पोर पोर पीर
बोई पलक पलक धार ने
बिरह अगन
झुलसाए, प्रीत के ब्यौपार में
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पाखी के
जोड़े को संग साथ देख जरूं,
प्रीत पाती
लिख तुमसे, बेसुध हो बात करूं !
बिरहा में जीवन, ज्यों बाटियां
अंगार में… !
बिरह अगन
झुलसाए, प्रीत के ब्यौपार में !!
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मद भी मैं
मदिरा भी, अमृत मैं मान भी,
प्रिय बिन
आधी मैं ही,प्रिय की पहचान भी..!
बो मत प्रिय
नागफ़नी, तरुतट कचनार में..!!
बिरह अगन
झुलसाए, प्रीत के ब्यौपार में !!
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आखर तो आखर
हैं,आखर में भाव भर
केवल अब
प्रेम कर , मोल कर न भाव कर
प्रेम कहां
मिलता है..? ऊंचे बाज़ार में..?
बिरह अगन
झुलसाए, प्रीत के ब्यौपार में !!
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