फ़ागुन में सब भूल गई री, जो गुन तैने मोहे सिखाए !
जो देखी छब प्रिय की मैने , रीझो तन अरु मन अकुलाए !!
रंग गुलाबी, पीरो नीरो, लाल, हरो मोहे अब न भाए-
प्रीत को रंग लगै हूं प्रिय को, लाख जतन से छूट न पाए !!
प्रीत की विजया ऐसी नशीली, मद जाको तन से न जाए -
तन से जाए जो मद ऐसो, मन में जाके आग लगाए !!
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