एक गीत प्रीत का गुन गुना रहा है मन
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थी चपल हुई सरल , प्रेम राग है यही
नयनों ने कह डाली बातें सब अनकही
नेह का निवाला लिए दौड़ती फिरूं मैं क्यों
पीहर के संयम को आजमा रहा है मन !
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भोर की प्रतीक्षिता,कब तलक रुकूं कहो
सन्मुख प्रतिबंधों के कब तलक झुकूं कहो
बंधन-प्रतिबंधन सब मुझ पे ही लागू क्यों
मुक्त कण्ठ गाने दो जो गुनगुना रहा है मन
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मैं बैठीं हूं कब से प्रीत के निवाले ले
मन में लेके उलझन, हिवडे में छाले ले
मादक है प्रीत नींद क्योंकर मन जाग उठे
मत जगाओ सोने दो कसमसा रहा है मन
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छवि :वेब दुनिया से साभार
Wikipedia
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बुधवार, 4 नवंबर 2009
सन्मुख प्रतिबंधों के कब तलक झुकूं कहो

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मैं बैठीं हूं कब से प्रीत के निवाले ले
जवाब देंहटाएंमन में लेके उलझन, हिवडे में छाले ले
मादक है प्रीत नींद क्योंकर मन जाग उठे
मत जगाओ सोने दो कसमसा रहा है मन
बहुत सुंद्रर कविता.
धन्यवाद
सुन्दर गीत:
जवाब देंहटाएंमैं बैठीं हूं कब से प्रीत के निवाले ले
मन में लेके उलझन, हिवडे में छाले ले
-आभार प्रस्तुति का.
भोर की प्रतीक्षिता,कब तलक रुकूं कहो
जवाब देंहटाएंसन्मुख प्रतिबंधों के कब तलक झुकूं कहो
बहुत ही सुन्दर गीत.
मैं बैठीं हूं कब से प्रीत के निवाले ले
जवाब देंहटाएंमन में लेके उलझन, हिवडे में छाले ले
मादक है प्रीत नींद क्योंकर मन जाग उठे
मत जगाओ सोने दो कसमसा रहा है मन ......
सुन्दर प्रेम रस की कविता है ......... सुन्दर शब्द संयोजन है ........
saras rachna hetu sadhuvad.
जवाब देंहटाएंbahut khoob, gar intizaar na ho, to mahndi bhi rang na de.
जवाब देंहटाएंएक गीत प्रीत का गुन गुना रहा है मन ....
जवाब देंहटाएंyeh padh jhoom utha mera bawra man ....!
Shukriya aap sabhee ka
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