दो लफ़्ज़ों से "प्रेम" लिखा, अपनी अपनी .. धड़कन पर..!
फ़िर वही फ़साना बना जिसे हम अक्सर हम दुहराते हैं !!
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प्रीत ने संयम तोड़ दिया तो रुसवाई की धुल उडी ...
अपराधी से हटीं अंगुलियां, आज़ हमारी ओर मुड़ी...!!
सच की दस्तक़ किस घर दें हम दरवाज़े लग जातें हैं !!
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वो जीवन भी कैसा जीवन, प्रीत का पाठ जो न बांचे
वो क्या जानें तड़प हीर की,क्यों कर दीवाने रांझे...?
प्रीत-शिखर पे जो जा पहुंचे, सफ़ल वही हो जाते हैं.
*********** तुम चाहो तो घृणा करो अब, या मुझको मत स्वीकारो
चाहे जितना कोसो मुझको या पग पग बाधा डालो
हम तो हैं पागल दीवाने, प्रेम गीत ही गाते हैं...
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कविता की मुझे ज्यादा समझ नहीं है मित्र...लेकिन आपकी ये रचना मुझे बड़ी प्यारी लगी...
जवाब देंहटाएंपहले आप सटीक लिखिए गिरीश भाई
जवाब देंहटाएंफिर हम टिप्पणी लिखेंगे।
बहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
तुम चाहो तो घृणा करो अब, या मुझको मत स्वीकारो
जवाब देंहटाएंचाहे जितना कोसो मुझको या पग पग बाधा डालो
हम तो हैं पागल दीवाने, प्रेम गीत ही गाते हैं...likhte likhte prem bahut kuch seekha jayega