फ़ागुन के
गुन प्रेमी जाने, बेसुध तन अरु मन बौराना
या जोगी पहचाने फ़ागुन
, हर गोपी संग दिखते कान्हा
रात गये
नज़दीक जुनहैया,दूर प्रिया इत मन
अकुलाना
सोचे
जोगीरा शशिधर आए ,भक्ति -
भांग पिये मस्ताना
प्रेम
रसीला, भक्ति अमिय सी,लख टेसू न फ़ूला समाना
डाल झुकीं
तरुणी के तन सी, आम का बाग
गया बौराना
जीवन के
दो पंथ निराले,कृष्ण की भक्ति अरु प्रिय को
पाना
दौनों ही
मस्ती के पथ हैं , नित होवे है आना जाना--..!!
चैत की
लम्बी दोपहरिया में– जीवन भी पलपल अनुमाना
छोर मिले
न ओर मिले, चिंतित मन किस पथ पे जाना ?
गिरीश
बिल्लोरे “मुकुल”
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (14-03-2017) को
जवाब देंहटाएं"मचा है चारों ओर धमाल" (चर्चा अंक-2605)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Abhar sir
हटाएंAsghar hai Sir
जवाब देंहटाएंफ़ागुन के गुन प्रेमी जाने, बेसुध तन अरु मन बौराना
जवाब देंहटाएंया जोगी पहचाने फ़ागुन , हर गोपी संग दिखते कान्हा
अतिसुन्दर।
ध्रुव जी आभार
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