वो हवा के झोंके सा आया .
मेरे तनहा जीवन में .
एक आस सजाने लगी .
मैं वीरान उपवन में ..
कब वो जीवन का .
एक हिस्सा बन गया .
रोज याद करूँ .
यादगार किस्सा बन गया .
न देखा उसे .
न जाना है ..
बस इसी आभासी दुनिया में
उसका भी ठिकाना है .
रोज शाम परिंदे की तरह ,
हम फेसबुक की डाल पर मिलते हैं .
करते हैं , एक दूजे से गिले शिकवे ..
फिर भी मिलने को तरसते हैं .
आज जुकर बर्ग की मेहरबानी .
की शब्दों का आकर मिला .
तनहा जिन्दगी में .
दोस्तों का संसार मिला .
इस अंतरजाल की ,
नवमी वर्षगाँठ में ..
हर दोस्त को दिल से दुआ है .
आभासी कहते हैं इसे जरुर .
पर इसने सत्य को जिया
waah .............facebook ki nawmi warshganth me dost ka ye tohfa hmen pasand aaya ...shukriya girish ji
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भाव और प्रेम की तलाश को संजोये एक सुंदर सी कविता..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब भाव पूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
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