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शनिवार, 4 दिसंबर 2010

आभासी प्रियतमा

तुम्हारी प्यार भरी भोली भाली बातें
सुन बन जातीं हैं रातें लम्बी रातें
तुम कौन हो क्यों हो उस आभासी दुनिया
के उस पार से
जहां एक तिनके की आड़ लेकर
देख रहीं हो कनखियों से 
सच तुम जो भी हो आभासी नही 
प्रेम की मूर्ति 
हां वही जो
कलाकार गढ़तें है
वही जो गीतकार रचते हैं
फ़िर भी खुद से पूछता हूं
कल पूछूंगा उनसे तुम कौन हो 

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