प्रिया,सहज ही तुमने क्योंकर
भेजा मुझ तक प्रीत निमंत्रण ..!
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मैं विरही हूँ तुम प्रतिबंधित
हर आहट पे हुए सशंकित
चिंता भरे हरेक पल मेरे
मन बिसरा करना अब चिंतन !
हूक उभरती तुम्हें याद कर
बिना मिलन हर जीत विसर्जन !
प्रिया,सहज ही तुमने क्योंकर
भेजा मुझ तक प्रीत निमंत्रण ..!
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तुम्हें खोजतीं आंखें मेरी
टकटक शशि की ओर निहारें !
तुम उस पथ से आतीं होगी ,
सोच के अँखियाँ पंथ-बुहारें !
तुम संयम की सुदृढ़ बानगी
मैं संयम से सदा अकिंचन !
प्रिया,सहज ही तुमने क्योंकर
भेजा मुझ तक प्रीत निमंत्रण ..!
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वैसे तो मुझे कविता की कुछ ज़्यादा समझ नहीं है लेकिन फिर भी आपको पढना अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंवाह...प्रिया के स्नेह निमंत्रण की ऐसी प्रतिक्रिया कि क्मस्तिष्क में सवाल उभर रहे हैं....बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंतनेजा साहब आभारी हूँ आपका
जवाब देंहटाएंअजित भैया
जवाब देंहटाएंकालेज के दिनों की घटना है
आज याद आ गई सो लिख दिया
पधारने का आभार
ये क्या चक्कर है जी
जवाब देंहटाएंकरवा चौथ का
वृत किया मैं तुम हो की ...?
गिरीश भाई...अच्छा लिखा. ग़ज़ब की सरसता है...अब देखना है कि भाभी का बेलन बरसता है या नहीं....!
जवाब देंहटाएंभैया साथ में बैठी थीं
जवाब देंहटाएंगुस्से से उठ गईं
अब मैं भी चला
मैं विरही हूँ तुम प्रतिबंधित
जवाब देंहटाएंहर आहट पे हुए सशंकित
तुम संयम की सुदृढ़ बानगी
मैं संयम से सदा अकिंचन !
संयमित प्रतिबन्ध लिखवा ही देता है ऐसी सुन्दर रचना ..!!
यही सही है निमंत्रण!!
जवाब देंहटाएंbबहुत् सुन्दर स्नेह निमन्त्रण बधाई
जवाब देंहटाएंbhawpurn nimantran.....har shabd mein ek gahan arth hai
जवाब देंहटाएंमैं विरही हूँ तुम प्रतिबंधित
जवाब देंहटाएंहर आहट पे हुए सशंकित
kya baat hai! ati sundar.
सुन्दर प्रणय रचना है ...........
जवाब देंहटाएंये दीपावली आपके जीवन में नयी नयी खुशियाँ ले कर आये .........
बहुत बहुत मंगल कामनाएं .........
टकटक शशि की ओर निहारें !
जवाब देंहटाएंतुम उस पथ से आतीं होगी ,
सोच के अँखियाँ पंथ-बुहारें !
तुम संयम की सुदृढ़ बानगी
मैं संयम से सदा अकिंचन !
प्रिया,सहज ही तुमने क्योंकर
भेजा मुझ तक प्रीत निमंत्रण ..!
क्या संयामियों के बीच प्रीत निमंत्रण नहीं भेजा जाता ......???
हकीर जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन
संयम से जो सदा अकिंचन [गरीब] हो उसे
प्रीत निमंत्रण "?
मैं संयम से सदा अकिंचन !
प्रिया,सहज ही तुमने क्योंकर..?
नारी मन की सहजता
कभी कभी उसकी कमजोरी बन जाती
है यही आधार है इस गीत का
तुम्हें खोजतीं आंखें मेरी
जवाब देंहटाएंटकटक शशि की ओर निहारें !
तुम उस पथ से आतीं होगी ,
सोच के अँखियाँ पंथ-बुहारें !nice
अर्थ स्पष्ट करने के लिए शुक्रिया .....
जवाब देंहटाएंये 'बेलन' तो मैं देखा ही नहीं था ....!!
भाई वाह बहुत खूबसूरत हिंदी गीत.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना । अधिक तर लोगों की कहानी बहुत ही भावपूर्ण और छंदमय शब्दों में साकार की है आपने ।
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