विरह ताप से रिसें जो रिश्ते कैसे फ़िर पाएं आकार ?
एहसासों के बंधन को , मत कहिये इक जनव्यव्हार !!
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अनुबंधों से प्रतिबंधों तक सब कुछ मेरा तेरा है.....
प्रीत हुई तो सब कुछ "अपना" ना कुछ तेरा-मेरा है !
ध्यान से सुनना मन की वीणा यही कहे है हर झंकार !!
एहसासों के बंधन को , ....... !!
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प्रीत-आधारी दुनियां साथी,शेष सभी कुछ उजड़ा वन है !
जब हम तुम नज़दीक नहीं तो- होता है सांचा अभिसार !!
एहसासों के बंधन को , ......... !!
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न तुम भटको न मैं अटकूं, चिंता के इस बयाबान में
एक कसम हम दौनों ले लें-रहें हमेशा एक ध्यान में !
प्रीत प्रियतम एक पावन पूजा,न तो तिज़ारत न व्यापार
एहसासों के बंधन को , ......... !!
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bahut khoob...
जवाब देंहटाएंन तुम भटको न मैं अटकूं, चिंता के इस बयाबान में
जवाब देंहटाएंएक कसम हम दौनों ले लें-रहें हमेशा एक ध्यान में !.. वाह !! आपकी रचना बहुत पसंद आई गिरीश जी .. !!
आभार ये एक "आध्यात्मिक एहसास है"
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रीत प्रियतम एक पावन पूजा,न तो तिज़ारत न व्यापार
जवाब देंहटाएंयही होता है सांचा अभिसार. बहुत सुन्दर रचना... गहन भाव...
आभार
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