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शनिवार, 25 अगस्त 2012

उष्ण स्वांसों को अवरोधित करती तुम्हारे आने की आह

साभार : राजेश खेरा जी
उष्ण स्वांसों को अवरोधित
करती तुम्हारे आने की आहट
शायद अब कब किधर कैसे आएंगीं
जानती हूं की तुम दूर बहुत दूर हो
फ़िर यकबयक जाने
किधर से कैसे और  क्यों आ जातीं हैं !!
शायद तुम मुझसे जितने दूर हो
उतने पास महसूस करती मैं
सबकी नज़रों में एक पागल-दीवानी हूं..
तुम्हारी प्रीत के  महाकाव्य की एक छद्म कहानी हूं !!
सच सावनी विरह का अंत
अक्सर
बेखुदी
बेखयाली
और और क्या
बस तुम्हारे पास होने के
आभासी एहसास के अलावा और कुछ भी नहीं




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