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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

जैसे सावन सूर को, ऊसर न दिख पाए ...!!

प्रिय छब ऐसी मोहिनी, लख कछु भी न  भाए-
अंखियन से वो सब कहा, ओंठ जो कह न पाए

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गहरे  सागर  से  नयन , मन  भी  गोताखोर- 
छवि जो नित न लख सकूं, मनमोर मचाए शोर 
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प्रियपथ की अनुगामिनी, अनदेखे अकुलाय
जैसे सावन सूर को, ऊसर न दिख पाए ...!!
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