[ निवेदन:- यह आलेख मैं बेहद कठिन भाषा में लिख रहा हूं कठिन तो नहीं लेकिन कूट भाषा कहूंगा और उसकी वजह यह है कि आज भी प्यालों में जहर लेकर कुछ स्वयंभू न्यायाधीश सजा को एक्जीक्यूट करने मेरे पीछे दौड़ रहे हैं ।
मैं उन जहर के प्याले लेकर दौड़ने वालों के प्रति भी बिल्कुल नाराजगी का भाव नहीं रखता तभी तो उनके नाम नहीं ले रहा हूं
वर्ना अभिव्यक्ति के ब्रह्मास्त्र से वे तो क्या उनकी पीढ़ियां भी नहीं बच सकतीं
💐💐💐💐💐💐
सुकरात को जहर पीना पड़ा था । हर सच्चे के लिए जहर एक अमृत ही तो है । 6000 साल पहले श्रीमद भगवत गीता 10000 साल पहले रामायण उसके पहले वेद और फिर वेदांत में यही सब कुछ तो है !
जो समझ ही नहीं पाते कि सनातन दर्शन क्या है ? सनातन दर्शन मानव समाज का दर्शन है।
याद होगा आपको एलेक्जेंडर के गुरु अरस्तु ने सुकरात को उनके मरने के बाद बहुत दिनों तक जिंदा रखा हम सब तक पहुंचाया ।
दूसरी हम इतने बेवकूफ हैं कि हम कहते हैं विश्व के प्रथम सत्यार्थी हम हैं ....!
कुछ बेवकूफ लोगों ने दुनिया को दो भागों में बांट दिया था । कुछ उसके भी टुकड़े कर रहे हैं। बांग्लादेश में हो रहा नरसंहार क्या है?
यजीदियों पर हिंसक आक्रमण क्यों ?
क्रूसेड और जिहाद क्यों ? यहूदी गैस चैंबर में क्यों ठूंसे गए। T
अब मैं पूरे विश्व के दुनिया के सभी सत्यार्थियों को सुकरात सहित नमन करता हूं प्रणाम करता हूं
सुकरात दर्शन की चरम स्थिति पर थे।
दर्शन की चरम परिस्थिति थी, पर वह यह नहीं जानता था कि चंद्रमा सूरज और बाकी सौरमंडल देवता है या सूरज के इर्द गिर्द चक्कर लगाने वाले बालू मिट्टी के या गैस के गोले ।
कुछ टटपूजिए विद्वान ( जो विद्वान कम पुजारी ज्यादा थे ) ने एनेक्सावारस को युवा सुकरात के समक्ष ले गए.... जो यह दावा कर रहा था कि चंद्रमा कोई देवी नहीं है बल्कि पत्थर पहाड़ों का पिंड है और सुकरात ने अपनी राय ज़ाहिर करने से इनकार कर दिया क्योंकि तब तक उस सत्य से अनभिज्ञ थे ।
सुकरात ने उस विद्वान से सहमति या असहमति नहीं जताई तो #पुजारी_ब्रांड विद्वान नाराज हो गया । यहां यह तथ्य गौरतलब है कि सुकरात जी तथ्य को नहीं जानते थे उसे अभिव्यक्त भी नहीं करते थे।
ऐसे ही व्यक्ति सत्यार्थी होते हैं। सुकरात सत्यार्थी थे
एथेंस के इस सत्यार्थी का निरंतर सत्य की तलाश में लगे रहना और और उसे जनता के बीच रख देनावह जितने करीब पहुंचता सत्य की उजागर कर देता तो रूढ़ीवादी यूनानी लोग सत्यार्थी से दूरियां कायम करने लगते ।
केवल युवा और समझदार लोग ही एथेंस के सत्यार्थी के , आस पास होते थे।
जी हां केवल ऐसे ही युवा सुकरात के साथ होते जो नैतिकता, चारित्रिक पवित्रता एवं सत्य संधान के हिमायती होते थे।
280 वोट के कारण महान सुकरात को शरीर त्यागना पड़ा।
सत्यार्थी सुकरात ने ऐसा कुछ नहीं किया था कि उनके संदेश किसी लिपि में लिपिबद्ध मिलते। भला हो उनके शिष्यों का जिन्होंने उनके दर्शन को सबके समक्ष प्रस्तुत किया। मुझे लगता है कि ज़हर भी अमृत वाला काम कर देता है। सुकरात को अगर ज़हर न दिया जाता तो शायद वे अमर न होते। मैं दावे के साथ कहता हूं हर सच्चे के लिए ज़हर एक अमृत ही तो है । याद रखना होगा कि एलेक्जेंडर के गुरु अरस्तु ने सुकरात को बहुत दिनों तक जिंदा रखा हम सब तक पहुंचाया , अब हम सुकरात को जिंदा रख रहे हैं ।
फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि हम में से कुछ बेवकूफ हैं कि कहते हैं विश्व के सत्यार्थी हम हैं ....!
जब भी कोई रुदिया तोड़े या रूढ़ियों को तोड़ने की बात करे तो उसका गला काट दिया जाता है जुबान सिल दी जाती है शरीर को सर से सीधे काट दिया जाता है।
मेरा मन भी मंसूरों, सुकरातों , कन्फ्यूसियसों, तेगबहादुरों , रजनीशों, जैसे सत्यार्थियों को प्रणाम करता हूं
सुकरात को लेकर एक किस्सा याद आता है जब सुकरात दर्शन की चरम परिस्थिति थे स्थिति बस वे यह नहीं जानते थे कि - चंद्रमा सूरज और बाक़ी सौरमंडल के ग्रह और सूरज देवता हैं या सूरज के इर्द गिर्द चक्कर लगाने वाले बालू मिट्टी के या गैस के गोले । तब उनसे मिलने कुछ टटपूजिए विद्वान जो विद्वान कम पुजारी ज्यादा थे आए।
पेशेवर पुजारी ने एनेक्सावारस को युवा सुकरात के समक्ष ले गए.... जो यह दावा कर रहा था कि चंद्रमा कोई देवी नहीं है बल्कि पत्थर पहाड़ों का पिंड है और सुकरात ने अपनी राय ज़ाहिर करने से इंकार दिया क्योंकि तब तक उस सत्य से अभिज्ञ थे
ने उस विद्वान से सहमति या असहमति नहीं जताई तो #पुजारी_ब्रांड विद्वान नाराज हो गए ।
एथेंस का सत्यार्थी निरंतर सत्य की तलाश में लगा रहा और वह जितने करीब पहुंचता सत्य की उजागर कर देता तो रूढ़ीवादी यूनानी लोग सत्यार्थी से दूरियां कायम करने लगते । केवल युवा और समझदार लोग ही एथेंस के सत्यार्थी के , आस पास होते । 470 ईसा पूर्व से 399 ईसा पूर्व यानी केवल 71 वर्ष की उम्र में सुकरात ने पश्चिम जीवन को अपने दार्शनिक चरित्र से बदलने का प्रयास किया।
राजनीति कभी भी दर्शन को बर्दाश्त नहीं करती चाहे वह प्रजातांत्रिक हो या क्राउन के अधीन हो। राजनीति सत्ता के सौंदर्य को अगर खतरा होता है तो केवल सच्चाई से। हर का उद्घाटन दर्शन से होता है। इसमें कोई शक नहीं कि प्रोफेसर रजनीश से असहमति हो सकती है , गांधी से भी पूरी तरह सहमत होना मेरे हिसाब से जरूरी नहीं है, बुद्ध भी पूरी तरह स्वीकार योग्य है कि नहीं यह निर्धारित करना प्राणी का अपना दृष्टिकोण होता है। परंतु तीनों दार्शनिकों के मामले में देखा गया कि वैचारिक उन्माद ने इन्हें जीने नहीं दिया।
ज्ञात तो आपको भी होगा कि... 6000 साल पहले कृष्ण ने अर्जुन और अपनी मातुश्री को अपने मुंह में ब्रह्मांड के घूमते हुए पिंड दिखा दिए थे । भारतीय दार्शनिक योगीराज कृष्ण ने लाखों ब्रह्मांड तथा अनंत सूर्य की झलक भी दिखा दी थी
एथेंस के सत्यार्थी सुकरात से पूर्व भारत के योगी अंतरिक्ष और अनंत निहारिकाओं, के संबंध में बहुत ही व्यापक विश्लेषण कर चुके थे ।
470 ईसा पूर्व में जन्मे सुकरात ने अपने मृत्यु 399 ईसा पूर्व तक एक ब्रह्मांड का पता कर लिया था।
जब सुकरात ने जब सौरमंडल की रचना का रहस्य उद्घाटन किया तो उसे यूनान ने बर्दाश्त नहीं किया। असहमत होना अलग बात है, परंतु बर्दाश्त न होना हिंसा को जन्म देता है।
एथेंस का सत्यार्थी डेमोक्रेटिक सिस्टम की सीमाएं बताई साथ ही एकमात्र निरंकार ब्रह्म के अस्तित्व को का उल्लेख किया तो एथेंस का अभिजात्य वर्ग हाहाकार करने लगा ।
एथेंस के इस सत्यार्थी ने ईश्वर को राजा से भी ऊपर बताया वह किसी देवता के अस्तित्व को अस्वीकार करता ।
बहुलदेव वाद के वैज्ञानिक स्वरूप को स्वीकार करना चाहिए । जैसे - कुबेर का अर्थ तार्किक हो तो हम कुबेर वैश्विक इकोनामिक रेगुलेटरी सिस्टम करने लगेंगे।
यह अलग बात है कि पुजारी किस्म के लोग
हमको पागल और सरफिरा कह सकते हैं।
यहां कबीर को हमें आगे रखना होगा
जिसने कहा था -"काकर पाथर जोड़कर..!*
अरे भाई सच ही तो कह रहा हूं हम जिन देवताओं को मानते हैं या एथेंस जिन देवताओं को मानता था या मानता है वे किसी न किसी गतिविधि के प्रतीकात्मक मुखिया नजर आते हैं, जिनकी हम एक परिकल्पित आकृति बना लेते हैं।
और उन्हें किसी रहस्यमई देवी या देवता के रूप में मानना गलत नहीं है।
प्रकृति का संचालन, हमारी उसमें उपस्थित, हमारा ईको सिस्टम, सबका संचालन विष्णु के हाथों में है।
सोचकर माना जाए कि बुद्धि का देवता बुध है अर्थात बौद्धिकता का प्रतीक बुध ग्रह है तुम मुझे कोई आपत्ति नहीं पर वह देवता है कुछ अचानक चमत्कार कर देगा स्वीकार्य नहीं है ।
अव्वल तो अंतरिक्ष का एक ग्रह है दूसरा बौद्धिकता का प्रतीक है और तीसरा वह कोई चमत्कार नहीं करने वाला आपकी हो अचानक अतुलित ज्ञान देने वाला भी नहीं है बल्कि आपकी अपने अध्ययन चिंतन योग्य मनन से वह सब कुछ हासिल हो जाएगा ज्ञान हासिल करने का कोई शॉर्टकट भी नहीं है मित्रों ।
और जिनको तुम देवी देवता मानते हो न वे रहस्यमय कभी नहीं थे और न ही रहस्यमय होंगे ।
वे तुम्हारे लिए अगर रहस्य वाली बातें श्रेयकर हैं तुम उसे ही मानते हो तो कभी तुमने देवी नर्मदा से संवाद किया है नहीं न केवल भक्ति का नाटक अवश्य किया है।
मैंने किया है एक बार घटना सुनना चाहते हो ?
तो सुनो .... मेरा साक्षात्कार देवी से हुआ सौहार्द पूर्ण शिष्टाचार के आदान प्रदान के बाद वे बोले - भाई ये मूर्ख मेरी पूजा करने आते हैं कि मुझ पर कहर ढाने ?
मैंने पूछा - यानि मैं समझा नहीं आप क्या कह रही हैं ?
वे बोले - तुम्हारे शहर का एक यायावर मेरी परिक्रमा करते वक्त मेरे आसपास के कचरे साफ कर दिया करता था जिसे शायद तुम सब अमृत लाल बेगड़ के नाम से जानते हो। और ये नामाकूल कथित भक्त मेरी राह में गंदगी डालते हैं ।
मां नर्मदा की बात से एग्री हूँ पर क्या कहूँ न अमृतलाल वेगड़ जी अब मौज़ूद हैं वर्ना साक्ष्य दिला देता । अरे हां याद आया बेगड़ जी की कृतियों में इस बात का जिक्र है।
💐💐💐💐💐
अरस्तु डेमोक्रेटिक सिस्टम की राय कि अगर किसी डूबते या तैरते हुए जहाज में कप्तान को सलाह लेना हो तो मासूम यात्रियों से सलाह नहीं लेगा । सलाह विशेषज्ञ से ली जावेगी न कि मूर्खों से वोटिंग कराई ।
प्रजातंत्र की अपनी सीमाएं होती हैं परंतु यूनान में हर बात वोटिंग से तय हुआ करती थी थी ।
यह वो दौर था जब यूनान का हर महत्वपूर्ण मुद्दा वोटिंग के आधार पर निर्णय तक पहुंच पाता था । सुकरात को लेकर भी इस तरह की एक अदालत बैठाई गई, इस अदालत में 500 ज्यूरी सदस्य थे। सभी को यह निर्णय करना था कि सुकरात में देवी देवताओं के विरुद्ध जो मंतव्य बनाया है वह एक अपराध है और इस अपराध के लिए सुकरात को जहर देखकर मार देना चाहिए।
सुकरात की जीवन को 220 वोट मिले और मृत्यु के फैसले को 280 लोगों ने स्वीकृति दी थी । उन लोगों से रिश्वत जरूर खाई थी जो चाहते थे कि सुकरात का अंत हो जाए सुकरात जिद्दी थे उनको मालूम था कि एथेनिका के एथेंस उनको अद्भुत प्रेम है वे यूनान और एथेंस कि लोगों से बेहद निस्वार्थ प्यार करते थे और करते भी क्यों ना एथेंस में जन्मा व्यक्ति एथेंस में ही मरना चाहेगा जैसे हम आप अपने शहर को गांव को प्यार करते हैं और उस हद तक कि इसी शहर से हम अनंत यात्रा पर निकले देश निकाली से बेहतर जहर वाली सजा को कबूल किया ।
ईशा के चार पांच सौ साल पहले की ही बात है ना और अब अभी वही स्थिति है कई सुकरातों को जहर पिलाया जाता है दफ्तरों में, मीडिया ट्रायल के रूप में, कभी-कभी तो अखबारों में, भी समाज में यानी हर जगह है लोगों को कितना नेगेटिव पोट्रेट करते हैं लोग और इसमें कितना मजा आता है इसका अंदाज़ा लगाओ ।
शेर का शिकार करना किसे पसंद नहीं दुर्भाग्य है कि शेर का शिकार शेर या शिकारी नहीं कर रहे गीदड़ करने लगे हैं आजकल...!
एक बात कहूं यहां #मैं शब्द का इस्तेमाल मैंने इस पोस्ट के प्राक्कथन में भी किया है और अंत में भी कर दिया इसका अर्थ यह ना लगाना की मैं स्वयं के बारे में कुछ लिख रहा हूं साहित्य सबके लिए लिखा जाता है ध्यान रहे मैं वही करता हूं
आज से लगभग 2500 साल पहले सुकरात ने समझ लिया था कि यह एक सौर मंडल है ।
ज्ञात तो आपको भी होगा कि... 6000 साल पहले कृष्ण ने अर्जुन और अपनी मातुश्री को अपने मुंह में ब्रह्मांड के घूमते हुए पिंड दिखा दिए थे ।
उसके भी पूर्ण नवग्रह के संबंध में बहुत ही व्यापक विश्लेषण कर चुके थे हमारे योगी ।
एथेंस का सत्यार्थी डेमोक्रेटिक सिस्टम की सीमाएं बताता साथ ही एकमात्र निरंकार ब्रह्म के अस्तित्व को रेखांकित करता तो एथेंस का अभिजात्य वर्ग हाहाकार करता । सत्यार्थी ईश्वर को राजा से भी ऊपर बताता वह किसी देवता के अस्तित्व को अस्वीकार करता जैसे मैं भी एक बात बार बार कहता हूं- कुबेर का अर्थ कोई देवता या व्यक्ति नहीं है बल्कि कुबेर वैश्विक इकोनामिक रेगुलेटरी सिस्टम है तो लोग सर खुजाने लगते हैं । अरे भाई सच ही तो कह रहा हूं हम जिन देवताओं को मानते हैं या एथेंस जिन देवताओं को मानता था या मानता है वे किसी ना किसी गतिविधि के हेड होते हैं और उन्हें किसी रहस्यमई देवी या देवता के रूप में मानना गलत तो नहीं है बल्कि अगर यह सोचकर माना जाए कि बुद्धि का देवता बुध है अर्थात बौद्धिकता का प्रतीक बुध ग्रह है तुम मुझे कोई आपत्ति नहीं पर वह देवता है कुछ अचानक चमत्कार कर देगा स्वीकार्य नहीं है अव्वल तो अंतरिक्ष का एक ग्रह है दूसरा बौद्धिकता का प्रतीक है और तीसरा वह कोई चमत्कार नहीं करने वाला आपकी हो अचानक अतुलित ज्ञान देने वाला भी नहीं है बल्कि आपकी अपने अध्ययन चिंतन योग्य मनन से वह सब कुछ हासिल हो जाएगा ज्ञान हासिल करने का कोई शॉर्टकट भी नहीं है मित्रों ।
और जिनको तुम देवी देवता मानते हो न वे रहस्यमय कभी नहीं थे और न ही रहस्यमय होंगे । वे तुम्हारे लिए अगर रहस्य वाली बातें श्रेयकर हैं तो सुनो .... एकबार मेरा साक्षात्कार वरुण देवता से हुआ सौहार्द पूर्ण शिष्टाचार के आदान प्रदान के बाद वे बोले - भाई ये मूर्ख मेरी पूजा करने आते हैं कि मुझ पर कहर ढाने ?
मैंने पूछा यानि
वे बोले - तुम्हारे शहर का एक यायावर मेरी परिक्रमा करते वक्त मेरे आसपास के कचरे साफ कर दिया करता था । और ये नामाकूल मेरी राह में गंदगी डालते हैं ।
वरुण देव की बात से एग्री हूँ पर क्या कहूँ न अमृतलाल वेगड़ जी आब मौज़ूद हैं वर्ना साक्ष्य दिला देता । उनकी किताबें पढ़ लो सब सामने आ जाएगा ।
💐💐💐💐💐
अरस्तु डेमोक्रेटिक सिस्टम पर स्पष्ट रूप से बताते थे की अगर किसी जहाज में कप्तान को सलाह देना हो तो सलाह विशेषज्ञ से ली जावे न कि किसी अज्ञानी की सलाह ली जावे।
सुकरात दोषी है या नहीं इस विषय पर जब एथेंस में 500 लोगों की जूरी ने सुकरात को सही साबित किया।
वोटिंग में सुकरात के जीवन के लिए 220 वोट मिले और मृत्यु के फैसले को 280 लोगों ने स्वीकृति दी थी । अब उनके पास एक विकल्प था कि उन्हें अपना जीवन बचाना है तो वह एथेंस से बाहर जा सकते हैं ? या फिर ज़हर का प्याला पीकर मृत्यु को गले लगा सकते हैं?
सुकरात जिद्दी प्रेमी थे , एथेंस से उनको अद्भुत प्रेम था, वे यूनान और एथेंस कि लोगों से बेहद निस्वार्थ प्यार करते थे और करते भी क्यों न ?
एथेंस में जन्मा व्यक्ति एथेंस में ही मरना चाहेगा न!
जैसे हम और आप अपने शहर को , अपने गांव को प्यार करते हैं । हमारा प्रेम उस हद तक होता है कि जिस गांव या शहर से हम जीवन की यात्रा पर निकले इस गांव या शहर से अपनी अनंत यात्रा पर भी निकलें ।
देश निकाली से बेहतर जहर वाली सजा को कबूल किया ।
ईसा के चार पांच सौ साल पहले की ही बात है ना और अब अभी वही स्थिति है कई सुकरातों को जहर पिलाया जाता है दफ्तरों में, मीडिया ट्रायल के रूप में, कभी-कभी तो अखबारों में, भी समाज में यानी हर जगह है लोगों को कितना नेगेटिव पोट्रेट करते हैं लोग और इसमें कितना मजा आता है इसका अंदाज़ा लगाओ ।
शेर का शिकार करना किसे पसंद नहीं दुर्भाग्य है कि शेर का शिकार शेर या शिकारी नहीं कर रहे गीदड़ करने लगे हैं आजकल...!
एक बात कहूं यहां #मैं शब्द का इस्तेमाल मैंने इस पोस्ट के प्राक्कथन में भी किया है और अंत में भी कर दिया इसका अर्थ यह न लगाना की मैं स्वयं के बारे में कुछ लिख रहा हूं या किसी को टारगेट कर रहा हूं।
साहित्य सबके लिए लिखा जाता है ध्यान रहे मैं वही करता हूं !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ कीजिए शायद सटीक लिख सकूं