गुलाम अली साहब और जगजीत सिंह साहब के सुरों में प्रेमगीत आपको इस लिए पसंद है की आपके दिल की ही बात है. जो सुरों से सजी-धजी फिर अपने घर यानी आपके दिल में वापस आती है. आज मेरे दिल ने चाहा और जी भर सुना झूम उठा माशूका के चौदहवीं के सरीखे चाँद से चेहरे को याद कर . किसी ने सही ही कहा है हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गाएगा किन्तु जुस्तजू जिसकी थी उसे न पाकर हमारी क्या दशा होगी आप क्या जानें .
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आज महफूज़ भाई का ये ब्लॉग देखिये ज़रूर बेहद भावनात्मक आलेख है,उधर अपने भाई संजय तिवारी को एक रहस्यमयी चिट्ठी मिली आप ज़रूर देखिये. रहा सवाल चर्चा की सो वो इर्द गिर्द से शुरू होकर इर्द गिर्द पे ही ख़त्म होती है.सुकुल जी चाहे जो कहें इग्नोर शब्द को जीना भी एक कला है ...
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साभार :-यू-ट्यूब,
इग्नोर शब्द को जीना भी एक कला है ...बहुत उँची बात कह गये भाई आप!!
जवाब देंहटाएंआपको बधाई!!
कुछ ख़ास लोग ही इसे जीते हैं समीर भाई
जवाब देंहटाएंमेरी नज़र में जब दिल साफ़ हो तो कोई इस
वृत्ति पर अंगुली नहीं उठाता किन्तु
किसी भी व्यवस्था में ऐसी सामप्रदायिकता
चाहे वो ब्लागिंग ही क्यों न हो स्वीकृति योग्य नहीं
'मुकुल'भाई आप ने तो दो लाईनो मै हजार बात कह दी.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
yah to achchi bat hai
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