तुम उन सवालों का बोझ
अपने मानस पर लाद के
कब तक कहां तक
बस चलती रहोगी
मेरी तरह कब तक एक बार भी
व्यक्त न कर करोगी..?
सोचता हूं..
बहुत दृढ़ हो
पाषाण की तरह
पर जब छूता हूं तुम्हारे मनको
तो नर्म मखमली एहसासों को
महसूस करता हूं...
देर तक बहुत दूर तक
तुम
वाक़ई एक
रेशमी एहसासों की मंजूषा सी
अक्सर रहती हो मेरे साथ..!!
अनकही अनाभिव्यक्त प्रेम कथा
की नायिका
क्यों..नहीं कह पाता हूं
दूर हो जाओ मुझसे..?
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ और सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन जी को नमन!
जवाब देंहटाएंगिरीश जी कविता सुंदर है। पर अंत थोड़ा कठोर है। इसे नर्म तरीके से कहेंगे तो कविता बेहतर हो जाएगी।
जवाब देंहटाएंसच में अनाभिव्यक्त प्रेम की पीड़ा है यह ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
जवाब देंहटाएंआह!! वाह!! बहुत उत्कृष्ट रचना...बधाई...
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