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शनिवार, 11 मार्च 2023

मुकुल के फागुनी दोहे


गंजों की होली भई,
 बहुतई भयो धमाल।
उचकत गंजे यूँ लगे, 
अंडे लेत उबाल ।।
सारे इक से दिखते, 
होली पर्व कमाल।
कौन करोड़ीलाल है,
कहां छकौड़ी लाल।।
विजया को ऐसो नशा,
सबरे लबरा मौन।
घरवाली से पूछते, 
हम तुम्हारे कौन ?
रंग जमा जब भंग का, 
होने लगा बवाल।
रंग सियासी भूलकर, 
मलने लगे गुलाल।।
मंद पवन मादक बदन,
प्रियतम भाव विभोर।
पायल-ध्वनि मोहकलगे,
बाक़ी  सब कुछ शोर
नयनन भाए प्रीत रंग, 
प्रीत पवन हर ओर।
टेसू बोते वेदना, 
विरहन पीर अछोर।। 
प्रिय बिन बैरन-सी लगे पायल की झंकार।
हाथ निवाला ले खड़ा 
ओंठ करे इनकार॥ 
देह जगाए कामना, 
हाथ सजाते फूल।
दरपन तब बोले सुनो, 
भई प्रणय अनुकूल  ॥
मादक माधव माह यो, मिलन बिरह समझाय ।
प्रिय से दूर तनिक रहो, प्रीत दुगुन हुई जाय ॥
तापस का प्रिय राम है, 
ज्यों बनिकों को दाम।
प्रेम-रीति के दास हम, 
मुख वामा को नाम ।।
गिरीश बिल्लौरे मुकुल

1 टिप्पणी:

  1. दोहा किसी भी भाषा में क्यों न लिखें , विधान का ध्यान रखें।
    पहले दोहे के समचरण की शुरुवात वर्जित पँचकल से हुई है। इसे भयो बहुतई कर लें।
    दसरे दोहे में दो त्रुटियाँ हैं-- 1 इक उर्दू में मात्रा गिराने हेतु लिखा जाता है।
    2 कल विधान एवम मात्रा दोनों गलत है।
    12 मात्रा एवम विषम चरण का चरणान्त 212 होना चाहिए। आपका 22 है।
    7 दोहे में यति लगाएं।
    9 वें में विधान दोष है।
    33 2 विषमकल विधान और 4 4 2 सम कल होता है। अपने 2 2 3 3 कर दिया । इसे यूँ लिखें--- तनिक डोर प्रिय से रहो
    अगले सम चरण में 12 मात्रा हो गई हैं।

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