवाई
शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं, पर हमले बढ़ गए। मंदिरों पर हमले, संपत्ति की लूट, और जबरन इस्तीफे की घटनाएं सामने आईं। इस अस्थिरता के बीच, कुछ सैन्य अधिकारियों ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। इन अधिकारियों ने हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने और अल्पसंख्यक समुदायों को सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास किया। हालांकि, उनकी यह कार्रवाई विवादों में घिर गई, और उन पर छात्र आंदोलन के दौरान शेख हसीना की मदद करने का आरोप लगाया गया।
 इनमें ब्रिगेडियर जकारिया हुसैन, ब्रिगेडियर जनरल इमरान, RAB से कर्नल अब्दुल्ला अल-मोमेन, BGB के लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद रिदवानुल इस्लाम और ईस्ट बंगाल रेजिमेंट से मेजर मोहम्मद नोमान अल फारुक शामिल हैं। 
"क्या होगा सैन्य अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे कायम करने से.."
1.सामाजिक व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव
    हाल ही में, अंतरिम सरकार ने पांच वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को नजरबंद किया, जिनमें दो ब्रिगेडियर शामिल हैं। इन पर आरोप है कि उन्होंने छात्र आंदोलन के दौरान शेख हसीना की सरकार का समर्थन किया। इन अधिकारियों के खिलाफ अपराधिक प्रकरण दायर करने की कोशिश ने बांग्लादेश की सामाजिक व्यवस्था को और अस्थिर करने का खतरा पैदा कर दिया है। सैन्य बल, जो देश की स्थिरता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, इस तरह की कार्रवाइयों से कमजोर हो सकता है। इससे न केवल आंतरिक सुरक्षा पर संकट मंडराएगा, बल्कि जनता का सरकार पर भरोसा भी कम होगा, जिससे सामाजिक एकता को नुकसान पहुंचेगा।
2. क्षेत्रीय प्रभाव
बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाओं को हवा देने के लिए कुछ ताकतें सक्रिय हैं, जिनमें कट्टरपंथी संगठन और बाहरी ताकतों आई एस आई की भूमिका संदिग्ध है। मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार पर आरोप है कि वह जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों को संरक्षण दे रही है, जो भारत विरोधी गतिविधियों के लिए कुख्यात हैं। इस तरह का वातावरण दक्षिण एशिया में स्थिरता के लिए खतरा है। भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर लंबी साझा सीमा को देखते हुए, यह स्थिति भारत की सुरक्षा के लिए भी चिंताजनक है। भारत ने बार-बार बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया है, लेकिन अंतरिम सरकार की प्रतिक्रिया न तो संतोषजनक रही और न ही एक मैच्योर डेमोक्रेटिक सिस्टम का परिचय दे रही है।
3. कट्टरपंथी वातावरण और सामाजिक-आर्थिक अस्थिरता
बांग्लादेश की आजादी के बाद से ही कट्टरपंथी ताकतें देश में अपनी पैठ बनाने की कोशिश करती रही हैं। जमात-ए-इस्लामी और हिज्ब उत-तहरीर जैसे संगठनों ने समय-समय पर धार्मिक उन्माद को बढ़ावा दिया है। शेख हसीना की सरकार ने इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन अंतरिम सरकार ने इन प्रतिबंधों को हटा लिया, जिससे कट्टरपंथ को बढ़ावा मिला। इसका परिणाम सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता के रूप में सामने आया है, जिसने देश की आर्थिक प्रगति को भी प्रभावित किया है। अल्पसंख्यकों पर हमले और सामाजिक तनाव ने बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष छवि को धूमिल किया है।
4.क्या मोहम्मद यूनुस, बांग्लादेश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक हैं?
   मोहम्मद यूनुस, जो नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं, पर आरोप है कि वह अंतरिम सरकार के माध्यम से तानाशाही स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी सरकार ने पूर्व सरकार के समर्थकों, सैन्य अधिकारियों, और अल्पसंख्यक नेताओं के खिलाफ कार्रवाइयां शुरू की हैं, जिसे कई लोग प्रजातांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास मानते हैं। यूनुस पर यह भी आरोप है कि वह दीर्घकाल तक सत्ता में बने रहने के लिए कट्टरपंथी ताकतों का सहारा ले रहे हैं। इससे बांग्लादेश की प्रजातांत्रिक संरचना खतरे में पड़ गई है, और आम जनता का भविष्य अनिश्चित हो गया है।
5: आम जनता पर खतरा
यूनुस की नीतियों और कार्रवाइयों ने बांग्लादेश की आम जनता को कई मोर्चों पर खतरे में डाल दिया है। अल्पसंख्यकों पर हमले, कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति, और आर्थिक अस्थिरता ने जनजीवन को प्रभावित किया है। विशेष रूप से हिंदू समुदाय, जो देश की आबादी का लगभग 7.95% है, भय और असुरक्षा के माहौल में जी रहा है। इसके अलावा, सैन्य और नागरिक प्रशासन के बीच बढ़ता तनाव सामाजिक एकता को और कमजोर कर सकता है, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा।
6:बांग्लादेश का आर्थिक नुकसान
  बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति कर रही थी, लेकिन मौजूदा अस्थिरता ने इसे गंभीर नुकसान पहुंचाया है। विश्व बैंक के अनुसार, बांग्लादेश की जीडीपी 2024 में लगभग 460 बिलियन डॉलर थी, लेकिन 2025 में इसमें कमी की आशंका है। विदेशी व्यापार, जो बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, भी प्रभावित हुआ है। 2023-24 में बांग्लादेश का निर्यात 55 बिलियन डॉलर और आयात 80 बिलियन डॉलर था, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह आंकड़ा घट सकता है। रेडीमेड गारमेंट उद्योग, जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान का सामना कर रहा है।
7:  स्वास्थ्य, शिक्षा और खुशहाली सूचकांक
    बांग्लादेश ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन मौजूदा संकट इन उपलब्धियों को खतरे में डाल सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बांग्लादेश में प्रति 1,000 लोगों पर 0.6 डॉक्टर उपलब्ध हैं, जो वैश्विक औसत से काफी कम है। शिक्षा में, प्राथमिक स्कूलों में नामांकन दर 98% है, लेकिन उच्च शिक्षा तक पहुंच सीमित है। संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक (HDI) 2023 में बांग्लादेश का स्थान 129वां था, जो मध्यम मानव विकास की श्रेणी में आता है।
विश्व खुशहाली सूचकांक (World Happiness Index) 2024 में बांग्लादेश 118वें स्थान पर था, जो सामाजिक और आर्थिक तनाव को दर्शाता है।
8.:   भारत  और क्षेत्रीय प्रभाव
मोहम्मद यूनुस ने भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों (सेवेन सिस्टर्स) पर टिप्पणी करके भारत के साथ तनाव को बढ़ाया है। भारत ने इसका कड़ा जवाब देते हुए बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है। भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापारिक संबंध, जो 2023-24 में 14 बिलियन डॉलर के थे, इस तनाव के कारण प्रभावित हुए हैं। बांग्लादेश की आम जनता को भी इस तनाव का और अधिक खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि भारत उसका एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है।
9: बांग्लादेश वैश्विक व्यापारिक संबंधों पर प्रभाव
बांग्लादेश की अस्थिरता ने यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों के साथ उसके व्यापारिक संबंधों को जोखिम में डाल दिया है। यूरोपीय संघ, जो बांग्लादेश के गारमेंट निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है, ने मानवाधिकार उल्लंघनों पर चिंता जताई है। अगर यह स्थिति बनी रही, तो बांग्लादेश को विशेष व्यापारिक छूट (GSP) से वंचित किया जा सकता है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को और नुकसान होगा।
10:  दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका
दक्षिण एशिया में शांति, व्यापार और समरसता को बढ़ावा देना भारत की नैतिक जिम्मेदारी है। बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में स्थिरता सुनिश्चित करना भारत के हित में है। जैसा कि कहा जाता है, “आप अपने घर में उत्सव नहीं मना सकते, जब पड़ोस में शोक का माहौल हो।” भारत को बांग्लादेश की स्थिति पर सतर्कता के साथ कूटनीतिक कदम उठाने होंगे, ताकि क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे।

बांग्लादेश में सैन्य अधिकारियों की गिरफ्तारी और इससे जुड़े घटनाक्रम ने देश को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संकट की ओर धकेल दिया है। छात्र आंदोलन, कट्टरपंथी ताकतों का उभार, और भारत विरोधी वातावरण ने न केवल बांग्लादेश की प्रगति को खतरे में डाला है, बल्कि दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय स्थिरता को भी प्रभावित किया है। मोहम्मद यूनुस की सरकार को चाहिए कि वह प्रजातांत्रिक मूल्यों का सम्मान करे, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, और आर्थिक स्थिरता के लिए ठोस कदम उठाए। भारत और अन्य वैश्विक शक्तियों को भी बांग्लादेश की स्थिति पर नजर रखते हुए रचनात्मक हस्तक्षेप करना होगा, ताकि यह विकासशील देश फिर से समृद्धि की राह पर लौट सके।

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