एक किताब
सखी के साथ
बांचती बिटिया
पीछे से दादी देखती है गौर से
बिटिया को लगभग पढ़ती है
टकटकी लगाये उनको देखती
कभी पराई हो जाने का भाव
तो कभी
कन्यादान के ज़रिये पुण्य कमाने के लिये
मन में उसके बड़े हो जाने का इंतज़ार भी तो कर रही है ?
इसके आगे और क्या सोच सकती है मां
हां सोचती तो है कभी कभार
छै: बरस की थी तब वो भी तो बन गई थी दुलहनियां
तेरह की थी तो गरभ में कल्लू आ गया था
बाद वाली चार मरी संतानें भी गिन रही है
कुल आठ औलादों की जननी
पौत्रियों
के बारे में खूब सोचती हैं
दादियां उसकी ज़ल्द शादी के सपने
पर ख़त्म हो जाती है ये सोच
Wikipedia
खोज नतीजे
शुक्रवार, 17 सितंबर 2010
हां सोचती तो है कभी कभार छै: बरस की थी तब वो भी तो बन गई थी दुलहनियां
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में।
शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी
छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन
सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ad
कुल पेज दृश्य
-
अध्याय 01 में आपने पढ़ा कि किस प्रकार से वामपंथी और भारतीय सहित्यकारों ने इतिहासकारों के साथ मिलकर इस मंतव्य को स्थापित कर दिया कि...
-
आमतौर पर अपने आप को इंटेलेक्चुअल साबित करने वाले लोग आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करते हैं ! जो लोग परंपरागत विचारों को मानते हैं वह आत्म...
-
(Girish Billore Mukul, Independent Writer and Journalist) Since the Taliban's return to power in 2021, new geopolitical equations have...
प्रिय बंधुवर गिरीश बिल्लोरे जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
हम सबकी दादी - नानी का सच है यह …
छह बरस की थी तब वो भी तो बन गई थी दुलहनिया
हमारी संयुक्त परिवार प्रणाली के महत्वपूर्ण पात्रों का सजीव चित्रण किया है आपने अपनी कविता में ।
बधाई एवम् मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार