[ ] "दिल में....!"*
पंख कमज़ोर हैं, उड़ान बेशक़ ऊंची तो नहीं-
बनके सागर आकाश उतार दिया दिल में ।
मुझको अपनी पीढा पे रोने से रोकते क्यों हो ?
ज़हर से तेज़ ज़हर है क्या समाया दिल में ।
न जाने मुझको अब रोज यही लगता है -
बुतशिकन, बुत बनाने का इरादा आया दिल में ।
अपने निज़ाम ओ' खूँ पे , जो इतराते हैं लोगों-
उनका चेहरा पहले से ही है, नुमाया दिल में ।।
वो जो अतफाल को गुमराह किया करतें हैं-
जानके फिर कभी न, उनको बसाया दिल में ।।
[ ] *हम सबको सीखा देते हैं..!*
जिन समंदर मुक़ाबिल हैं ये दुनिया वाले-
ऐसे सागर को अपने दिल में जगह देतें है ।।
रिंद हूँ सागरो-मीना से मुहब्बत है मुझको,
साक़ी, ये बात हम तुमको भी बता देतें हैं ।।
कोई पूजा करे करने दे, बुतशिकन न बन
अपनी बस्ती को क्यों आप जला लेते हैं ?
जो सिखा पाए न उनको ग़ालिब ओ' रहीम "मुकुल" स्कूल में वो सब भी सिखा देते हैं ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
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