मन में आकर तुम ने मेरे पीर भरा जोड़ा क्यों नाता .
अपनी अनुबंधित शामों से क्यों कर तोड़ा तुमने नाता
मैं न जानूं रीत प्रीत की, तुम ने लजा लजा सिखलाई..
इक अनबोली कहन कही अरु राह प्रीत की मुझे दिखाई
इक तो मन मेरा मस्ताना-मंद मंद तेरा मुस्काना ..
भले दूर हो फ़िर तुमसे.. बहुत गहन है मेरा नाता..!!
मन में आकर तुम …………………………………..!!
उर मेरे आ बसे सलोने, सपन तुम्हारे ही कारन हैं,
कैसे “प्रीत-अर्चना” कर लूं..? मन का भी तो अनुशासन है.
मेरा पल पल रंगा है तुमने, सपने तुमने लिये वसंती-
प्रिया हो तुम तो रंगरेजन सी..तुमको पत्थर रंगना आता !!
मन में आकर तुम …………………………………..!!
अपनी अनुबंधित शामों से क्यों कर तोड़ा तुमने नाता
मैं न जानूं रीत प्रीत की, तुम ने लजा लजा सिखलाई..
इक अनबोली कहन कही अरु राह प्रीत की मुझे दिखाई
इक तो मन मेरा मस्ताना-मंद मंद तेरा मुस्काना ..
भले दूर हो फ़िर तुमसे.. बहुत गहन है मेरा नाता..!!
मन में आकर तुम …………………………………..!!
उर मेरे आ बसे सलोने, सपन तुम्हारे ही कारन हैं,
कैसे “प्रीत-अर्चना” कर लूं..? मन का भी तो अनुशासन है.
मेरा पल पल रंगा है तुमने, सपने तुमने लिये वसंती-
प्रिया हो तुम तो रंगरेजन सी..तुमको पत्थर रंगना आता !!
मन में आकर तुम …………………………………..!!
satya vachan maharaj
जवाब देंहटाएंउम्दा !!
जवाब देंहटाएंमेरा पल पल रंगा है तुमने, सपने तुमने लिये वसंती-
जवाब देंहटाएंप्रिया हो तुम तो रंगरेजन सी..तुमको पत्थर रंगना आता !!
सुंदर प्रस्तुति.
सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसभी सुधिजनों का आभार
जवाब देंहटाएंभले दूर हो फ़िर तुमसे.. बहुत गहन है मेरा नाता..!!
जवाब देंहटाएंवाह... बहुत खूबसूरत रचना... आभार
bahut pyaari si komal ehsaas liye sundar rachna.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/847.html
चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
वाह जी ...बढिया है ये प्रीत निराली सी
जवाब देंहटाएंभैया बहुत सटीक है, भौजी जी मनमार |
जवाब देंहटाएंदर्दे दिल की दें दवा, प्यार भरा उपहार |
प्यार भरा उपहार, पीर तो अरुण-किरण है |
फैले अब उजियार, प्रस्तर राम चरण है |
तरेगी गौतम नार, जमा मिष्ठान खवैया |
रविकर भी है साथ, साथ हैं भाभी भैया ||
dineshkidillagi.blogspot.com
प्रभावशाली प्रस्तुति ...
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