मौन फ़िर भी पूर्णत: व्यक्त
मदालस गंध से संपृक्त....!!
तुम्हैं पाकर अक्सर मन कहता है
तुम पूजा के योग्य हो..!!
और फ़िर लगाता हूं
पूजा के लिये जुगत
ताम्र-पात्र में गंगा सा पावन जल
चंदन अक्षत रोली गंध-सुगंध
सच ये सब तुम्हारे ही तो मीत हैं..
तुम आराधना के सहभागी
तुम पावन और अनुरागी
लोग कहतें हैं तुम "शबाब" हो
मेरे लिये तुम पूजा की थाल का गुलाब हो ..!!
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति………गुलाब दिवस की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंwaah...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंsundar prastuti
जवाब देंहटाएंमौन फ़िर भी पूर्णत: व्यक्त
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शाब्दिक चयन....सुंदर अभिव्यक्ति
तुम आराधना की सहभागी
जवाब देंहटाएंतुम पावन और अनुरागी
लोग कहतें हैं तुम "शबाब" हो
मेरे लिये
गुलाब हो ..!!
अद्भुत अभिव्यक्ति......
वाह लाजवाब प्रस्तुति मुकुल जी ...
जवाब देंहटाएंगुलाब का शबाब भी तो काँटों से निखरा रहता है ...
आभार
जवाब देंहटाएं