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सोमवार, 27 मई 2024

आने भी दो देख लेंगें, फसले-बहार को.

 *ग़ज़ल*

*आने भी दो देख लेंगें, फसले-बहार को.*

*क्योंकर कहो यूं, आप भी बेक़रार हो..!*

*आया जो यहाँ हमसे वो लेके ही गया,*

*रुसवाई ही मिली थी, इस खाक़सार को..*

*ज़ख्मों को साथ रखता हूँ ये वफादार हैं-*

*क्यों साथ रखूँ अपने, किसी रसूखदार को-*

*रिश्तों को सिक्कों से जब कोई तौलने लगे*

*न जाना उसके आंगन भाई हो या यार हो.*

*“माँ..! तेरे नाम के सिवा विरासत में कुछ नहीं*

*जबसे कहा है मुझको मुकुल, कर्ज़दार हो..*

*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

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