मन प्रियतम का प्रेम पिपासु अपलक तुम्हें निहारूं प्रियतम
सभागार में बोलूँ कैसे ? नयनन शब्द उचारूं प्रियतम..!
चपल अधिक हिरनी से भी तुम, मैं मर्यादा से तागा हूँ
भयवश दूर न हो जाओ मुझसे कैसे कहो पुकारूं प्रियतम !
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जो कहना है साफ़ कहो प्रिय चुप रहने से न बेहतर है
मुझे प्रीत दो अथवा पीड़ा, सब कुछ तुम पर ही निरभर है
चलो पीर ही दे दो मुझको अपने गीत निखारूँ प्रियतम !
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तुम यौवन की राजकुमारी में पीड़ा शहजादा हूँ
जवाब देंहटाएंहिरनी से भी अधिक चपल तुम, मर्यादा से मैं तागा हूँ
-सुन्दर पंक्तियां.
आभार कमांडर इन चीफ
जवाब देंहटाएंभय वश भाग न जाओ मुझसे कैसे तुम्हें पुकारूं प्रियतम'
जवाब देंहटाएंशायद यही भय है जो अव्यक्त रह जाने की पीडा लिये उम्र भर सालता रहता है.
बेहतरीन पंक्तिया - सुन्दर अभिव्यक्ति
ह्रदय उदगार प्रकट कहने का अनुरोध बहुत सुरीला है ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर ...!!
सुंदर पंक्तियों के साथ ......... सुंदर पोस्ट...........
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी
जवाब देंहटाएंवाणी जी महफूज़ भाई, सुमन जी, वर्मा जी
आभार
प्रथम प्रीत की बातें हैं
गीत वहीं तक जाते हैं
तुम यौवन की राजकुमारी में पीड़ा शहजादा हूँ। वाह वाह आज तक तो नारी की पहचान ही पीडा से सुनी थी । मगर शह्ज़ादा ? वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। निशब्द कर दिया इस रचना ने शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंवर्मा जी अब देखिये
जवाब देंहटाएंभयवश दूर न हो जाओ तुम कैसे कहो तुम्हें पुकारूं प्रियतम !
कपिला जी कवि-मन तो नारी से भी कोमल होता है
आप तो जानतीं है "आह से पहले गान का उपजना "