साभार अनिल कार्की जी के ब्लाग अंधेरे में...... से |
अक्सर तुम से जब मिलती हूं
कुछ कहना था कुछ कहती हूं.
मुद्दे पर आते आते
हया सामने आ जाती है..
बात अधूरी रह जाती है...!!
तुमसे ये कहना था
वो सुनना था
सब कुछ
बिसरी तुम्हैं देख कर
डूब गई फ़िर प्रीत धुंध में
जाने कल फ़िर मिलो न मिलो..!
कुछ कहने को जब जी ने चाहा
तुम बोले अब मैं जाता हूं-
अवसर मिलते ही आता हूं..
ऐसे कितने वादे सहती हूं
सूनी सूनी मेरी रातें
मुझसे तारे गिनवातीं हैं..!!
जब बात अधूरी रह जाती है...!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ कीजिए शायद सटीक लिख सकूं