एक अदेखे स्वप्न से आतंकित
बीच विचारों चिंताओं के
पिसता चीखता चिल्लाता
मैं सत्य हूं सत्य के क़रीब हूं !!
मैं सच्चा हूं अच्छा हूं ……..!!
तुम सब मेरी सत्ता को स्वीकारो
जी हां,
यही जीवन जीता हूं
पर क्यों
अस्तित्व की रक्षा की कशिश
सत्ता की तपिश
इनको कारण बताता
बस एक प्रेम की किरण न दे सका
जीवन तभी तो
आतंकित है
एक अदेखे स्वप्न से
हम्म!! फिर से पढ़ते हैं...उतरते हैं गहराई में.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति .. शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया क्या बात हैं ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, आप सब को नवरात्रो की शुभकामनायें,
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता लिखते हो भाई गिरीश ।
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