फोटो मुकुल यादव
भूले नहीं भूलता कोई
कच्ची कैरी वाला गांव
।
एसी कूलर पंखे से शीतल
मिट्टी के घर वाला गांव।।
टप टप गिरतीं पकी निंबोली
पके बेल की मदिर सुगंध .
दरभजिया में कच्ची कैरी-
खाते सब रोटी के संग ..
गर्म दुपहरी अमराई में....
किस्सागोई वाला गांव ।।
यहां पड़ोसी अनजाने से
वहां सभी थे पहचाने से।
हर घर से, हरेक का नाता
यहां के नाते मुस्काने के ।।
याद बहुत आता है मुझको
सबको गुथने वाला गांव ।।
चिलम तंबाकू चौपतिये अरु
चोपड़ ताश की बाज़ी सजती ।
खबरें सुनते ट्रांज़िस्टर पर-
कहीं रामधुन, ढोलक
बजती।।
रात नौ तक सब सो जाते-
जल्दी उठने वाला गांव ।।
*गीतकार:गिरीश
बिल्लोरे मुकुल*
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