मन मधुवन अरु देह राधिका हिवड़ा ताल सजाए !
कैसे रोकूं ख़ुद को कान्हा, सावन मन भरमाए !!
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मैं बिरहन बिरहा की मारी, अश्रु झरें ज्यों चिंगारी
सावन बीतो जाए..
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नातों के बन छोड़ के मोहे, राधा संग तुम रास रचाते
जोबन बीतो जाए..
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करुण पुकार सुनी कान्हा ने, आए अरु मुस्काए
सुन प्रिय मोरी चाहत उसपे.. जो न स्वांग रचाए
बिन चाहत के आए...
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