##गिरीश_की_ग़ज़ल
इज़ाजत दे तेरी सोहबत से जाना चाहता हूं .
हक़ीकत-तेरी, दुनिया को बताना चाहता हूं .
सिंहासन से सवालों का हश्र मालूम है मुझको-
अपनी आवाज़ का असर देखना चाहता हूं .
सियासत जी-हुजूरी और ताक़त से मुझे क्या ?
हां अपने गीत, अपनी धुन में गाना चाहता हूं.
कसीदे पढ़ने वाले और होंगे तेरी महफिल के-
मैं अपनी खुद को ही सुनाना चाहता हूं.
तेरी छत घर तेरा रसूख तेरा ही आशियाना है-
बनके अंबर ऐसी छतों पर छाना चाहता हूं.
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
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