साभार : लोकसत्ता |
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा
वाह बहुत सुंदर कविता है नितांत व्यक्तिगत.
जवाब देंहटाएंवाह! उतर गये...
जवाब देंहटाएंकागल भाई
जवाब देंहटाएंयह कविता एक मरणासन्न व्यक्ति का मृत्यु-सुंदरी से सम्वाद है अत: व्यक्तिगत कविता कदापि नहीं है.....ये नैराश्य की जीवल से उकताहट की कविता भी है. काजल भाई एवम समीर भाई दौनों का शुक्रिया
शाश्वत पावन अभिसारिका
जवाब देंहटाएंतुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा
प्रतीक्षारत ... अनवरत ... शाश्वत
प्रतीक्षा है अभिसारिका के बाहुपाश की
जवाब देंहटाएंलेकिन ये होती बड़ी बेरहम है
किसी पर रहम नहीं करती
बचना चाह कर भी नहीं बच पाते
हजार तालों से बाहर निकाल लाती है।
मधुबाला ढूंढ लेती है मद की खुश्बु
बहुत खूब ...बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, अनुपम प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत ही सुंदर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर.
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