साभार: नौभास से |
अपनी अनुबंधित शामों से क्यों कर तोड़ा तुमने नाता
मैं न जानूं रीत प्रीत की, तुम ने लजा लजा सिखलाई..
इक अनबोली कहन कही अरु राह प्रीत की मुझे दिखाई
इक तो मन मेरा मस्ताना-मंद मंद तेरा मुस्काना ..
भले दूर हो फ़िर तुमसे.. बहुत गहन है मेरा नाता..!!
मन में आकर तुम .........................................!!
उर मेरे आ बसे सलोने, सपन तुम्हारे ही कारन हैं,
कैसे "प्रीत-अर्चना" कर लूं..? मन का भी तो अनुशासन है.
मेरा पल पल रंगा है तुमने, सपने तुमने लिये वसंती-
प्रिया हो तुम तो रंगरेजन सी..तुमको पत्थर रंगना आता !!
मन में आकर तुम .........................................!!
waaaaaaah...! badi pyaari रंगरेजन hai aapki to... :)
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