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मंगलवार, 19 अगस्त 2014

पोर पोर पीर बोई पलक पलक धार ने

पोर पोर पीर बोई पलक पलक धार ने
बिरह अगन झुलसाए, प्रीत के ब्यौपार में
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पाखी के जोड़े को संग साथ देख जरूं,
प्रीत पाती लिख तुमसे, बेसुध हो बात करूं !
बिरहा में जीवन, ज्यों बाटियां अंगार में… !
बिरह अगन झुलसाए, प्रीत के ब्यौपार में  !!
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मद भी मैं मदिरा भी, अमृत मैं मान भी,
प्रिय बिन आधी मैं ही,प्रिय की पहचान भी..!
बो मत प्रिय नागफ़नी, तरुतट कचनार में..!!
बिरह अगन झुलसाए, प्रीत के ब्यौपार में  !!
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आखर तो आखर हैं,आखर में भाव भर
केवल अब प्रेम कर , मोल कर न भाव कर
प्रेम कहां मिलता है..? ऊंचे बाज़ार में..?
बिरह अगन झुलसाए, प्रीत के ब्यौपार में  !!

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