by Girish Mukul
रिस रिस के छाजल रीत गई
तुम बात करो मैं गीत लिखूं
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कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
कुछ ताने बाने अब तो बुनो
जो बीत गया वो सपना था-
जो आज़ सहज वो अपना है
तुम अलख निरंजित हो मुझमें
मन चाहे मैं तुम को भी दिखूं
तुम बात करो मैं गीत लिखूं
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तुम गहराई सागर सी
भर दो प्रिय मेरी गागर भी
रिस रिस के छाजल रीत गई
संग साथ चलो दो जीत नई
इसके आगे कुछ कह न सकूं
तुम बात करो मैं गीत लिखूं
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तुमको को होगा इंतज़ार
मन भीगे आऎ कब फ़ुहार..?
न मिल मिल पाए तो मत रोना
ये नेह रहेगा फ़िर उधार..!
मैं नेह मंत्र की माल जपूं
तुम बात करो मैं गीत लिखूं
Waaaaaaaaaah...
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना ....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुंदर रचना…
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक रचना , बधाई
जवाब देंहटाएंतुम गहराई सागर सी
जवाब देंहटाएंभर दो प्रिय मेरी गागर भी
रिस रिस के छाजल रीत गई
संग साथ चलो दो जीत नई
इसके आगे कुछ कह न सकूं
तुम बात करो मैं गीत लिखूं...
बहुत खूबसूरत रचना....