संवादों के सुर बदले अब
बदली बदली काव्य चेतना
मंच मंच बनी आज़ दूकानें
खुद को चाहें लोग ही बेचना
खोती आज काव्य चेतना !!
खुद को गीत बताया बेचा
मीत यही क्या गीत बेचना
सुर संधान नही है कविता
त्याग मीत खद्योत चेतना
खोती आज काव्य चेतना !!
तुमने कितने किये टोटके
खुद ही आज स्वयं देखना
मीत अगर सच्चे कवि होतो
पीर के बदले गीत बेचना
तभी जगेगी राष्ट्र चेतना !!
बदली बदली काव्य चेतना
मंच मंच बनी आज़ दूकानें
खुद को चाहें लोग ही बेचना
खोती आज काव्य चेतना !!
खुद को गीत बताया बेचा
मीत यही क्या गीत बेचना
सुर संधान नही है कविता
त्याग मीत खद्योत चेतना
खोती आज काव्य चेतना !!
तुमने कितने किये टोटके
खुद ही आज स्वयं देखना
मीत अगर सच्चे कवि होतो
पीर के बदले गीत बेचना
तभी जगेगी राष्ट्र चेतना !!
मीत अगर सच्चे कवि होतो
जवाब देंहटाएंपीर के बदले गीत बेचना.waah.
वाह..कमाल की कविता..
जवाब देंहटाएं